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क्रिकेट मैच - प्रेमचंद की हिन्दी कहानी

क्रिकेट मैच - प्रेमचंद की हिन्दी कहानी

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कोई बुरी चीज है, न जिन्दादिली का मैं दुश्मन हूं लेकिन एक लेडी के साथ तो अदब और कायदे का लिहाज रखना ही चाहिए।
सादिक एक प्रतिष्ठित कुल का दीपक है, बहुत ही शुद्ध आचरण, यहां तक कि उसे ठण्डे स्वभाव का भी कह सकते हैं, बहुत घमंडी, देखने में चिड़चिड़ा लेकिन अब वह भी शहीदों में दाखिल हो गया है। कल आप हेलेन को अपने शेर सुनाते रहे और वह खुश होती रही। मुझे तो उन शेरों में कुछ मजा न आया। इससे पहले मैंने इन हजरत को कभी शायरी करते नहीं देखा, यह मस्ती कहां से फट पड़ी है? रुप में जादू की ताकत है औश्र क्या कहूं। इतना भी न सूझा कि उसे शेर ही सुनाना है तो हसरत या जिगर या जोश के कलाम से दो-चार शेर याद कर लेता। हेलेन सका कलाम पढ़ थोड़े  ही बैठी है। आपको शेर कने की क्या जरुरत मगर यही बात उनसे कह दूं तो बिगड़ जाएंगे, समझेंगे मुझे जलन हो रही है। मुझे क्यों जलन होने लगी। हेलेन की पूजा करनेवालों में एक मैं ही हूं? हां, इतना जरुर चाहता है कि वह अच्छे-बुरे की पहचान कर सके, हर आदमी के बेतकल्लुफी मुझे पसन्द नहीं, मगर हेलेन की नजरों में सब बराबर हैं। वह बारी-बारी से सबसे अलग हो जाती है और सबसे प्रेम करती है। किसकी ओर ज्यादा झुकी है, यह फैसला करना मुश्किल है। सादिक की धन-सम्पत्ति से वह जरा भी प्रभावित नहीं जान पड़ती। कल शाम को हम लोग सिनेमा देखने गये थे। सादिक ने आज असाधारण उदारता दिखाई। जेब से वह रुपया निकाल कर सबके लिए टिकट लेने चले। मियां सादिक जो इस अमीरी के बावजूद तंगदिल आदमी हैं, मैं तो कंजूर कहूंगा, हेलेन ने उनकी उदारता को जगा दिया है। मगर हेलेन ने उन्हें रोक लिया और खुद अंदर जाकर सबके लिए टिकट लाई। और यों भी वह इतनी बेदर्दी से रुपया खर्च करती है कि मियां सादिक के छक्के छूट जाते हैं। जब उनका हाथ जेब में जाता है, हेलेन के रुपये काउन्टर पर जा पहुंचते हैं। कुछ भी हो, मैं तो हेलेन के स्वभाव-ज्ञान पर जान देता हूं। ऐसा मालूम होता है वह हमारी फर्माइशों काइन्तजार करती रहती है और उनको पूरा करने में उसे खास मजा आता है। सादिक साहब को उसने अलब भेंट कर दिया जो योरोप के दुर्लभ चित्रों की अनुकृतियों का संग्रह है और जो उसने योरोप की तमाम चित्रशालाओं में जाकर खुद इकट्ठा किया है। उसकी आंखें कितनी सौंदय्र-प्रेमी है। बृजेनद्र जब शाम को अपना नया सूट पहन कर आया, जो उसने अभी सिलाया है, तो हेलेन ने मुस्करा कर कहा-देखों कहीं नजर न लग जाय तुम्हें! आज तो तुम दूसरे युसूफ बने हुए हो। बृजेन्द्र बाग-बाग हो गया। मैंने जब लय के साथ अपनी ताजा गजल सुनाई तो वह एक-एक शेर पर उछल-उछल पड़ी। अदभुत काव्यर्मज्ञ है। मुझे अपनी