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समर यात्रा प्रेमचंद samar yaatra Premchand's Hindi story

समर यात्रा प्रेमचंद samar yaatra Premchand's Hindi story

समर यात्रा

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समर यात्रा

 

राज तो न मिलेगा, मगर रॉँड मॉँड में ही खुश ! इन्हें कोई तलब देता जाय, दूसरों की गरदन भी काटने में इन्हें संकोच नहीं !
अब दारोगा ने नायक को डॉँटना शुरु किया—तुम किसके हुक्म से इस गॉँव में आये?
नायक ने शांत भाव से कहा—खुदा के हुक्म से ।
दारोगा—तुम रिआया के अमन में खलल डालते हो?
नायक—अगर तुम्हें उनकी हालत बताना उनके अमन में खलल डालना है ता बेशक हम उसके अमन में खलल डाल रहे है।
भागनेवालों के कदम एक बार फिर रुक गये। कोदई ने उनकी ओर निराश ऑंखों से देख कर कॉँपते हुए स्वर में कहा—भाइयो इस बखत कई गॉँवों के आदमी यहॉँ जमा हैं? दारोगा ने हमारी जैसी बेआबरुई की है, क्या उसे सह कर तुम आराम की नींद सो सकते हो? इसकी फरियाद कौन सुनेगा? हाकिम लोग क्या हमारी फरियाद सुनेंगे।  कभी नहीं। आज अगर हम लोग मार डाले जायँ, तो भी कुछ न होगा। यह है हमारी इज्जत और आबरु? थुड़ी है इस जिंदगी पर!
समूह स्थिर भाव से खड़ा हो गया, जैसे बहता हुआ पानी मेंड़ से रुक जाय। भय का धुआं जो लोगों के हृदय पर छा गया था, एकाएक हट गया। उनके चेहरे कठोर हो गये। दारोगा ने उनके तीवर देखे, तो तुरन्त घोड़े पर सवार हो गया और कोदई को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। दो सिपाहियों ने बढ़ कर कोदई की बॉँह पकड़ ली। कोदई ने कहा—घबड़ाते क्यों हो, मैं कहीं भागूँगा नहीं। चलो, कहॉँ चलने हो?
ज्योंही कोदई दोनों सिपाहियों के साथ चला, उसके दोनों जवान बेटे कई आदमियों के साथ सिपाहियों की ओर लपके कि कोदई को उनके हाथों से छीन लें। सभी आदमी विकट आवेश में आकर पुलिसवालों के चारों ओर जमा हो गये।
दारोगा ने कहा—तुम लोग हट जाओ वरना मैं फायर कर दूँगा। समूह ने इस धमकी का जवाब ‘भारत माता की जाय !’ से दिया और एका-एक दो-दो कदम और आगे खिसक आये।
दारोगा ने देखा, अब जान बचती नहीं नजर आती है। नम्रता से बोला—नायक साहब, यह लोग फसाद पर अमादा हैं। इसका नतीजा अच्छा न होगा !
नायक ने कहा—नहीं, जब तक हममें एक आदमी भी यहॉँ रहेगा, आपके ऊपर कोई हाथ न उठा सकेगा। आपसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। हम और आप दोनों एक ही पैरों के तले दबे हुए हैं। यह हमारी बद-नसीबी है कि हम आप दो विरोधी दलों में खड़े हैं।
यह कहते हुए नायक ने गॉँववालों को समझाया—भाइयो, मैं आपसे कह चुका हूँ यह न्याय और धर्म की लड़ाई है और हमें न्याय और धर्म के हथियार से ही लड़ना है। हमें अपने भाइयों से नहीं लड़ना है। हमें तो किसी से भी लड़ना नहीं है। दारोगा की जगह कोई अंगरेज होता, तो भी हम उसकी इतनी ही रक्षा करते। दारोगा ने कोदई चौधरी को गिरफ्तार किया है। मैं इसे चौधरी का सौभाग्य समझता हूँ। धन्य हैं वे लोग जो आजादी की लड़ाई में सजा पायें। यह बिगड़ने या घबड़ाने की बात नहीं है। आप लोग हट जायँ और पुलिस को जाने दें।
दारोगा और सिपाही कोदई को लेकर चले। लोगों ने जयध्वनि की—‘भारतमाता की जय।’                                                     
कोदई ने जवाब दिया—राम-राम भाइयो, राम-राम। डटे रहना मैदान में। घबड़ाने की कोई बात नहीं है। भगवान सबका मालिक है।
दोनों लड़के ऑंखों में ऑंसू भरे आये और कातर स्वर में बोले—हमें क्या कहे जाते हो दादा !
कोदई ने उन्हें बढ़ावा देते हुए कहा—भगवान् का भरोसा मत छोड़ना और वह करना जो मरदों को करना चाहिए। भय सारी बुराइयों की जड़ है। इसे मन से निकाल डालो, फिर तुम्हारा कोई कुछ नहीं कर सकता। सत्य की कभी हार नहीं होती।
आज पुलिस सिपाहियों के बीच में कोदई को निर्भयता का जैसा अनुभव हो रहा था, वैसा पहले कभी न हुआ था। जेल और फॉँसी उसके लिए आज भय की वस्तु नहीं, गौरव की वस्तु हो गयी थी! सत्य का प्रत्यक्ष रुप आज उसने पहली बार देखा मानों वह कवच की भॉँति उसकी रक्षा कर रहा हो।


