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शराब की दूकान प्रेमचंद sharaab kee dookaan Premchand's Hindi story

शराब की दूकान प्रेमचंद sharaab kee dookaan Premchand's Hindi story

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शराब की दूकान

 

दारोगा-दो-चार गुण्डे बुलाकर भगा क्यों नहीं देते? मैं कुछ न बोलूँगा। हॉँ, जरा एक बोतल अच्छी-सी भेज देना। कल न जाने क्या भेज दिया, कुछ मजा ही नहीं आया।
थानेदार चला गया, तो चौधरी ने अपने साथी से कहा-देखा कल्लू, थानेदार कितना बिगड़ रहा था? सरकार चाहती है कि हम लोग खूब शराब पीयें और कोई हमें समझाने न पाये। शराब का पैसा भी तो सरकार ही में जाता है?
कल्लू ने दार्शनिक भाव से कहा-हर एक बहाने से पैसा खींचते हैं सब।
चौधरी-तो फिर क्या सलाह है? है तो बुरी चीज?
कल्लू-बहुत बुरी चीज है भैया, महात्मा जी का हुक्म है, तो छोड़ ही देना चाहिए।
चौधरी-अच्छा तो यह लो, आज से अगर पिये तो दोगला।
यह कहते हुए चौधरी ने बोतल जमीन पर पटक दी। आधी बोतल शराब जमीन पर बह कर सूख गयी।
जयराम को शायद जिंदगी में कभी इतनी खुशी न हुई थी। जोर-जोर से तालियॉँ बजा कर उछल पड़े।
उसी वक्त दोनों ताड़ी पीनेवालों मे भी ‘महात्मा जी की जय’ पुकारी और अपनी हॉँड़ी जमीन पर पटक दी। एक स्वयंसेवक ने लपक कर फूलों की माला ली और चारों आदमियों के गले में डाल दी।