कविता-रचना पर इतनी खुशी कभी न हुई थी मगर तारीफ जब सबका बुलौवा हो जाये तो उसकी क्या कीमत। मियां सादिक को कभी अपनी सुन्दरता का दावा नहीं हुआ। भीतरी सौंदर्य से आप जितने मालामाल हैं बाहरी सौंदर्य में उतने ही कंगाल। मगर आज शराब के दौर में ज्यों ही उनकी आंखों में सुर्खी आई हेलेन ने प्रेम से पगे हुए स्वर में कहा-भई, तुम्ळारी ये आंखें तो जिगर के पार हुई जाती हैं। और सादिक साहब उस वक्त उसके पैरों पर गिरते-गिरते रुक गये। लज्जा बाधक हुई। उनकी आंखों की ऐसी तारीफ शायद ही किसी ने की हो। मुझे कभी अपने रुप-रंग, चाल-ढाल की तारीफ सुनने नहीं हो सका कि मैं खूबसूरत हूं। यह भ्ज्ञभ् जनता कि हेलेन का यह सब सत्कार कोई मतलब नहीं रखता। लेकिन अब मुझे भी यह बेचैनी होने लगी कि देखो मुझ पर क्या इनायत होती है। कोई बात न थी, मगर मैं बेचैन रहा। जब मैं शाम को यूनिवर्सिटी ग्राउण्ड से खेल की प्रैक्टिस करके आ रहा था तो मेरे ये बिखरे हुए बाल कुछ और ज्यादा बिखरे गये थे। उसने आसक्त नेत्रों से देखकर फौरन कहा-तुम्हारी इन बिखरी हुई जुल्फों पर निसार होने की जी चाहता है! मैं निहाल हो गया, दिल में क्या-क्या तूफान उठे कह नहीं सकता।

मगर खुदा जाने क्यों हम तीनों में से एक भी उसकी किसी अंदाज या रुप की प्रशंसा शब्दों में नहीं कर पाता। हमें लगता है कि हमें ठीक शब्द नहीं मिलते। जो कुछ हम कह सकते हैं उससे कहीं ज्यादा प्रभावित हैं। कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती।
१ फरवरी-हम दिल्ली आ गये। इसी बीच में मुरादाबाद, नैनीताल, देहरादून वगैरह जगहों के दौरे किये मगर कहीं कोई खिलाड़ी न मिला। अलीगढ़ और दिल्ली से कई अच्छे खिलाड़ियों के मिलने की उम्मीद है इसलिए हम लोग वहां कई दिन रहेंगे। एलेविन पूरी होते ही हम लोग बम्बई आ जाएंगे और वहां एक महीने प्रैक्टिस करेंगे। मार्च में आस्ट्रेलियन टीम यहां से रवाना होगी। तब तक वह हिन्दुसतान में सारे पहले से निश्चित मैच खेल चुकी होगी। हम उससे आखिरी मैच खेलेंगे और खुदा ने चाहा तो हिन्दुस्तान की सारी शिकस्तों का बदला चुका देंगे। सादिक और बृजेन्द्र भी हमारे साथ घूमते रहे। मैं तो न चाहता था कि ये लोग आएं मगर हेलेन को शायद प्रेमियों के जमघट में मजा आता हैंहम सबके सब एक ही होटल में हैं और सब हेलेन के मेहमान हैं। स्टेशन पर पहुंचे तो सैकड़ों आदमी हमारा स्वागत करने के लिए मौजूद थे। कई औरतें भी थीं, लेकिन हेलेन को न मालूम क्यों औरतों से आपत्ति है। उनकी संगत से भागती है, खासकर सुन्दर औरतों की छाया से भी दूर रहती है हालांकि उसे किसी सुन्दरी से जलने काकोई कारण नहीं है। यह मानते हुए भी कि हुस्न उस पर खत्म नहीं हो गया है, उसमें आकषर्ण के ऐसे तत्व मौजूद हैं कि कोई परी भी उसके मुकाबे में नहीं खड़ी हो सकती। नख-शिख ही तो सब कुछ नहीं है, रुचि का सौंदर्य, बातचीत का