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प्रवासी चिड़िया योंग - सू ओ

प्रवासी चिड़िया योंग - सू ओ

अनु० महेन्द्र कुलश्रेष्ठ

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एक दिन उसने छल्ला डालकर एक प्रवासी चिड़िया को उड़ाया!.... उसका नाम उसने बताया था, पर मैं भूल गया। वह घुमंतू चिड़िया थी। उसने कहा कि जब कभी छल्लेवाली कोई चिड़िया किसी देश के पक्षी-विशेषज्ञ द्वारा पकड़ी जाती थी तो विद्वान के रूप में उस व्यक्ति का कतर्व्य होता था कि सारी जरूरी जानकारी इक्ठ्ठी करके उस प्रयोग के मूल प्रारंभकर्त्ता को भेज दे।

आपको याद है कि कुछ साल पहले यहां इस देश में बत्तख जैसी एक चिड़िया पकड़ी गयी थी, जिसे आस्टिया के एक व्यक्ति ने छोड़ा था। इसी तरह से यह मामला चलता था। जो हो, मेरे मित्र ने जो चिड़िया छोड़ी, कल्पना करो, वह कहां पहुंची? आप कल्पना नहीं कर सकते? वह उत्तरी कोरिया में जा पहुंची। उसने ३८वीं पैरेलल अपने नन्हें-से डैनों से पार कर ली और प्योंग्यांग में जाकर पकड़ी गई।

फिर हुआ क्या? सुनिये।चिड़िया प्योंग्यांग में पक्षी-विद्या-विशारद डा० बन  द्वारा पकड़ी गई। इन डा० बन ने सारी आवश्यक सूचनाएं इक्ठ्ठी कीं और जापान में सांके संस्थान को भेजते हुए बदले में पूछा कि उस प्रयोग का आरंभ करने वाला कौन है? क्या आप सोच सकते हैं कि यह डा० बन कौन थे? वह विख्यात पक्षी-विद्याविद डा० हांग-गूवन—मेरे मित्र प्योंग-हों बन के पिता। कह सकते हैं कि पुत्र द्वारा छोड़ी गई चिड़िया उड़कर पिता के सीने से जा लगी।

विश्वास नहीं होता ? जी, यह घटना सच है। संयोग होगा? हो सकता है; लेकिन आदमी यह भी तो सोच  सकता है कि सारी घटनाओं में संयोग से अधिक भी कुछ हो सकता है।

इन अकल्पनीय घटना का हाल कुछ ही दिन पहले सांके-संस्थान के डाइरेक्टर डा० इन्यू ने मेरे मित्र को भेजा। इस तरह मेरे मित्र को पता चला कि उसके पिता जीवित थे। मेरे मित्र ने बताया कि डा० इन्यू ने चिट्ठी में लिखा, हम इंसान निमार्ण करते हैं और इस प्रकार की त्रासदियों के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि हम इंसान हैं। उन्होंने गहरी हमदर्दी दिखाई और उस दिन की आशा व्यक्त की जब हम ऐसी मूर्खताओं को छोड़ देगें।....पिता और पुत्र कोरिया के युद्ध के दौरान बिछुड़े थे और बीस लम्बे वर्षों के बाद एक चिड़िया के माध्यम से दनका एक प्रकार से पुनर्मिलन हुआ। कितनी बड़ी बात है यह!

                माफ कीजिये, मुझे स्वयं इस बारे में बड़ा कुतूहल था और मैंने अपने दोस्त से यही सवाल किया। मेरा अनुमान है, उससके पिता के पास मासाला-भरी एक दुर्लभ किस्म  की चिड़िया थी। जब उन्हें प्योंग्यग्र से युद्ध –शरणार्थी होकर भागना पड़ा, वे अपने साथ बराबर उस चिड़िया को रखते रहे। अलग होने के बाद जब-जब मेरे मित्र ने अपने पिता का स्मरण किया, वह मसाला-भरी चिड़िया हमेशा पृष्ठभूमि में रही। शायद यही कारण था कि वह स्वयं एक पक्षी-विद्याविद् बन गया।

                जरा सोचिए, एक ही आकाश के नीचे रहनेवाले पिता और पुत्र के बीच सिवा उस प्रवासी चिड़िया की उड़ान के कोई भी सम्पर्क-सूत्र नहीं था।

                यह घाटना कुछ ही समय पहले घटी और आज उस  पक्षी-विशेषज्ञ ने मुझे बताया कि उसके पिता की मृत्यु हो गई। उत्तर कोरिया से यह समाचार पहले रूस भेजा गया, फिर अमरीका, उसके बाद न्यूजीलैण्ड और तब जापान और अंत में सांके संस्थान के डा० इन्यू ने यह खबर मेरे मित्र को दी। इसमें महीनों लग गये। वे दोनों एक-दूसरे के बहुत ही निकट थे; लेकिन पिता के निधन का समाचार आधी दुनिया का चक्कर लगाकर पुत्र को मिला।

                आज दोपहर बाद यह किस्सा मुझे सुनाने के बाद मेरे पक्षी-विद्या-विशारद मित्र ने छत की ओर देखा, लम्बी सांस ली और कहा, "प्रवासी चिड़ियों के लिए कोई सीमा-सरहद नहीं होती।"

                जब उसने यह कहा तो मेरे लिए यह दु:ख बर्दाश्त से बाहर हो गया। आप समझ सकते हैं कि अंदर भावनाओं का ज्वार आता है तो आदमी की क्या हालत हो जाती है! मैं अपने दोस्त को खिंचकर यहां नहीं ला सका।इसलिए मैं अकेंला आपकी खोज में दौड़ा।

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