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सड़क की पटरी पर कई नशेबाज बैठे इन चारों आदमियों की तरफ उस दुर्बल भक्ति से ताक रहै थे, जो पुरुषार्थहीन मनुष्यों का लक्षण है। वहॉँ एक भी ऐसा व्यक्ति न था, जो अंगरेजों की मांस-मदिरा या ताड़ी को जिंदगी के लिए अनिवार्य समझता हो और उसके बगैर जिंदगी की कल्पना भी न कर सके। सभी लोग नशे को दूषित समझते थे, केवल दुर्बलेन्द्रिय होने के कारण नित्य आ कर पी जाते थे। चौधरी जैसे घाघ पियक्कड़ को बोतल पटकते देख कर उनकी ऑंखें खुल गयीं
एक मरियल दाढ़ीवाले आदमी ने आकर चौधरी की पीठ ठोंकी। चौधरी ने उसे पीछे ढकेल कर कहा-पीठ क्या ठोंकते हो जी, जा कर अपनी बोतल पटक दो।
दाढ़ीवाले ने कहा-आज और पी लेने दो चौधरी! अल्लाह जानता है, कल से इधर भूलकर भी न आऊँगा।
चौधर-जितनी बची हो, उसके पैसे हमसे ले लो। घर जाकर बच्चों को मिठाई खिला देना।
दाढ़ीवाले ने जा कर बोतल पटक दी और बोला-लो, तुम भी क्या कहोगे? अब तो हुए खुश!
चौधरी-अब तो न पीयोगे कभी?
दाढ़ीवाले ने कहा-अगर तुम न पीयोगे, तो मैं भी न पीऊँगा। जिस दिन तुमने पी, उसी दिन फिर शुरू कर दी।
चौधरी की तत्परता से दुराग्रह की जड़ें हिला दीं। बाहर अभी पॉँच-छह आदमी और थे। वे सचेत निर्लज्जता से बैठे हुए अभी तक पीते जाते थे। जयराम ने उनके सामने जा कर कहा-भाइयों, आपके पॉँच भाइयों ने अभी आपके सामने अपनी-अपनी बोतल पटक दी। क्या आप उन लोगों को बाजी जीत ले जाने देंगे?
एक ठिगने, काले आदमी ने जो किसी अँगरेज का खाननामा मालूम होता था, लाल-लाल ऑंखें निकाल कर कहा-हम पीते हैं, तुमसे मतलब? तुमसे भीख मॉँगने तो नहीं जाते?
जयराम ने समझ लिया, अब बाजी मार ली। गुमराह आदमी जब विवाद करने पर उतर आये, तो समझ लो, वह रास्ते पर आ जायेगा। चुप्पा ऐब वह चिकना घड़ा है, जिस पर किसी बात का असर नहीं होता।
जयराम ने कहा-अगर मै अपने घर में आग लगाऊँ, तो उसे देखकर क्या आप मेरा हाथ न पकड़ लेंगे,? मुझे तो इसमें रत्ती भर संदेह नहीं है कि आप मेरा हाथ ही न पकड़ लेंगे, बल्कि मुझे वहॉँ से जबरदस्ती खींच ले जायेंगे।
चौधरी ने खानसामा की तरफ मुग्ध ऑंखों से देखा, मानों कह रहा है-इसका तुम्हारे पास क्या जवाब है? और बोला-जमादार, अब इसी बात पर बोतल पटक दो।
खानसामा ने जैसे काट खाने के लिए दॉँत तेज कर लिए और बोला-बोतल क्यों पटक दूँ, पैसे नहीं दिये है?
चौधरी परास्त हो गया। जयराम ने बोला- इन्हें छोड़िए बाबू जी, यह लोग इस तरह मानने वाले असामी नहीं है। आप इनके सामने जान भी दे दें तो भी शराब न छोड़ेंगे। हॉँ, पुलिस की एक घुड़की पा जायँ तो फिर कभी इधर भूल कर भी न आयें।
खानसामा ने चौधरी की ओर तिरस्कार के भाव रो देखा, जैसे कह रहा हो-क्या तुम समझते हो कि मैं मनुष्य हूँ, यह सब पशु है? फिर बोला- तुमसे क्या मतलब है जी, क्यों बीच में कूद पड़ते हो? मैं तो बाबू जी से बात कर रहा हूँ। तुम कौन होते हो बीच में बोलने वाले? मै तुम्हारी तरह नहीं हूँ कि बोतल पटक कर वाह-वाह कराऊँ। कल फिर मुँह में कालिख लगाऊँ, घर पर मँगवा कर पीऊँ? जब यहॉँ छोड़ेंगे, तो सच्चे दिल से छोड़ेंगे। फिर कोई लाख रुपये भी दे तो ऑंख उठा कर न देखें।
जयराम-मुझे आप लोगों से ऐसी ही आशा है।
चौधरी ने खानसामा की ओर कटाक्ष करके कहा-क्या समझते हो, मैं कल फिर पीने आऊँगा?
खानसामा ने उद्दडंता से कहा-हॉँ-हॉँ; कहता हूँ, तुम आओगे और बद कर आओगे। कहो, पक्के कागज पर लिख दूँ!
चौधरी-अच्छा भाई, तुम बड़े धरमात्मा हो, मैं पापी सही। तुम छोड़ोगे तो जिंदगी-भर के लिए छोड़ोगे, मैं आज छोड़ कर कल फिर पीने लगूंगा, यही सही। मेरी एक बात गॉँठ बॉँध लो। तुम उस बखत छोड़ोगे, जब जिंदगी तुम्हारा साथ छोड़ देगी। इसके पहले तुम नहीं छोड़ सकते। जब जिंदगी तुम्हारा साथ छोड़ देगी। इसके पहले तुम नहीं छोड़ सकते।
खासनामा-तुम मेरे दिल का हाल क्या जानते हो?
चौधरी-जानता हूँ, तुम्हारे जैसे सैकड़ों आदमी को भुगत चुका हूँ।
खासनामा-तो तुमने ऐसे-वैसे बेशर्मों को देखा होगा। हयादार आदमियों को न देखा होगा।
यह कहते हुए उसने जा कर बोतल पटक दी और बोला-अब अगर तुम इस दूकान पर देखना, तो मुहॅं में कालिख लगा देना।
चारों तरफ तालियॉँ बजने लगीं। मर्द ऐसे होते हैं!
ठीकेदार ने दूकान के नीचे उतर कर कहा-तुम लोग अपनी-अपनी दूकान पर क्यों नहीं जाते जी? मैं तो किसी की दूकान पर नहीं जाता?

