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शराब की दूकान प्रेमचंद sharaab kee dookaan Premchand's Hindi story

शराब की दूकान प्रेमचंद sharaab kee dookaan Premchand's Hindi story

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शराब की दूकान

 

जयराम ने गिलास लेकर कहा-तुम लोग बीच में न कूद पड़ते, तो मैंने उन सबों को ठीक कर लिया होता।
दूकानदार ने प्रतिवाद किया-नहीं बाबू जी, वह सब छँटे हुए गुंडे हैं। मैं तो उन्हें अपनी दूकान के सामने खड़ा भी नहीं होने देता। चारों तीन-तीन साल काट आये हैं।
अभी बीस मिनट भी न गुजरे होंगे कि एक स्वयंसेवक आकर खड़ा हो गया। जयराम ने संचित हो कर पूछा-कहो, वहॉँ क्या हो रहा है?
स्वयंसेवक ने कुछ ऐसा मुँह बना लिया, जैसे वहॉँ की दशा कहना वह उचित नहीं समझता और बोल-कुछ नहीं, देवी जी आदमियों को समझा रही हैं।
जयराम ने उसकी ओर अतृप्त नेत्रों से ताका, मानों कह रहै हों-बस इतना ही! इतना तो मैं जानता ही था।
स्वयंसेवक ने एक क्षण बाद फिर कहा-देवियों का ऐसे शोहादों के सामने जाना अच्छा नहीं।
जयराम ने अधीर होकर पूछा- साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहते, क्या बात है।
स्वयंसेवक डरते-डरते बोला-सब के सब उनसे दिल्लगी कर रहै हैं। देवियों का यहॉँ आना अच्छा नहीं।
जयराम ने और कुछ न पूछा। डंडा उठाया और लाल-लाल ऑंखें निकाले बिजली की तरह कौधं कर शराबखाने के सामने जा पहुँचा और मिसेज सकसेना का हाथ पकड़ कर पीछे हटाता हुआ शराबियों से बोला-अगर तुम लोगों ने देवियों के साथ जरा भी गुस्ताखी की, तो तुम्हारे हक़ में अच्छा न होगा। कल मैंने तुम लोगों की जान बचायी थी आज इसी डंडे से तुम्हारी खोपड़ी तोड़ कर रख दूँगा।
उसके बदले हुए तेवर को देख कर सब के सब नशेबाज घबड़ा गये। वे कुछ कहना चाहते थे कि मिसेज सकसेना ने गभ्भीर भाव से पूछा-आप यहॉँ क्यों आये! मैंने तो आपसे कहा था, अपनी जगह से न हिलिएगा। मैंने तो आपसे मदद न मॉँगी थी?
जयराम ने लज्जित हो कर कहा-मैं इस नीयत से यहॉँ नहीं आया था। एक जरूरत से इधर आ निकला था। यहॉँ जमाव देख कर आ गया। मेरे ख्याल में आप अब यहॉँ से चलें। मैं आज कॉँग्रेस कमेटी में यह सवाल पेश करूँगा कि इस काम के लिए पुरुषों को भेजें।
मिसेज सकसेना ने तीखे स्वर में कहा-आपके विचार में दुनिया के सारे काम मरदों के लिए है!
जयराम-मेरा यह मतलब न था।
मिसेज सकसेना-तो आप जा कर आराम से लेटें और मुझे अपना काम करने दें।
जयराम वहीं सिर झुकाये खड़ा रहा।
मिसेज सकसेना ने पूछा-अब आप क्यों खड़े हैं?
जयराम ने विनीत स्वर में कहा-मैं भी यहीं एक किनारे खड़ा रहूंगा।
मिसेज़ सकसेना ने कठोर स्वर में कहा—जी नहीं, आप जायें।
जयराम धीरे-धीरे लदी हुई गाड़ी की भांति चला और आकर फिर उसी लेमनेड की दूकान पर बैठ गया। उसे जोर की प्यास लगी थी। उसने एक गिलास शर्बत बनवाया और सामने मेज पर रख कर विचार में डूब गया; मगर आंखें और कान उसी तरफ़ लगे हुए थे।
जब कोई आदमी दूकान पर आता, वह चौंककर उसकी तरफ़ ताकने लगता—वहां कोई नयी बात तो नहीं हो गयी?
कोई आध घंटे बाद वही स्वयंससेवक फिर डरा हुआ-सा आकर खड़ा हो गया। जयराम ने उदासीन बनने की चेष्टा करके पूछा—वहां क्या हो रहा है जी?
स्वयंसेवक ने कानों पर हाथ रख कर कहा—मैं कुछ नहीं जानता बाबू जी, मुझसे कुछ न पूछिए।
जयराम ने एक साथ ही नम्र और कठोर होकर पूछा—फिर कोई छेड़छाड़ हुई?
स्वयंसेवक—जी नहीं, कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। एक आदमी ने देवी जी को धक्का दे दिया, वे गिर पड़ीं।
