Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

हिन्दी के कवि

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

(1896-1961 ई.)

'निराला ‘का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल में हुआ। शिक्षा संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी में हुई। हिंदी इन्होंने स्वयं व्याकरण के सहारे सीखी तथा प्रयाग को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। इन्होंने 'मतवाला का संपादन किया। अपने अलमस्त और फक्कड स्वभाव के कारण ये आजीवन विषमताओं से जूझते रहे। ये छायावाद के दैदीप्यमान नक्षत्र और मुक्त छंद के आद्यप्रणेता हैं। छंद, भाषा, शैली और भाव संबंधी इनके नवीन दृष्टिकोण ने हिंदी काव्य को नई दिशा दी। इस कारण ये रूढिवादी कवियों की आलोचना के पात्र भी बने।

इनकी मुख्य काव्य कृतियां हैं- 'अनामिका, 'परिमल, 'अपरा, 'अर्चना, 'गीतिका तथा 'तुलसीदास। 'निराला रचित 'सरोज स्मृति (कविता) हिंदी का सर्वश्रेष्ठ शोक-गीत है और 'राम की शक्ति पूजा अप्रतिम महाकाव्यात्मक कविता है। हिंदी कविता की भाषा में जितना कसाव निराला में मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। 'अप्सरा, 'अलका, 'बिल्लेसुर बकरिहा इनके उपन्यास तथा 'प्रबंध पद्म और 'प्रबंध प्रतिमा निबंध संग्रह हैं।

संध्या सुंदरी

दिवसावसान का समय-
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या-सुंदरी, परी-सी,
धीरे, धीरे, धीरे,
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,
किंतु जरा गंभीर, नहीं है उनमें हास-विलास।
हंसता है तो केवल तारा एक-
गुंथा हुआ उन घुंघराले काले-काले बालों से,
हृदय राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।
अलसता की-सी लता,
किंतु कोमलता की वह कली,
सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बांह,
छांह सी अम्बर-पथ से चली।
नहीं बजती उसके हाथों में कोई वीणा,
नहीं होता कोई अनुराग-राग-अलाप,
नूपुरों में भी रुन-रुन रुन-झुन नहीं,
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द-सा 'चुप चुप चुप
है गूंज रहा सब कहीं-
व्योम मंडल में, जगतीतल में-
सोती शांत सरोवर पर उस अमल कमलिनी दल में-
सौंदर्य-गर्विता-सरिता के अति विस्तृत वक्षस्थल में-
धीर-वीर गंभीर शिखर पर हिमगिरि-अटल-अचल में
उत्ताल तरंगाघात-प्रलय घनगर्जन-जलाधि-प्रबल में-
क्षिति में जल में नभ में अनिल-अनल में-
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द-सा 'चुप चुप चुप
है गूंज रहा सब कहीं-
और क्या है? कुछ नहीं।
मदिरा की वह नदी बहाती आती,
थके हुए जीवों को वह सस्नेह,
प्याला एक पिलाती।
सुलाती उन्हें अंक पर अपने,
दिखालती फिर विस्मृति के वह अगणित मीठे सपने।
अर्ध्दरात्रि की निश्चलता में हो जाती जब लीन,
कवि का बढ जाता अनुराग,
विरहाकुल कमनीय कंठ से,
आप निकल पडता तब एक विहाग!

वीणावादिनी

वरदे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।
नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मंद्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।

राम की शक्ति पूजा (अंश)

'यह है उपाय कह उठे राम ज्यों मंद्रित घन-
'कहती थीं माता मुझे सदा राजीव-नयन!
दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मात: एक नयन।
कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक,
ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक;
ले अस्त्र वामकर, दक्षिण कर दक्षिणलोचन
ले अर्पित करने को उद्यत हो गए सुमन।
जिस क्षण बंध गया बेधने को दृग दृढ निश्चय,
कांपा ब्रह्मांड, हुआ देवी का स्वरित उदय!
'साधु, साधु, साधक-धीर, धर्म-घन-धन्य राम।
कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर-स्कंध पर, रहा दक्षिण हरि पर,
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध-अस्त्र-सज्जित,
मंद-स्मित मुख, लख र्हुई विश्व की श्री लज्जित,
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बाएं रण-रंग-राग,
मस्तक पर शंकर। पद पद्मों पर श्रध्दाभर
श्री राघव हुए प्रणत मंद-स्वर-वंदन कर।
'होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन।
कह महाशक्ति राम के वदन में हुईं लीन।

 

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217