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लपटें चित्रा मुदगल

लपटें चित्रा मुदगल

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दु:स्मृतियों से भरा बीत गया कल कहीं रीतता है...!

उनकी करक की छटपटाहट पत्नी की टकटकी में आर्द्र होने लगी- 'सोई तो हम कह रहे, ऐसा फिर नहीं हो सकता? हो सकता है नहीं बल्कि शर्तियाँ होगा...

आर्द्रता को कण्ठ में ही घूँटा पत्नी ने। बेबस खिन्नता फुंकार छोडती-सी करेजे को मथ गयी।

उनके लोगों ने कभी इस धरती को पराया समझा! कम सेवा टहल की इस माया नगरी की! कमा कर गाँव-घर पठवाते रहे तो अपना ही आधा पेट काटकर न! डाकेजनीं की किसी की सम्पत्ति पर? खाने-कमाने की नीयत से घर-बार त्याग बरसों-बरस पहले गुड, सतुवा बाँध निकल लिये थे उनके लोग। आज अपने ही देश में बिराने हो गये! गाँव, घर, कुटुम्बी जनों के लेखे तो वे परदेशी ही हो गये हैं। ससुर निर्मोही हो साफ कहते हैं कि बहुरिया! जो दोनों बिटियन को लेके तुम अपनी देहरी वास न करोगी तो निश्चय मानो, जात बिरादरी में इन लडकियों का ठौर ठिकाना न लगने का!

न इधर के रहे, न उधर के हुए।
लपटें

दिनमान हाडतोडी कर जितना जोडा कमाया, उनकी दखल किनारा कर लगनपूर्वक गाँव बैठे ससुर की झोली भरते रहे- कोई एहसान मानता है? जमब अपने ही लगे सगे किये दिये का एहसान नहीं मानते तो ये लोग तो फिर पराये ही ठहरे! इनकी भूख-प्यास बिना कुछ उगाडे शान्त नहीं होने की! फिर जब इन्हीं के बीच रहकर जीना-मरना हुआ तो उसका ब्याज-दण्ड हँसी-खुशी झेल लेने में कैसी हील-हुज्जत!

पत्नी की चुप्पी पति को खली।

पत्नी बडी बुरी आदत है। कोई बात मन में आ जाये या बैठ जाए तो अन्य दिशा में सोच ही नहीं पाती।

'बोल नहीं रही?

'चित्त ठिकाने नहीं तुम्हारी नासमझी के चलते।
हमें लूट पकी पकायी खिचडी हजम कर पाना फिलहाल इनके लिए इतना आसान नहीं। पति ने हाथ उठाकर झटका- 'हमने भी इस शहर की ईंटों पर पलस्तर चढाया है...

'मुकाबले से ये चुप बैठ जाएँगे? हिसाब चुकते हो जाएँगे? उनके हिसाब चुकते हो गये इस देश-समाज में जिनके दोनों ओर से सैकडों मुकाबले हो चुके हैं और अब तक हो रहे हैं?

'हमने कौन चूडी पहन रखी हैं और क्यों दबें हम!

'भैंस दुहते दुहते तुम्हारी अकिल (अक्ल) ठुस्स हो गयी है। तनिक दिमाग से काम लो। जल में रहकर मगरमच्छ से बैर उचित नहीं।

'फालतू धौंस पट्टी में आ रहीं। न्याय, व्यवस्था, कानून कोई मायने नहीं रखते?

'मुनुआ का न्याय मिल गया? जिसकी लाठी उसकी भैंस, तबेले के मालिक होके भी नहीं बूझ पाये इस महामन्त्र को! कानून और क्या कहते हो- व्यवस्था में तो इन्हीं की जात-बिरादरी के लोग भरे हुए हैं और अब जैसा हम समझ पा रहे हैं, बेरोजगार निठल्ले ही नहीं-पढे लिखे भी इनके पक्षधर हो रहे हैं...

पति ने टोका तमककर- 'बलबलाते भर नहीं हम। सब तैयारियाँ चल रही हैं। विधान सभा चुनाव में हमारे अधिक-से-अधिक प्रतिनिधि खडे हो रहे हैं...

'बस-बस मिल गया बहुमत! मौका पडने पर उनके सूप की राई होते बेर नहीं लगती। आ गये विपदा में तुम्हारी रक्षा को वे...

'तुम्हारे ये नेताजी आएँगे?

'नेताजी नहीं आएँगे। आएँगे काम पडोसी। उनके अनुयायी। सोई कह रही ँ, फौरन उठ जाओ और अपने दरवाजे पर लग गया खूनी ठप्पा पँछवा लो!

पति के भीतर अचानक जनमे असमंजस को अगले ही पल नकद कर लेने के ध्येय से पुन: ललकारा उन्होंने- 'जयघोष से हमें अनुमान हो रहा कि नेताजी की सवारी इस बकत शेगडे चाली की बसन्ती ताई के ठियाँ पहुँची हुई है...

