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लियो टाल्स्टाय कितनी जमीन ?

लियो टाल्स्टाय कितनी जमीन ?

भावानुवाद - जैनेन्द्र कुमार

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दीना ने पूछताछ की कि उस जगह कैसे जाया जाय? सौदागर ने सब बतला दिया। वह चला गया तो दीना ने भी अपनी तैयारी शुरु की। बीवी को कहा कि घर देखना-भालना और खुद एक आदमी साथ ले, यात्रा को निकल पड़ा। रास्ते में एक शहर में ठहरकर, वहां से चाय के डब्बे, शराब और इसी तरह और उपहार की चीजें, जो सौदागर ने बताई थीं, ले लीं। फिर दोनों बढ़ते गये, बढ़ते गये। चलते-चलते आखिर सातवें रोज वहां पहुंचे, जहां से कोल लोगों की बस्ती शुरु होती थी। उसने देखा कि सौदागर ने जो बात बताई थी, वह सही थी। दरिया के पास जमीन-ही-जमीन थी। सब खाली। ये लोग उससे काम न लेते थे। कपड़े या सिरकी के तम्बू में रहते, शिकार करते, मवेशी पालते और ऐसे ही मौज करते थे। ने रोटी बनाना जानते थे, न अनाज उगाना सीखा था। दूध का छाछ-मठा बनाते, पनीर बनाते और उसी एक तरह की शराब भी तैयार कर लेते थे। ये सब काम औरतें करती। मर्द खाने-पीने और फुर्सत के वक्त चैन की बंसी बजाने में रहते। वे लोग मजबूत और स्वस्थ थे और काम-धाम के नाम बिना कुछ किये  मगन रहते थे। अपने से बाहर उन्हें कुछ पता न था। पढ़ना-लिखना जानते नहीं थे और हिन्दी तक नहीं जानते थें पर थे भले-सीधे स्वभाव के। दीना को देखते ही वे अपने तम्बुओं से निकल आये और उसके चारों तरफ जमघट लगाकर खड़े हो गये। उनमें से एक दुभाषिये की मार्फत दीना ने बताया कि मैं जमीन की खातिर आया हूं। वे लोग बड़े खुश मालूम हुए। बड़ी आवभगत के साथ वे उसे अपने अच्छे-स-अच्छे डेरे में ले गये। वहां कालीन पर बिछे गद्दे पर बिठाया ओर खुद नीचे चारों ओर घिसकर बैठ गये। उसे पीने को चाय दी और दारु भी। उसकी मेहमानी में बढ़-बढ़कर दावत हुई। दीना ने भी गाड़ी में से अपने पास से भेंट की चीजें निकाली और सबको थोड़ी-थोड़ी चाय बांटी। कोल लोग बड़े खुश थे। उन्होंने आपस में इए अजनबी की बाबत खूब चर्चा की। फिर दुभाषिये से कहा कि मेहमान को सब समझा दो।

     दुभाषिये ने कहा कि ये लोग कहना चाहते हैं कि हम आपके आने से खुश हैं। हमारे यहां का कायदा है कि मेहमान की खातिर जो हमसे बन सके, करें। आपकी कृपा के हम कृतज्ञ हैं। बतलाइए कि हमारे पास कौन-सी चीलज है, जो आपको सबसे पसंद हैं, ताकि हम उसीसे आपकी खातिर कर सकें।

    दीना ने जवाब दिया कि जिस चीज को देखकर मैं बहुत खुश हूं, वह आपकी जमीन है। हमारे यहां जमीन की कमी है और वह उपजाऊ भी इतनी नहीं होती, लेकिन यहां उसका कोई पार नहीं है और वह जमीन उपजाऊ भी खूब है। मैंने तो अपनी आंखों से यहां-जैसी धरती दूसरी देखी नहीं।

