Saurabh Kumar  astrologer spiritual healer writer poet

 

प्रकाश

सौरभ कुमार

(Copyright © Saurabh Kumar)

Founder of brandbharat.com

 

प्रकाश

प्रकाश चाहने पर व्यक्ति को प्रकाश हीं देखना चाहना पड़ता है या हर वस्तु, व्यक्ति या स्वयं के प्रकाश पक्ष का सतत ध्यान करना पड़ता है और वह स्वयं तथा उसका वातावरण प्रकाशित हो उठता है। व्यक्ति जिस का ध्यान / स्मरण करेगा वही प्राप्त होगा। अत: अंधकार का स्मरण तो अंधकार हीं उत्पन्न करेगा। अगर कोई कहता है कि उसे अंधकार से प्रकाश मिल रहा है तो यह उसका प्रतिक्रियात्मक प्रकाश है जो प्रतिक्रिया पर अवलंबित है। और प्यार? अवलंब गिरने पर अवलंबित भी गिर पड़ेगा। अत: सतत प्रकाश पर सदा वर्त्तमान रहने वाले ईश्वर पर अवलंबित प्रकाश का ध्यान हीं श्रेष्ठ है। क्योंकि इसमें ईश्वर और प्रकाश दोनों हीं सम्मिलित है।

भावना का ज्वार आये तो स्वयं को लहरों पर छोड़ देना चाहिए। स्थायी भाव रहने पर स्थायी रह जायेगा और अपने को लहरों पर न छोड़ने पर भी वह टिका हीं रह जायेगा। परंतु क्षणिक भावात्मक हुआ तो लहर स्वयं किनारे पर लगा देगा। अन्यथा लहरों से लड़ने पर ज्यादा देर तक लहर के बजाये भँवर रूपी मानसिक जाल में उलझते रहना पड़ता है।

व्यक्ति जिस अवस्था, विचार में होता है उसके लिए वही सच होता है। कल का क्या सच होगा इसका अंदाज लगा पाना संभव नहीं है। जीवन में सांख्यिकी का सहारा लिया जा सकता है आगामी निर्णय या मन:स्थिति के बारे में। परंतु पूर्ण या सही वस्तुस्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती जो सच हो। सांख्यिकी आंकड़ा पर आधारित है और जीवन बहुत हद तक भावनात्मक संरचना पर।

 

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

top