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एक थैला सीमेंट याशिकी हायामा

एक थैला सीमेंट याशिकी हायामा

भावानुवाद - कृष्ण कुमार

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"मै नूमुरा सीमेंट कम्पनी में मजदूरी करती हूं। मेरा काम सीमेंट के थैले सीना है। जिस नौजवान से मेरी सगाई हुई थी, वह भी उसी कम्पनी में काम करता था। उसका काम था पिसाई की मशीन में पत्थर झोंकना। ७ अक्तूबर की सुबह जब वह एक बड़ा ढोका मशीन में डालने की कोशिश कर रहा था, उसका पैर कीचड़ में फिसला और पत्थर के साथ ही वह मशीन में गिर गया।

    "उसके साथियों ने उसे खिंचकर निकालने की कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा न निकला। डूबते आदमी की  तरह वह पत्थर के साथ ही धंसता चला गया। पत्थरों के साथ ही उसका शरीर भी मशीन में पिस गया और दूसरी तरफ चूरा बाहर फेंकने के लिए पाइप में से गुलाबी चूरा बनकर निकला—यह चूरा भी ढुलाईवाली पेटी के सहारे महीन पीसनेवाली चक्की में पहुंच गया और उसके इस्पात के पाटों के नीचे चला गया। मुझे लगा, पिसाई के दौरान भी वे मानो कोई मन्तर पढ़ रहें हों। वहां से चूरा भट्टी में पहुंचा और पक कर सीमेंट के रूप में तैयार होकर निकल आया।

" उसकी हड्डियां, उसका मांस-मज्जा, उसका मन-सब पिसकर चूरा हो गये थे। हां, मेरा पति थोड़ा-सा सीमेंट-भर बनकर रह गया था। बचा था सिर्फ उसकी पोशाक का एक चिथड़ा।आज दिन-भर मैं वे थैले सीती रही हूं, जिनमे उस खेप का सीमेंट भरा जायेगा।

    "उसके सीमेंट बनने के दूसरे ही दिन मैं यह चिट्ठी लिख रहीं हूं। इसे पूरा करके मैं इस खेप के एक थैले में डाल दूंगी।

     "क्या तुम जो भी इस देखोगें, मजदूर हो? अगर तो मेहरबानी करकह मुझे जवाब देना। इस थैले का  सीमेंट कहां काम आ रहा है? मैं जानना चाहती हूं।

     "कुल कितना सीमेंट उससे बना और सब-का-सब एक ही जगह काम आया या अलग-अलग? क्या तुम पलस्तर करनेवाले हो या राज-मिस्त्री?

     "मै नहीं चाहती कि वह किसी थियेटर के गलियारे या किसी बड़े भवन की दीवार का हिस्सा बन जाये। लेकिन ऐसा होना रोकने के लिए मैं कर क्या सकती हूं! अगर तुम मजदूर हो तो यह सीमेंट किसी ऐसी जगह में मत लगाना।

    "लेकिन फिर सोचती हूं  इससे क्या फर्क पड़ेगा! जहां चाहों, यह सीमेंट लगा देना। जहां भी वह लगया जायेगा, लगन से अपना काम पूरा करेगा। वह था ही नेक और इमानदार और जहां भी उसका भाग्य उसे ले जायेगा, वहां अपना काम पूरे मन से करेगा।

"उसका दिल बहुत नरम था, लेकिन साथ ही वह तगड़ा और साहसी भी था। अभी बिलकुल जवान था—२५वां साल लगा ही था। मुझे यह भी जानने का अवसर नहीं मिला कि वह मुझसे कितना प्रेम करता है और अब मैं उसके लिए कफन सी रही हूं—कफन क्या, सीमेंट का थैला सी रही हूं। दाहघर की जगह वह भट्ठी में झोंका जायेगा, लेकिन उससे विदा लेने के लिए मैं उसकी कब्र तक कैसे पहुंचूंगी, क्योंकि मैं कैसे जान सकती हूं कि तुम उसे कहां दफनाया जायेगा—पूरब या पश्छिम,दूर या पास कहीं....इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम इस चिट्ठी का जबाब जरूर देना। तुम अगर मजदूर हो तो जवाब तो दोगे न? और उसके बदले में मैं उसकी पोशाक के कपड़े का एक टुकड़ा तुम्हें देती हूं—हां यही टुकड़ा है, जिसमें चिट्ठी लपेटी गयी है। उसके पत्थर का चूरा, उसके शरीर का पसीना—सब इसी कपड़े में है। जो पोशाक पहनकर वह मुझे सीने से लगाता था—ओह कितनी कड़ी होती थी उसकी कौली!—उसका कुल यह टुकड़ा ही बचा है?

"मेरे लिए इतना तो कर दोगे ने? मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे ऊंपर बहुत बोझ डाल रही हूं, लेकिन मेरी विनती है कि मुझे यह जरूर बता देना कि यह सीमेंट किस दिन काम आया, कैसी जगह लगाया गया और उसका ठीक पता क्या है। और अपना नाम-पता भी लिख देना। और तुम भी सावधानी से रहना—अपना खयाल रखना—रखोगे न? नमस्कार।"

बच्चों का हुड़दंग एक बार फिर योशिजो के आस-पास घिर आया था। एक बार फिर उसने चिट्ठी के अनत में दिया हुआ  नाम और पता पढ़ा और फिर एक ही घूंट में चाय का वह प्याला खाली कर गया, जिसमें उसने अभी-अभी साके शराब भरी थी।

"मैं नशे में धुत्त हो आऊंगा!" उसकी घरवाली ने कहा, "तो आपके पास नशा करने की सहूलियत है? और बच्चों का क्या होगा?"

योशिजो ने घरवाली के बढ़े हुए पेट की तरफ देखा और उसे सातवें बच्चे की बात याद हो आयी।

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