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हस्तलेख

सौरभ कुमार

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हस्तलेख

हस्तलेख मानव की मन:स्थिति का द्योतक है। इसका अर्थ यह है कि जिसे आमतौर पर मन कहा जाता है या दिल उसकी अवस्था का प्रतीक है। बुद्धि या मस्तिष्क का नहीं। अगर हम इसे मस्तिष्क के स्तर पर समझना चाहे तो यह मस्तिष्क के उस भाग से संबंधित है जहाँ से कला का संबंध है। विज्ञान या तत्वज्ञान से नहीं।
ज्ञान के प्रत्यय का संबंध विज्ञान, तर्क या तत्वज्ञान से संबंधित मस्तिष्क के क्षेत्र से है। अत: किसी के बुद्धि के स्तर को समझने के लिए यह देखना जरूरी है कि लेख में क्या लिखा जा रहा है।
मौलिक ध्वनि है। लिपि नकल या अनुकरण है। मौलिकता ध्वनि में अभिव्यक्त होती है। लिपि से हम अनुकरण की प्रवृत्ति का पता लगाते हैं। अत: हम किसी के भीतर के ज्ञान की अभिव्यक्ति हम उसके बोलने की शैली से हीं लगाते हैं। लिपि या हस्तलेख से अनुशासन का पता चलता है।
कलाकार के चयन के लिए हस्तलेख का अध्ययन ठीक है। परंतु चिंतक या ज्ञानी या नवीन उद्भावना करने वाले व्यक्तित्व में अनुकरण से ज्यादा मौलिकता होती है अत: उनका वक्तृत्व ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। एक हीं लिखित वाक्य का उच्चारण या बोलने की शैली दो लोग में अलग होगी। यह उनके भीतर के ज्ञान और मन:स्थिति का प्रभावी सूचक है।
ज्ञान से संबंधित विषय में हस्तलेख की सुंदरता-असुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण वाक्य की संरचना, शब्द चयन, अर्थ की अभिव्यक्ति इन तीनों का मनोविज्ञान पर आधारित मनोविश्लेषण महत्वपूर्ण है। शब्द भंडार का समृद्ध होना भी एक सूचक है।

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

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