जयराम निस्पंद बैठा रहा; पर उसके अंतराल में भूकम्प-सा मचा हुआ था। बोला—उनके साथ के साथ के स्वयंसेवक क्या कर रहै हैं?
‘खड़े हैं, देवी जी उन्हें बोलने ही नहीं देतीं।’
‘तो क्या बड़े जोर से धक्का दिया ?’
‘जी हां, गिर पड़ीं। घुटनों में चोट आ गयी। वे आदमी साथ पी रहे थे। जब एक बोतल उड़ गयी, तो उनमें से एक आदमी दूसरी बोतल लेने चला। देवी जी ने रास्ता रोक लिया। बस, उसने धक्का दे दिया। वही जो काला-काला मोटा-सा आदमी है ! कलवाले चारों आदमियों की शरारत है।’
जयराम उन्माद की दशा में वहां से उठा और दौड़ता हुए शराबखाने के सामने आया। मिसेज़ सकसेना सिर पकड़े जमीन पर बैठी हुई थीं और वह काला मोटा आदमी दूकान के कठघरे के सामने खड़ा था। पचासों आदमी जमा थे। जयराम ने उसे देखते ही लपक कर उसकी गर्दन पकड़ ली और इतने जोर से दबाई कि उसकी आंखें बाहर निकल आयीं। मालूम होता था, उसके हाथ फौलाद के हो गये हैं।
सहसा मिसेज़ सकसेना ने आकर उसका फौलादी हाथ पकड़ लिया
और भवें सिकोड़ कर बोलीं—छोड़ दो इसकी गर्दन क्या इसकी जान ले लोगे?
जयराम ने और जोर से उसकी गर्दन दबायी और बोला—हां, ले लूंगा? ऐसे दुष्ट की यही सजा है।
मिसेज़ सकसेना ने अधिकार-गर्व से गर्दन उठाकर कहा—आपको यहां आने का कोई अधिकार नहीं है।
एक दर्शक ने कहा—ऐसा दबाओ बाबूजी, कि साला ठंडा हो जाय। इसने देवी जी को ऐसा ढकेला कि बेचारी गिर पड़ीं। हमें तो बोलने का हुक्म नहीं है, नहीं तो हड्डी तोड़ कर रख देते।
जयराम ने शराबी की गर्दन छोड़ दी। वह किसी बाज के चगुंल से छूटी हुई चिड़िया की तरह सहमा हुआ खड़ा हो गया। उसे एक धक्का देते हुए उसने मिसेज़ सकसेना से कहा—आप यहां से चलती क्यों नहीं? आप जायं, मैं बैठता हूं; अगर एक छटांक शराब बिक जाय, तो मेरा कान पकड़ लीजियेगा।
उसका दम फूलने लगा। आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। वह खड़ा न रह सका। जमीन पर बैठ कर रुमाल से माथे का पसीना पोंछने लगा।  
मिसेज़ सकसेना ने परिहास करके कहा—आप कांग्रेस नहीं हैं कि मैं आपका हुक्म मानूं। अगर आप यहां से न जायंगे, तो मैं सत्याग्रह करुंगी।
फिर एकाएक कठोर होकर बोलीं—जब तक कांग्रेस ने इस काम का भार मुझ पर रखा है, आपको मेरे बीच में बोलने का कोई हक नहीं है। आप मेरा अपमान कर रहे हैं। कांग्रेस-कमेटी के सामने आपको इसका जवाब देना होगा।
जयराम तिमिला उठा। बिना कोई जवाब दिये लौट पड़ा और वेग से घर की तरफ चला; पर ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता था, उसकी गति मंद होती जाती थी। यहां तक कि बाजार के दूसरे सिरे पर आ कर वह रुक गया। रस्सी यहां खतम हो गयी। उसके आगे जाना उसके लिए असाध्य हो गया। जिस झटके ने उसे यहां तक भेजा था, उसकी शक्ति अब शेष हो गयी थी। उन शब्दों में जो कटुता और चोट थी, अब उसे सहानुभूति और स्नेह की सुगंध आ रही थी।
उसे फिर चिंता हुई न जाने वहां क्या हो रहा है। कहीं उन बदमाशों ने और कोई दुष्टता न की हो, या पुलिस न आ जाय।
वह बाजार की तरफ मुड़ा लेकिन एक कदम ही चल कर फिर रुक
गया। ऐसे पसोपेश में वह कभी न पड़ा था।
सहसा उसे वही स्वयंसेवक दौड़ता आता दिखाई देता। वह बदहवास होकर उससे मिलने के लिए खुद भी उसकी तरफ दौड़ा। बीच में दोनों मिल गये।
जयराम ने हांफते हुए पूछा—क्या हुआ? क्यों भागे जा रहे हो?
स्वयंसेवक ने दम लेकर कहा—बड़ा गजब हो गया बाबू जी ! आपके आने के बाद वह काला शराबी बोतल लेकर दूकान से चला, तो देवी जी दरवाजे पर बैठ गयीं। वह बार-बार देवी जी को हटाकर निकलना चाहता है; पर वह फिर आ कर बैठ जाती हैं। धक्कम-धक्के में उनके कुछ कपड़े फट गये हैं और कुछ चोट भी...
अभी बात पूरी न हुई थी कि जयराम शराबखाने की तरफ दौड़ा।