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गॉँववालों के लिए कोदई का पकड़ लिया जाना लज्जाजनक मालूम हो रहा था। उनको ऑंखों के सामने उनके चौधरी इस तरह पकड़ लिये गये और वे कुछ न कर सके। अब वे मुँह कैसे दिखायें! हर एक मुख पर गहरी वेदना झलक रही थी जैसे गॉँव लुट गया !
सहसा नोहरी ने चिल्ला कर कहा—अब सब जने खड़े क्या पछता रहै हो? देख ली अपनी दुर्दशा, या अभी कुछ बाकी है ! आज तुमने देख लिया न कि हमारे ऊपर कानून से नहीं लाठी से राज हो रहा है ! आज हम इतने बेशरम हैं कि इतनी दुर्दशा होने पर भी कुछ नहीं बोलते ! हम इतने स्वार्थी, इतने कायर न होते, तो उनकी मजाल थी कि हमें कोड़ों से पीटते। जब तक तुम गुलाम बने रहोगे, उनकी सेवा-टहल करते रहोगे, तुम्हें भूसा-कर मिलता रहेगा, लेकिन जिस दिन तुमने कंधा टेढ़ा किया, उसी दिन मार पड़ने लगेगी। कब तक इस तरह मार खाते रहोगे? कब तक मुर्दो की तरह पड़े गिद्धों से अपने आपको नोचवाते रहोगें? अब दिखा दो कि तुम भी जीते-जागते हो और तुम्हें भी अपनी इज्जत-आबरु का कुछ खयाल है। जब इज्जत ही न रही तो क्या करोगे खेती-बारी करके, धर्म कमा कर? जी कर ही क्या करोगे? क्या इसीलिए जी रहे हो कि तुम्हारे बाल-बच्चे इसी तरह लातें खाते जायँ, इसी तरह कुचले जायँ? छोड़ो यह कायरता ! आखिर एक दिन खाट पर पड़े-पड़े मर जाओगे। क्यों नहीं इस धरम की लड़ाई में आकर वीरों की तरह मरते। मैं तो बूढ़ी औरत हूँ, लेकिन और कुछ न कर सकूँगी, तो जहॉँ यह लोग सोयेंगे वहॉँ झाडू तो लगा दूँगी, इन्हें पंखा तो झलूँगी।
कोदई का बड़ा लड़का मैकू बोला—हमारे जीते-जी तुम जाओगी काकी, हमारे जीवन को धिक्कार है ! अभी तो हम तुम्हारे बालक जीते ही हैं। मैं चलता हूँ उधर ! खेती-बारी गंगा देखेगा।
गंगा उसका छोटा भाई था। बोला—भैया तुम यह अन्याय करते हो। मेरे रहते तुम नहीं जा सकते। तुम रहोगे, तो गिरस्ती सँभालोगे। मुझसे तो कुछ न होगा। मुझे जाने दो।
मैकू—इसे काकी पर छोड़ दो। इस तरह हमारी-तुम्हारी लड़ाई होगी। जिसे काकी का हुक्म हो वह जाय।
नोहरी ने गर्व से मुस्करा कर कहा—जो मुझे घूस देगा, उसी को जिताऊँगी।
मैकू—क्या तुम्हारी कचहरी में भी वही घूस चलेगा काकी? हमने तो समझा था, यहॉँ ईमान का फैसला होगा !
नोहरी—चलो रहने दो। मरती दाई राज मिला है तो कुछ तो कमा लूँ।
गंगा हँसता हुआ बोला—मैं तुम्हें घूस दँगा काकी। अबकी बाजार जाऊँगा,तो तुम्हारे लिए पूर्वी तमाखू का पत्ता लाऊँगा।
नोहरी—तो बस तेरी ही जीत है, तू ही जाना।