सौंदर्य, अदाओं का सौंदर्य भी तो कोई चीज है। प्रेम उसके दिल में है या नहीं खुदा जाने लेकिन प्रेम के प्रदर्शन में वह बेजोड़ है। दिलजोई और नाजबरदारी के फन में हम जैसे दिलदारों को भी उससे शर्मिन्दा होना पड़ता है। शाम को हम लोग नई दिल्ली की सैर को गए। दिलकश जगह है, खुली हुई सड़कें, जमीन के खूबसूरत टुकड़े, सुहानी रबिशे। उसको बनाने में सरकार ने बेदरेग रुपया खर्च किया है और बेजरुरत। यह रकम रिआया की भलाई पर खर्च की जा सकती थी मगर इसको क्या कीजिए कि जनसाधारण इसके निर्माण से जितने प्रभावित हैं, उतने अपनी भलाई की किसी योजना से न होते। आप दस-पांच मदरसे ज्यादा खोल देते या सड़कों की मरम्मत में या, खेती की जांच-पड़ताल में इस रुपये को खर्च कर देते मगर जनता को शान-शौकत, धन-वैभव से आज भी जितना प्रेम है उतना आपके रचनात्मक कामों से नहीं है। बादशाह की जो कल्पना उसके रोम-रोम में घुल गई है वह अभी सदियों तक न मिटेगी। बादशाह के लिए शान-शौकत जरूरी है। पानी की तरह रुपया बहाना जरूरी है। किफायतशार या कंजूस बादशाह चाहे वह एक-एक पैसा प्रजा की भलाई के लिए खर्च करे, इतना लोकप्रिय नहीं हो सकता। अंग्रेज मनोविज्ञान के पंडित हैं। अंग्रेज ही क्यों हर एक बादशाह जिसने अपने बाहुबल और अपनी बुद्धि से यह स्थान प्राप्त किया है स्वभात: मनोविज्ञान का पण्डित होता है। इसके बगैर जनता पर उसे अधिकार क्यों कर प्राप्त होता। खैर, यह तो मैंने यूंही कहा। मुझे ऐसा अन्देशा हो रहा है शायद हमारी टीम सपना ही रह जाए। अभी से हम लोगों में अनबन रहने लगी है। बृजेन्द्र कदम-कदम पर मेरा विरोध करता है। मैं आम कहूं तो वह अदबदाकर इमली कहेगा और हेलेन को उससे प्रेम है। जिन्दगी के कैसे-कैसे मीठे सपने देखने लगा था मगर बृजेन्द्र, कृतघ्न-स्वार्थी बृजेन्द्र मेरी जिन्दगी तबाह किए डालता है। हम दोनों हेलेन के प्रिय पात्र नहीं रह सकते, यह तय बात है; एक को मैदान से हटाना पड़ेगा।
७ फरवरी-शुक्र है दिल्ली में हमारा प्रयत्न सफल हुआ। हमारी टीम में तीन नये खिलाड़ी जुड़े-जाफर, मेहरा और अर्जुन सिंह। आज उनके कमाल देखकर आस्ट्रेलियन क्रिकेटरों की धाक मेरे दिल से जाती रही। तीनों गेंद फेंकते हैं। जाफर अचूक गेंद फेंकता है, मेहरा सब्र की आजमाइश करता है और अर्जुन बहुत चालाक है। तीनों दृढ़ स्वभव के लोग हैं, निगाह के सच्चे अकथ। अगर कोई इन्साफ से पूछे तो मैं कहूंगा कि अर्जुन मुझसे बेहतर खेलता है। वहदो बार इंगलैण्ड हो आया है। अंग्रेजी रहन-सहन से परिचित है और मिजाज पहचाननेवाला भी अव्वल दर्जे का है, सभ्यता और आचार का पुतला। बृजेन्द्र का रंग फीका पड़ गया। अब अर्जुन पर खास कृपा दृष्टि है और अर्जुन पर फतह पाना मेरे लिए आसान नहीं है, मुझे तो डर है वह कहीं मेरी राह का रोड़ा न बन जाए।
