छठपर्व :सनातनता की प्राप्ति हेतू महामृत्युंजय व्रतSaurabh Kumar छठपर्व केवल सूर्यास्त तथा सूर्योदय के एक दिन के अर्ध्य का पर्व नहीं है। यह सनातनता की प्राप्ति का पूरी निष्ठा के साथ संकल्प पर अटल रहने का पुन: पुन: जीवन प्राप्ति के लिये अपने समर्पण का व्रत है। महामृत्युंजय महामंत्र के द्वारा शिव वर्त्तमान जीवन, आयु के संकट की रक्षा करते हैं। व्रत के रूप में संकल्प के साथ तत् सत् की स्थिति की प्राप्ति के लिये यह महामृत्युंजय व्रत है। ताकि यह नाशवान रूप भी परिवर्तित होकर सनातन रूप में आनंद का भोग कर सके। यह जगत संपूर्ण रूप से नाद बिंदु का सतत फैलाव और संकुचन है। इसलिए यह जगत लय, प्रलय और नूतन रूप में सृजन पाता है। अत: अगर यह कहें कि परमात्मा, आत्मा और यह प्रकृति सनातन है तो यह भी गलत नहीं होगा। कारण सदा एकरस है। रूप का परिवर्तन सूक्ष्म और स्थूल की लीला है। सूर्य इस सृजन लीला की केन्द्रस्थली है। यह चेतना को भी समेटे है। अत: यह अगर प्राण को दिशा दे तो यह भी गलत नहीं होगा।
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