दुविधा से उबर नहीं पाये पति। पडोसीबेवकूफ नहीं ठहरे। नेताजी को अपने ठियाँ आमन्त्रित करने आया देखकर सोचेंगे नहीं कि अब तक कहाँ सोये बैठे थे रघुनाथ यादवजी उर्फ दूधवाले भैयाजी! नगाडे किसी और मुहल्ले में तो बज नहीं रहे थे!

चतुर पत्नी ने दुविधा भाँप ली।

मुक्ति को आगे आयी कि नि:संकोच अगाशे साहब से कह देना कि दो-एक भैंसियों की तबीयत अचानक बिगड गयी थी सो दुहाई के बाद तुम्हें तबेले में ही रात काटनी पडी। अभी-अभी घर लौटा तो घर घुसते ही खबर लगी कि नेताजी तुम्हारी कुटिया बिना पवित्र किये हुए ही आगे बढ दिये हैं। तो भैया तुम उलटे पाँव पलट लिये। वैसे भी भोर से तुम मूस-से घर घुस्सू हुए पडे हुए हो। किसी ने तुम्हें देखा थोडे ही है कि तुम खोली पर मौजूद हो कि नहीं।

ऊहापोह तनिक दरकी। अनमने-से कुर्सी छोड उठ खडे हुए और खूँटी पर टँगा कुर्ता उतारकर गले में डालते हुए पत्नी की ओर उन्मुख हुए- 'अपने निर्णय पर एक बार फिर से विचार कर लो, नेताजी को खोली में आमन्त्रित करने का मतलब समझती हो ना!

'खूब सोच विचार लिया है। हम भी उन्हें चंदा देंगे। उनकी जात-बिरादरी वालों से अधिक देंगे। पत्नी का स्वर दृढ हो आया।

दरवाजे की कुण्डी खोलते हुए से वे पलटे- 'बहबूदी न झाडो, चन्दे की रकम आएगी कहाँ से?

'उसका भी इन्तजाम है।

उन्होंने अविश्वास से पत्नी की ओर देखा। दरवाजे का पल्ला नहीं खोला।

'बब्बू के डाकदरी के दाखिले के लिए जो बाइस हजार रुपए जुगाडकर कल बैंक में डालने के लिए रखवा गये थे तुम- रोक लिये थे हमने। चन्दे में वहीं दे दो!

'दिमाग तो नहीं चल गया तुम्हारा? पलटकर वे पत्नी की सीध में हो गये।

'दाखिले के लिए चिन्तित मत होओ। मौके पर हम अपने ये चार ठौ चूडियाँ बेच देंगे। पाँच तोले की हैं!

वे क्रोध से भरे कुछ कहने को हुए कि पत्नी ने बोलने नहीं दिया। उनकी आवाज भावावेश में काँपती-सी हो आयी- 'जान है तो जहान है, पैसों का क्या, कमा लोगे। बाल-बच्चों की जान कमा सकते हो? बोलो? ठीक से कहते नहीं बना। गला एकदम भर्रा आया उसका।

जुडवाँ बेटियाँ अधीर हो माँ के निकट खिंच आयीं- 'तुम इतनी परेशान क्यों हो रही हो माँ! एक ने हैरानी से सवाल किया।

उत्तर में उसके कण्ठ से आर्तनाद फूट पडा। जिसे फौरन उसने मुँह में ऑंचल ठूँसकर रोका। एक लम्बी हुचकी खींचते हुए फुसफुसायी- 'मुनुआ को उन लोगों ने लपटों में नहीं झोंका... जहरा चूडीवाली बता रही थी कि रोजे का समय चल रहा मेरा। झूठ नहीं बोलूँगी भाभी साहब! हमने अपनी नंगी ऑंखों से शेट्टी टी.वी. वाले की दुकान लूटने के बाद सत्तार चाली के छोकरों को मुनुआ को दबोच लपटों में झोंकते देखा है... सत्तार चालीवाले पारसाल इन्हीं की पार्टी के लिए चन्दा माँगने नहीं आए थे!

खोली की दीवारों पर सन्नाटा रेंग गया....

वे यानि रघुनन्दन यादव ऊर्फ मुम्बई के दूधवाले भैया जी अपनी जगह पर पत्थर की मूरत हो गये। एक बेटी ने माँ के इशारे पर रसोई से गिलास भर पानी लाकर दिया, मगर वे घूँट नहीं भर पाये।

अचानक दरवाजे का पल्ला खोल वे बिना पीछे मुडे, पत्नी से बोले, 'तुम नेताजी की अगवानी की तैयारी करो फटाफट... शेगडे की चाली से हम उनके काफिलों को अपनी खोली की ओर मोडते हैं...

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