२५ फरवरी-हमारी टीम पूरी हो गई। दो प्लेयर हमें अलीगढ़ से मिले, तीन लाहौर से और एक अजमेर से और कल हम बम्बई आ गए। हमने अजमेर, लाहौर और दिल्ली में वहां की टीमों से मैच खेले और उन पर बड़ी शानदार फतह पाई। आज बम्बई की हिन्दू टीम से हमारा मुकाबला है और मुझे यकीन है कि मैदान हमारे हाथ रहेगा। अर्जुन हमारी टीम का सबसे अच्छा खिलाड़ी है और हेलेन उसकी इतनी खातिदारी करती है लेकिन मुझे जलन नहीं होती, इतनी खातिरदारी तो मेहमान की ही की जा सकती है। मेहमान से क्या डर। मजे की बात यह है कि हर व्यक्ति अपने को हेलेन को कृपा-पात्र समझता है और उससे अपने नाज उठवाता है। अगर किसी के सिर में दर्द है तो हेलेन का फर्ज है कि उसकी मिजाजपुर्सी करे, उसके सर में चन्दन तक घिसकर लगा दे। मगर उसके साथ ही उसका रोब हर एक के दिल पर इतना छाया हुआ है कि उसके किसी काम की कोई आलोचना करने का साहस नहीं कर सकता। सब के सब उसकी मर्जी के गुलाम हैं। वह अगर सबके नाज उठाती है तो हुकूमत भी हर एक पर करती है। शामियाने में एक से एक सुन्दर औरतों का जमघट है मगर हेलेन के कैदियों की मजाल नहीं कि किसी की तरफ देखकर मुस्करा भी सकें। हर एक के दिल पर ऐसा डर छाया रहता है कि जैसे वह हर जगह पर मौजूद है। अर्जुन ने एक मिस परयूं ही कुछ नजर डाली थी, हेलेन ने ऐसी प्रलय की आंख से उसे देखा कि सरदार साहब का रंग उड़ गया। हर एक समझता है कि वह उसकी तकदीर की मालिक है और उसे अपनी तरफ से नाराज करके वह शायद जिन्दा न रह सकेगा। औरों की तो मैं क्या कहूं, मैंने ही गोया अपने को उसके हाथों बेच दिया हैं। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि मुझमें कोई ऐसी चीज खत्म हो गई है जो पहले मेरे दिल में डाह की आग-सी जला दिया करती थी। हेलेन अब किसी से बोले, किसी से प्रेम की बातें करे, मुझे गुस्सा नहीं आता। दिल पर चोट लगती जरूर है मगर इसका इजहार अकेले में आंसू बहाकर करने को जी चाहता है, वह स्वाभिमान कहां गायब हो गया नहीं कह सकता। अभी उसकी नाराजगी से दिल के टुकड़े हो गए थे कि एकाएक उसकी एक उचटती हुई-सी निगाह ने या एक मुस्कराहट ने गुदगुदी पैदा कर दी। मालूम नहीं उसमें वह कौन-सी ताकत है जो इतने हौसलामंद नौजवान दिलों पर हुकूमत कररही है। उसे बहादुरी कहूं। चालाकी और फुर्ती कहूं, हम सब जैसे उसके हाथों की कठपुतलियां हैं। हममें अपनी कोई शाख्सियत, कोई हस्ती नहीं है। उसने अपने सौन्दर्य से, अपनी बुद्धि से, अपने धन से और सबसे ज्यादा सबको समेट सकने की अपनी ताकत से हमारे दिलों पर अपना आधिपत्य जमा लिया है।