मैकू—काकी, तुम न्याय नहीं कर रही हो।
नोहरी—अदालत का फैसला कभी दोनों फरीक ने पसन्द किया है कि तुम्हीं करोगे?
गंगा ने नोहरी के चरण दुए, फिर भाई से गले मिला और बोला—कल दादा को कहला भेजना कि मै जाता हूँ।
एक आदमी ने कहा—मेरा भी नाम लिख लो भाई—सेवाराम।
सबने जय-घोष किया। सेवाराम आकर नायक के पास खड़ा हो गया।
दूसरी आवाज आयी—मेरा नाम लिख लो—भजनसिंह।
सबने जय-घोष किया। भजनसिंह जाकर नायक के पास खड़ा हो गया।
भजन सिंह दस-पांच गॉँवो मे पहलवानी के लिए मशहुर था। यह अपनी चौड़ी छाती ताने, सिर उठाये नायक के पास खड़ा हो हुआ, तो जैसे मंडप के नीचे एक नये जीवन का उदय हो गया।
तुरंत ही तीसरी आवाज आयी—मेरा नाम लिखो-घूरे।
यह गॉँव का चौकीदार थ। लोगों ने सिर उठा-उठा कर उसे देख। सहसा किसी को विश्वास न आता था कि घूरे अपना नाम लिखायेगा।
भजनसिंह ने हँसते हुए पूंछा—तम्हें क्या हुआ है घूरे?
घूरे ने कहा—मुझे वही हुआ है, जो तुम्हें हुआ है। बीस साल तक गुलामी करते-करते थक गया।
फिर आवाज आयी—मेरा नाम लिखो—काले खॉँ।
वह जमींदार का सहना था, बड़ा ही जाबिर और दबंग। फिर लोंगो आश्चर्य हुआ।
मैकू बोला—मालूम होता है, हमको लूट-लूटकर घर भर लिया है, क्यों।
काले खॉँ गम्भीर स्वर में बोला—क्या जो आदमी भटकता रहै, उसे कभी सीधे रास्ते पर न आने दोगे भाई। अब तक जिसका नमक खाता था, उसका हुक्म बजाता था। तुमको लूट-लूट कर उसका घर भरता था। अब मालूम हुआ कि मैं बड़े भारी मुगालते में पड़ा हुआ था। तुम सब भाइयों को मैने बहुत सताया है। अब मुझे माफी दो।
पॉँचो रँगरूट एक दूसरे से लिपटते थे, उछलते थे, चीखते थे, मानो उन्होंने सचमुच स्वराज्य पा लिया हो, और वास्तव में उन्हे स्वराज्य मिल गया था। स्वराज्य  चित्त की वृत्तिमात्र है। ज्योंही पराधीनता का आतंक दिल से निकल गया, आपको स्वराज्य मिल गया। भय ही पराधीनता है निर्भयता ही स्वराज्य है। व्यवस्था और संगठन तो गौण है।
नायक ने उन सेवकों को सम्बोधित करके कहा--मित्रों! आप आज आजादी के सिपाहियों में आ मिले, इस पर मै आपको बधाई देता हूं। आपको मालूम है, हम किस तरह लड़ाई करने जा रहे है? आपके ऊपर तरह-तरह की सख्तियाँ की जायेंगी, मगर याद रखिए, जिस तरह आज आपने मोह और लोभ का त्याग कर दिया है, उसी तरह हिंसा और क्रोध का भी त्याग कर दीजिए। हम धर्म संग्राम में जा रहे हैं। हमें धर्म के रास्ते पर जमा रहना होगा। आप इसके लिए तैयार है!
पॉँचों ने एक स्वर में कहा—तैयार है!
नायक ने आशीर्वाद दिया—ईश्वर आपकी मदद करे।


