मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-32

पेज-328

'इंसान का स्वभाव सारी दुनिया में एक-सा है।'

'मगर यह भी मालूम रहे कि हर एक कौम में एक ऐसी चीज है जिसे उसकी आत्मा कह सकते हैं। असमत (सतीत्व) हिंदुस्तानी तहजीब की आत्मा है।'

'अपने मुँह मियाँ-मिट्ठू बन लीजिए।'

'दौलत की आप इतनी बुराई करते हैं, फिर भी खन्ना की हिमायत करते नहीं थकते। कहिएगा!'

मेहता का तेज विदा हो गया। नम्र भाव से बोले - मैंने खन्ना की हिमायत उस वक्त की है, जब वह दौलत के पंजे से छूट गए हैं, और आजकल आप उनकी हालत देखें तो आपको दया आएगी। और मैं क्या हिमायत करूँगा, जिसे अपनी किताबों और विद्यालय से छुट्टी नहीं, ज्यादा-से-ज्यादा सूखी हमदर्दी ही तो कर सकता हूँ। हिमायत की है मिस मालती ने कि खन्ना को बचा लिया। इंसान के दिल की गहराइयों में त्याग और कुर्बानी में कितनी ताकत छिपी होती है, इसका मुझे अब तक तजरबा न हुआ था। आप भी एक दिन खन्ना से मिल आइए। फूला न समाएगा। इस वक्त उन्हें जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह हमदर्दी है।

मिर्जा ने जैसे अपनी इच्छा के विरुद्ध कहा - आप कहते हैं, तो जाऊँगा। आपके साथ जहन्नुम में जाने में भी मुझे उज्र नहीं, मगर मिस मालती से तो आपकी शादी होने वाली थी। बड़ी गर्म खबर थी।

मेहता ने झेंपते हुए कहा - तपस्या कर रहा हूँ। देखिए, कब वरदान मिले।

'अजी, वह तो आप पर मरती थी।'

'मुझे भी यही वहम हुआ था, मगर जब मैंने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ना चाहा तो देखा, वह आसमान पर जा बैठी है। उस ऊँचाई तक तो क्या मैं पहुँचूँगा, आरजू-मिन्नत कर रहा हूँ कि नीचे आ जाए। आजकल तो वह मुझसे बोलती भी नहीं।'

यह कहते हुए मेहता जोर से रोती हुई हँसी हँसे और उठ खड़े हुए।

मिर्जा ने पूछा - अब फिर कब मुलाकात होगी?

'अबकी आपको तकलीफ करनी पड़ेगी। खन्ना के पास जाइएगा जरूर।'

'जाऊँगा।'

मिर्जा ने खिड़की से मेहता को जाते देखा। चाल में वह तेजी न थी, जैसे किसी चिंता में डूबे हों।

 

 

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