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जलालुद्दीन रूमी की कहानी खारे पानी का उपहार

जलालुद्दीन रूमी की कहानी खारे पानी का उपहार

 

       पेज 3

उसने पानी की मशक उठायी और चल दिया। सफर में दिन को रात और रात को दिन कर दिया। उसको यात्रा के कष्टों के समय भी मशक की हिफाजत का ही ख्याल रहता था।
इधर औरत ने खुदा से दुआ मांगनी शुरु की कि ऐ परवरदिगार, रक्षा कर, ऐ खदा! हिफाजत कर।
स्त्री की प्रार्थना तथा अपने परिश्रम और प्रयत्न से वह अरब हर विपत्ति से बचता हुआ राजी-खुशी राजधानी तक पानी की मशक को ले पहुंचा। वहां जाकर देखा, बड़ा सुन्दर महल बना हुआ है और सामने याचकों का जमघट लागा हुआ है। हर तरफ के दरवाजों से लोग अपनी प्रार्थना लेकर जाते हैं और सफल मनोरथ लौटते हैं।
जब यह अरब महल के द्वारा तक पहुंचा ता चोबदार आये। उन्होंने इसके साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया। चोबदारों ने पूछा, ‘‘ऐ भद्र पुरुष! तू कहां से आ रहा है? कष्ट और विपत्तियों के कारण तेरी क्या दशा हो गयी है?’’
उसने कहा, ‘‘यदि तुम मेरा सत्कार करो तो मैं भद्र पुरुष हूं और मुंह फेर लो तो बिल्कुल छोटा हूं। ऐ अमीरो! तुम्हारे चेहरों पर एश्चर्य टपक रहा है। तुम्हारे चेहरों का रंग शुद्ध सोने से भी अधिक उजला है। मैं मुसाफिर हूं। रेगिस्तान से बादशाह की सेवा में भिखारी बनकर हाजिर हुआ हूं। बादशाह के गुणों की सुगन्धित रेगिस्तान तक पहुंच चुकी है। रेत के बेजान कणों तक में जान आ गयी है। यहां तक तो मै अशर्फियों के लोभ से आया था, परन्तु जब यहां पहुंचा तो इसके दर्शनों के लिए उत्कण्ठित हो गया।’’ फिर पानी की मशक देकर कहा, ‘‘इस नजराने को सुलतान की सेवा में पहुंचाओ और निवेदन करो कि मेरी यह तुच्छ भेंट किसी मतलब के लिए नहीं है। यह भी अर्ज करना कि यह मीठा पानी सौंधी मिट्टी के घड़े का है, जिसमें बरसाती पानी इकट्ठा किया गया था।’’
चोबदारों को पानी की प्रशंसा सुनकर हंसी आने लगी। लेकिन उन्होंने प्राणों की तरह मशक को उठा लिया, क्योंकि बुद्धिमान बादशाह के सदगुण सभी राज-कर्मचारियों में आ गये थे।
जब खलीफा ने देखा और इसका हाल सुना तो मशक को अशर्फियों से भर दिया। इतने बहुमल्य उपहार दिये कि वह अरब भूख-प्यास भूल गया। फिर एक चोबदार को दयालु बादशाह ने संकेत किया, ‘‘यह अशर्फी-भरी मशक अरब के हाथ में दे दी जाये और लौटते समय इसे दजला नदी के रास्ते रवाना किया जाये। वह बड़े लम्बे रास्ते से यहां तक पहुंचा है। और दजला का मार्ग उसके घर से बहुत पास है। नाव में बैठेगा तो सारी पिछली थकान भूल जायेगा।’’
चोबदारों ने ऐसा ही किया। उसको अशर्फियां से भरी हुई मशक दे दी और दजला पर ले गये। जब वह अरब नौका में सवार हुआ और दजला नदी को देखा तो लज्जा के कारण उसका सिर झुक गया, फिर सिर झुक गया, फिर सिर झुकाकर कहने लगा कि दाता की देन भी निराली है और इससे भी बढ़कर ताज्जुब की बात यह है कि उसने मेरे कड़वे पानी तक को कबूल कर लिया।

 

रूमी की कहानियाँ

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