१ मार्च-कल आस्ट्रेलियन टीम से हमारा मैच खत्म हो गया। पचास हजार से कम तमाशाइयों की भीड़ न थी। हमने पूरी इनिंग्स से उनको हराया और देवताओं की तरह पुजे। हममें से हर एक ने दिलोजन से काम किया और सभी यकसां तौर पर फूल हुए थे। मैच खत्म होते ही शहरवालों की तरफ से हमें एक शानदार पार्टी दी गई। ऐसी पार्टी तो शायद वाइसराय के सम्मान में भी न दी जाती होगी। मैं तो तारीफों और बधाइयों के बोझ से दब गया, मैंने ४४ रनों में पांच खिलाड़ियों का सफाया कर दिया था। मुझे खुद अपने भयानक गेंद फेंकने पर अचरज हो रहा था। जरूर कोई अलौकिक शक्ति हमारा साथ दे रही थी। इस भीड़ में बम्बई का सौंदर्य अपनी पूरी शान और रंगीनी के साथ चमक रहा था और मुझे दावा है कि सुन्दरता की दृष्टि से यह शहर जितना भाग्यशाली है, दुनिया का कोई दूसरा शहर शायद ही हो। मगर हेलेन इस भीड़ में भी सबकी दृष्टियों का केन्द्र बनी हुई थी। यह जलिम महज हसीन नहीं है, मीठी बोलती भी है और उसकी अदाएं भी मीठी हैं। सारे नौजवान परवानों की तरह उस पर मंडलारहे थे, एक से एक खूबसूरत, मनचले, और हेलेन उनकी भावनाओं से खेल रही थी, उसी तरह जैसे वह हम लोगों की भावनाओं से खेल करती थी। महाराजकुमार जैसा सुन्दर जवान मैंने आज तक नहीं देखा। सूरत से रोब टपकता है। उनके प्रेम ने कितनी सुन्दरियों का दुख दिया है कौन जाने। मर्दाना दिलकशी का जादू-सा बिखेरता चलता है। हेलेन उनसे भी वैसी ही आजाद बेतकल्लुफी से मिली जैसे दूसरे हजारों नौजवानों से। उनके सौन्दर्य का, उनकी दौलत का उस पर जरा भी असर न था। न जाने इतना गर्व, इतना स्वाभिमान उसमें कहां से आ गया। कभी नहीं डगमगाती, कहीं रोब में नहीं आती, कभी किसी की तरफ नहीं झुकती। वही हंसी-मजाक है, वही प्रेम का प्रदर्शन, किसी के साथ कोई विशेषता नहीं, दिलजोई सब की मगर उसी बेपरवाही की शान के साथ।
हम लोग सैर करके कोई दस बजे रात को होटल पहुंचे तो सभी जिन्दगी के नए सपने देख रहे थे। सभी के दिलों में एक धुकधुकी-सी हो रही थी कि देखें जब क्या होता है। आशा और भय ने सभी के दिलों में एक तूफान-सा उठा रक्खा था गोया आज हर एक के जीवन की एक स्मरणीय घटना होनेवाली है। जब क्या प्रोग्राम है, इसकी किसी को खबर न थी। सभी जिन्दगी के सपने देख रहे थे। हर एक के दिल पर एक पागलपन सवार था, हर एक को यकीन था कि हेलेन की दृष्टि उस पर है मगर यह अंदेशा भी हर एक के दिल में था कि खुदा न खास्ता कहीं हेलेन ने बेवफाई की तो यह जान उसके कदमों पर रख देगा, यहां से जिन्दा घर जाना कयामत था।
उसी वक्त हेलेन ने मुझे अपने कमरे में बुला भेजा। जाकर देखता हूं तो सभी खिलाड़ी जमा हैं। हेलेन उस वक्त अपनी शर्बती बेलदार साड़ी में आंखों में चकाचौंध पैदा कर रही थी। मुझे उस पर झुंझलाहट हुई, इस आम मजमे में मुझे बुलाकर कवायद कराने की क्या जरूरत थी। मैं तो खास बर्ताव का अधिकारी था। मैं भूल रहा था कि शायद इसी तरह उनमें से हर एक अपने को खास बर्ताव का अधिकारी समझता हो।
हेलेन ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा-दोस्तों, मैं कह नहीं सकती कि आप लोगों की कितनी कृतज्ञ हूं और आपने मेरी जिंदगी की कितनी बड़ी आरजू पूरी कर दी। आपमें से किसी को मिस्टर रतन लाल की याद आती है?