    दुभाषिये ने दीना की बात अपने लोगों को समझा दी। कुछ देर वे आपस में सलाह करते रहे। दीना समझ नहीं सकता कि वे क्या कह रहे हैं। लेकिन उसने देखा कि वे बहुत खुश मालूम होते है, बड़े हंस रहे हैं और जोर-जोर से बोल रहे हैं। अनंतर वे चुप हुए और दीना की तरफ देखने लगे।

     फिर आपस में बात करने लगे। मालूम पड़ा कि जैसे उनमें कुछ दुविधा है। दीना ने पूछा कि उन लोगों में अब किस बात की अटक है। दुभाषिये ने बताया कि उनमें कुछ की राय है कि सरदार से जमीन देने के बारे में और पूछ लेना चाहिए, गैर-हाजिरी में कुछ कर डालना ठीक नहीं है। दूसरों का खयाल है कि इस बात में सरदार के लौटने की राह देखने की जरुरत नहीं है, जरा-सी तो बात है।

   यह विवाद चल रहा था कि एक आदमी बड़ी-सी बालदार टोपी पहने वहां आ पहुंचा। सब चुप होकर उसके संम्मान में खड़े हो गये। दुभाषिये ने कहा कि यही हमारे सरदार है।

     दीना ने फौरन अपने सामान में से एक बढ़िया लबाद निकाला और चाय का एक बड़ा डिब्बा, और अन्य चीजें सरदार को भेंट कीं। सरदार ने  भेंट स्वीकार की और अपने आसन पर आ बैठा। बैठते ही कोल लोगों ने उससे कुछ कहना शुरु किया। सरदार कुछ देर सुनता रहा, फिर उसने उन्हें चुप रहने का इशारा किया। उसे बाद दीना की तरफ मुखातिब होकर हिन्दुस्तानी में कहा:

   ‘‘इन भाइयों ने जो कहा, ठीक है। जितनी जमीन चाहे चुन लो। हमारे यहां उसका घाटा नहीं है।’’

    दीना ने सोचा कि मैं मनचाहे जितनी जमीन कैसे ले सकता हूं। पक्का करने के लिए दस्तावेज वगैरा भी तो चाहिए, नहीं तो जैसे आज इन्होंने कह दिया कि यह तुम्हारी है, पीछे वैसे ही उसे ले भी सकते हैं।

   प्रकट में उसने कहा, ‘‘आपकी दया के लिए मैं कृतज्ञ हूं। आपके पास बहुत धरती है और मुझे थोड़ी-सी चाहिए। लेकिन मुझे भरोसा होना चाहिए कि मेरा अपना छोटा टुकड़ा कौन-सा है और यह कि वह मेरा ही है। क्या ऐसा नहीं हो सता कि जमीन को नाप लिया जाय और उतना टुकड़ा फिर मेरे हवाले कर दिया जाय? मरना-जीना ईश्वर के हाथ है और संसार में यही चक्कर चलता है। आप दयावान लोग तो मुझे यह देते हैं, पर हो सता है कि पीछे आपकी औलाद उसीको वापस ले लेना चाहे तब?’’

   सरदार ने कहा, ‘‘तुम्हारी बात ठीक है। जमीन तुम्हारे हवाले ही कर दी जायगी।’’

    दीना ने कहा, ‘‘सुना है, यहां एक सौदागर आया था। उसको भी आपने जमीन दी थी और उस बाबत कागज पक्का कर दिया था। वैसे ही मैं चाहता हूं कि कागज पक्का हो जाय।’’

   सरदार समझ गया।

    बोला, ‘‘हां, जरुर। यह तो आसानी से हो सकता है। हमारे यहां एक मुंशी है, कस्बे में चलकर लिखा-पढ़ी पक्की कर ली जायगी और रजिस्ट्री हो जायगी।’’

    दीना ने पूछा, ‘‘कीमत की दर क्या होगी?’’

     ‘‘हमारी दर तो एक ही है। एक दिन के एक हजार रुपये।’’

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