एक दर्शक ने कहा-खड़े हैं, तो तुमसे मतलब? सड़क तुम्हारी नहीं हैं? तुम गरीबों को लूट जाओ। किसी के बाल-बच्चे भूखों मरें तुम्हारा क्या

बिगड़ता है। (दूसरे शराबियों सें) क्या यारो, अब भी पीते जाओगे! जानते हो, यह किसका हुक्म है? अरे कुछ भी तो शर्म हो?
जयराम ने दर्शकों से कहा-आप लोग यहॉँ भीड़ न लगायें और न किसी को भला-बुरा कहै।
मगर दर्शकों का समूह बढ़ता जाता था। अभी तक चार-पॉँच आदमी बे-गम बैठे हुए कुल्हड़ चढ़ा रहै थे। एक मनचले आदमी ने जा कर उस बोतल को उठा लिया, जो उनके बीच मे रखी हुई थी और उसे पटकना चाहता था कि चारों शराबी उठ खड़े हुए और उसे पीटने लगे। जयराम और उसके स्वयं सेवक तुरंत वहॉँ पहुँच गये और उसे बचाने की चेष्टा करने लगे कि चारों उसे  छोड़ कर जयराम की तरफ लपके। दर्शकों ने देखा कि जयराम पर मार पड़ा चाहती है, तो कई आदमी झल्ला कर उन चारों शराबियों पर टूट पड़े। लातें, घूँसे और डंडे चलाने लगे। जयराम को इसका कुछ अवसर न मिलता था कि किसी को समझाये। दोनों हाथ फैलाये उन चारों के वारों से बच रहा था; वह चारों भी आपे से बाहर होकर दर्शकों पर डंडे चला रहै थे। जयराम दोनों तरफ से मार खाता था। शराबियों के वार भी उस पर पड़ते थे, तमाशाईयों के वार भी उसी पर पड़ते थे; पर वह उनके बीच से हटता न था। अगर वह इस वक्त अपनी जान बचा कर हट जाता, तो शराबियों की खैरियत न थी। इसका दोष कॉँग्रेस पर पड़ता। वह कॉँग्रेस का इस आक्षेप से बचाने के लिए अपने प्राण देने पर तैयार था। मिसेज सकसेना का अपने ऊपर हँसने का मौका वह न देना चाहता था।
आखिर उसके सिर पर डंडा इस जोर से पड़ा कि वह सिर पकड़ कर बैठ गया। आँखों के के सामने तितलियॉँ उड़ने लगी। फिर उसे होश न रहा।


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जयराम सारी रात बेहोश पड़ा रहा। दूसरे दिन सुबह को जब उसे होश आया, तो सारी देह में पीड़ा हो रही थी और कमजोरी इतनी थी कि रह-रह कर जी डूबता जाता था। एकाएक सिरहाने की तरफ ऑंख उठ गयी, तो मिसेज सकसेना बैठी नजर आयीं। उन्हें देखते ही स्वयंसेवकों के मना करने पर भी उठ बैठा। दर्द और कमजोरी दोनो जैसे गायब हो गयी। एक-एक अंग में स्फूर्ति दौड़ गयी।

मिसेज सकसेना ने उसके सिर पर हाथ रख कर कहा-आपको बड़ी चोट आयी। इसका सारा दोष मुझ पर है।

जयराम ने भक्तिमय कृतज्ञता के भाव से देख कर कहा-चोट तो ऐसी ज्यादा न था, इन लोगों ने बरबस पट्टी-सट्टी बॉँध कर जख्मी बना दिया।
मिसेज सकसेना ने ग्लानित हो कर कहा-मुझे आपको न जाने देना चाहिए था।
जयराम-आपका वहॉँ जाना उचित न था। मैं आपसे अब भी यही
अनुरोध करूँगा कि उस तरफ न जाइएगा।
मिसेज सकसेना ने जैसे उन बाधाओं पर  हॅंस कर कहा-वाह! मुझे आज से वहॉँ पिकेट करने की आज्ञा मिल गयी है।
‘आप मेरी इतनी विनय मान जाइएगा। शोहदों के लिए आवाज कसना बिलकुल मामूली बात है।’
‘मैं आवाजों की परवाह नहीं करती!’
‘तों फिर मैं भी आपके साथ चलूँगा’
‘आप इस हालत में?’-मिसेज सकसेना ने आश्चर्य से कहा।
‘मैं बिलकुल अच्छा हूँ, सच!
‘यह नहीं हो सकता। जब तक डाक्टर यह न कह देगा कि अब आप वहॉँ जाने के योग्य हैं, आपको न जाने दूँगी। किसी तरह नहीं।’
‘तो मैं भी आपको न जाने दूँगी।’
मिसेज सकसेना ने मृद़ु-व्यंग के साथ कहा-आप भी अन्य परुषों ही की भाँति स्वार्थ के पुतले हैं। सदा यश खुद लूटना चाहते हैं, औरतों को कोई मौका नहीं देना चाहते। कम से कम यह तो देख लीजिए कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ या नहीं।
जयराम ने व्यथित कंठ से कहा-जैसी आपकी इच्छा!


