Saurabh Kumar  astrologer spiritual healer writer poet

 

मुझको अपना हीं बना लो

सौरभ कुमार

(Copyright © Saurabh Kumar)

Founder of brandbharat.com

 

मुझको अपना हीं बना लो

मुझको अपना हीं बना लो
अपने दिल में हीं नहीं
अपने गम को दिल में हीं छुपा लो
अपनी आँखों में हीं नहीं

ना हो सके तो
अपने नफरत को मिटा दो
मेरे मुहब्बत का ये
अंजाम कम तो नहीं

 

लहर का फैलना
परिधि तक जाना
और वापस लौट
जाना समुद्र को
यही तो खासियत है
सागर के सागर होने को।
यह सिर्फ आगे हीं नहीं जाता
अपने मूल तक चला जाता है।
क्या यह पलायन है
या बूढा हो जाना है?
ऐसा हम कैसे कह सकते है
जब कि यह गति के
सीधे मार्ग से चलता है।
कितनी भी उँचे पहाड़ से
चल कर समुद्रतल को
प्राप्त करना हीं गतंव्य है।
समुद्र तल हीं पैमाना है।
यही सत्य है।
पहाड़ की उँचाई भी
समुद्र के तल से हीं
अतंत: उँचाई है।
हर उँची तथ्य को
समुद्र के पास जाना है।
पृथ्वी का गुरूत्व हीं
सागर के रूप में
तरल है। यही है जो
समुद्र में आगे बढ़ाता है
और अपने में समेट लेता है।
हम कहते हैं पृथ्वी एक है।
समुद्र के द्वारा हीं हम पृथ्वी
के जुड़ाव को देख पाते हैं।
सच पूछो तो यह
ब्रह्माण्ड हीं एक सागर है
क्षीरसागर पर विष्णु
का अस्तित्व है।
कई दिशा के आयाम में यह
लहर को बढ़ा और समेट रहा है।

मैं भी लहर हो चुका हूँ
समेटे जाने को। और शायद
तुमसे मिलने को
सागर की विराटता में हीं।

 

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

top