6


उस सुहावने-सुनहले प्रभात में जैसे उमंग घुली हुई थी। समीर के हलके-हलके झोकों में प्रकश की हल्की-हल्की किरणों में उमंग सनी हुई थी। लोग जैसे दीवाने हो गये थें। मानो आजादी की देवी उन्हे अपनी ओर बुला रही हो। वही खेत-खलिहान, बाग-बगीचे हैं, वही स्त्री-पुरुष हैं पर आज के प्रभात में जो आशीर्वाद है, जो वरदान है, जो विभूति है, वह और कभी न थी। वही खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, स्त्री-पुरूष आज एक नयी विभूति में रंग गये हैं।
सूर्य निकलने के पहले ही कई हजार आदमियों का जमाव हो गय था। जब सत्याग्रहियों का दल निकला तो लोगों की मस्तानी आवाजों से आकाश गूँज उठा। नये सैनिकों की विदाई, उनकी रमणियों का कातर धैर्य, माता-पिता का आर्द्र गर्व, सैनिको के परित्याग का दृश्य लोंगों को मस्त किये देता था।
सहसा नोहरी लाठी टेकती हुई आ कर खड़ी हो गयी।
मैकू ने कहा—काकी, हमें आशिर्वाद दो।
नोहरी—मै तुम्हारे साथ चलती हूँ बेटा! कितना आशिर्वाद लोगे?
कई आदमियों ने एक स्वर से कहा—काकी, तुम चली जाओगी, तो यहॉँ कौन रहेगा?
नोहरी ने शुभ-कामना से भरे हुए स्वर में कहा—भैया, जाने के तो अब दिन ही है, आज न जाऊँगी, दो-चार महीने बाद जाऊँगी। अभी आऊँगी, तो जीवन सफल हो जायेगा। दो-चार महीने में खाट पर पड़े-पड़े जाऊँगी, तो मन की आस मन में ही रह जायेगी। इतने बलक हैं, इनकी सेवा से मेरी मुकुत बन जायगी। भगवान करे, तुम लोगों के सुदिन आयें और मै अपनी जिंदगी में तुम्हारा सुख देख लूँ।
यह कहते हुए नोहरी ने सबको आशीर्वाद दिया और नायक के पास जाकर खड़ी हो गयी।
लोग खड़े देख रहे थे और जत्था गाता हुआ जाता था।
एक दिन यह है कि हम-सा बेहया  कोई नहीं।
नोहरी के पाँव जमीन पर न पड़ते थे; मानों विमान पर बैठी हुई स्वर्ग जा रही हो।

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