6


जयराम शराबखाने के सामने पहुंचा तो देखा, मिसेज़ सकसेना के चारों स्वयंसेवक दूकान के सामने लेटे हुए हैं और मिसेज़ सकसेना एक किनारे सिर झुकाये खड़ी हैं। जयराम ने डरते-डरते उनके चेहरे पर निगाह डाली। आंचल पर रक्त की बूंदें दिखाई दीं। उसे फिर कुछ सुध न रही। खून की वह चिनगारियां जैसे उसके रोम-रोम में समा गयीं। उसका खून खौलने लगा, मानो उसके सिर खून सवार हो गया हो। वह उन चारों शराबियों पर टूट पड़ा और पूर जारे के साथ लकड़ी चलाने लगा। एक-एक बूंद की जगह वह एक-एक घड़ा खून बहा देना चाहता था। खून उसे कभी इतना प्यारा न था। खून में इतनी उत्तेजना है, इसकी उसे खबर न थी।
वह पूरे जारे से लकड़ी  चला रहा था। मिसेज़ सकसेना कब आकर उसके सामने खड़ी हो गयीं उसे कुछ पता न चला। जब वह जमीन पर गिर पड़ीं, तब उसे जैसे होश हआ गया हो। उसने लकड़ी फेंक दी और वहीं निश्चल, निस्पंद खड़ा हो गया, मानों उसका रक्तप्रवाह रुक गया है।
चारों स्वयंससेवकों ने दौड़ कर मिसेज़ सकसेना को पंखा झलना शुरु किया। दूकानदार ठंडा पानी लेकर दौड़ा। एक दर्शक डाक्टर को बुलाने भागा, पर जयराम वहीं बेजान खड़ा था जैसे स्वयं अपने तिरस्कार-भाव का पुतला बन गया हो। अगर इस वक्त कोई उसकी आँखें लाल लोहै से फोड़ देता, तब भी वह चूं न करता।
फिर वहीं सड़क पर बैठकर उसने अपने लज्जित, तिरस्कृत, पराजित मस्तक को भूमि पर पटक दिया और बेहोश हो गया।
उसी वक्त उस काले मोटे शराबी ने बोतल जमीन पर पटक दी और उसके सिर पर ठंडा पानी डालने लगा।
एक शरीबी ने लैसंसदार से कहा—तुम्हारा रोजगार अन्य लोगों की जान लेकर रहैगा। अब तो अभी दूसरा ही दिन है।
लैसंसदार ने कहा—कल से मेरा इस्तीफा है। अब स्वेदेशी कपड़े का रोजगार करुंगा, जिसमें जस भी है और उपकार भी।
शरीबी ने कहा—घाटा तो बहुत रहेगा।

दूकानदार ने किस्मत ठोंक कर कहा—घाटा-नफा तो जिंदगानी के साथ है।

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