रतन लाल! उसे भी कोई भूल सकता है! वह जिसने पहली बार हिन्दुस्तान की क्रिकेट टीम को इंगलैण्ड की धरती पर अपने जौहर दिखाने का मौका दिया, जिसने अपने लाखों रुपयों इस चीज की नजर किए और आखिर बार-बार की पराजयों से निराश होकर वहीं इंगलैण्ड में आत्महत्या कर ली। उसकी वह सूरत अब भी हमारी आंखों के सामने फिर रही है।
सब ने कहा-खूब अच्दी तरह, अभी बात ही कै दिन की हैं
आज इस शानदार कामयाबी पर मैं आपको बधाई देती हूं। भगवान ने चाहा तो अगले साल हम इंगलैण्ड का दौरा करेंगे। आप अभी से इस मोर्चे के लिए तैयारियां कीजिए। लुत्फ जो जब है कि हम वहां एक मैच भी न हारें, मैदान बराबर हमारे हाथ रहे। दोसतों, यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। किसी लक्ष्य का पूरा करने के लिए जो काम किया जाता है उसी का नाम जिन्दगी है। हमें कामयाबी वहीं होती हैं जहां हम अपनेपूरे हौसते से काम में लगे हों, वही लक्ष्य हमारा स्वप्न हो, हमारा प्रेम हो, हमारे जीवन का केन्द्र हो। हममें और इस लक्ष्य के बीच में और कोई इच्छा, कोई आरजू दीवार की तरह न खड़ी हो। माफ कीजिएगा, आपने अपने लक्ष्य के लिए जीना नहीं सीखा। आपके लिए क्रिकेट सिर्फ एक मनोरंजन है। आपको उससे प्रेम नहीं। इसी तरह हमारे सैकड़ों दोस्त हैं जिनका दिल कहीं और होता है, दिमाग कहीं और, और वह सारी जिन्दगी का नाकाम रहते हैं। आपके लिए मै। ज्यादा दिलचस्पी की चीज थी, क्रिकेट तो सिर्फ मुझे खुश करने का जरिया था। फिर भी आप कामयाब हुए। मुल्क में आप जैसे हजारों नौजवान हैं जो अगर किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए जीना और मरना सीख जाए तो चमत्कार कर दिखाइए। जाइए और वह कमाल हासिल कीजिए। मेरा रूप और मेरी रातें वासना का खिलौना बनने के लिए नहीं हैं। नौजवानों की आंखों को खुश करने और उनके दिलों में मस्ती पैदा करने के लिए जीना मैं शर्मनाक समझती हूं। जीवन का लक्ष्य इससे कहीं ऊंचा है। सच्ची जिन्दगी वही है जहां हम अपने लिए नहीं सबके लिए जीते हैं।
हम सब सिर झुकाये सुनते रहे और झल्लाते रहे। हेलेन कमरे से निकलर कार पर जा बैठी। उसने अपनी रवानगी का इन्तजाम पहले ही कर लिया था। इसके पहले कि हमारे होश-हवास सही हों और हम परिस्थिति समझें, वह जा चुकी थी।
हम सब हफ्ते-भर तक बम्बई की गलियों, होटलों, बंगलों की खाक छानते रहे, हेलेन कहीं न थी और ज्यादा अफसोस यह है कि उसने हमारी जिंदगी का जो आइडियल रखा वह हमारी पहुंच से ऊंचा है। हेलेन के साथ हमारी जिन्दगी का सारा जोश और उमंग खत्म हो गई।

-‘जमाना’, जुलाई, १९३७

 

 

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