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तीसरे पहर मिसेज सकसेना चार स्वयंसेवकों के साथ बेगमगंज चलीं। जयराम ऑंखें बंद किए चारपाई पर पड़ा था। शोर सुन कर चौंका और अपनी स्त्री से पूछा-यह कैसा शोर है?
स्त्री ने खिड़की से झॉँक कर देखा और बोली-वह औरत, जो कल आयी थी झंडा लिए कई आदमियों के साथ जा रही है। इसमें शर्म भी नहीं आती।

जयराम ने उसके चेहरे पर क्षमा की दृष्टि डाली और विचार में डूब गया। फिर वह उठ खड़ा हुआ और बोला-मैं भी वहीं जाता हूँ।

 

स्त्री ने उसका हाथ पकड़ कर कहा-अभी कल मार खा कर आये हो, आज फिर जाने की सूझी!
जयराम ने हाथ छुड़ा कर कहा-तुम उसे मार कहती हो, मैं उसे उपहार समझता हूँ।
स्त्री ने उसका रास्ता रोक लिया-कहती हूँ, तुम्हारा जी अच्छा नहीं है, मत जाओ, क्यों मेरी जान के ग्राहक हुए हो? उसकी देह में हीरे
नहीं जड़े हैं, जो वहॉँ कोई नोच लेगा!
जयराम ने मिन्नत करके कहा-मेरी तबीयत बिलकुल अच्छी है चम्मू! अगर कुछ कसर है तो वह भी मिट जाएगी। भला सोचो, यह कैसे मुमकिन है कि देवी उन शोहदों के बीच में पिकेटिंग करने जाय और मैं बैठा रहूँ। मेरा वहॉँ रहना जरूरी है! अगर कोई बात आ पड़ी, तो कम से कम मैं लोगों को समझा तो सकूँगा।
चम्मू ने जल कर कहा-यह क्यों नहीं कहते कि कोई और ही चीज खींचे लिये जाती है!
जयराम ने मुस्करा कर उसकी ओर देखा, जैसे कह रहा हो-यह बात  तुम्हारे दिल से नहीं, कंठ से निकल रही है और कतरा कर निकल गया। फिर द्वार पर खड़ा होकर बोला-शहर में तीन लाख से कुछ ही कम आदमी है, कमेटी में तीस मेम्बर हैं; मगर सब के सब जी चुरा रहै हैं। लोगों को अच्छा बहाना मिल गया कि शराबखानों पर धरना देने के लिए  स्त्रियों ही को इस काम के लिए उपयुक्त समझा जाता है? इसीलिए कि मरदों के सिर भूत सवार हो जाता है और जहॉँ नम्रता से काम लेना चाहिए, वहॉँ लोग उग्रता से काम लेने लगते हैं। वे देवियॉँ क्या इसी योग्य हैं कि शोहदों के फिकरे सुनें और उनकी कुदृष्टि का निशाना बनें? कम से कम मैं यह नहीं देख सकता।
वह लँगड़ाता हुआ घर से निकल पड़ा। चम्मू ने फिर उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। रास्ते में एक स्वयंसेवक मिल गया। जयराम ने उसे साथ लिया और एक तॉँगे पर बैठ कर चला। शराबखाने से कुछ दूर इधर एक लेमनेड-बर्फ की दूकान थी। उसने तॉँगें को छोड़ दिया और वालंटियर को शराबखाने भेज कर खुद उसी दूकान में जा बैठा।

     दूकानदार ने लेमनेड का एक गिलास उसे देते हुए कहा-बाबू जी, कलवाले चारों बदमाश आज फिर आये हुए हैं। आपने न बचाया होता तो आज शराब या ताड़ी की जगह हल्दी-गुड़ पीते होते।

 

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