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हिन्दी के कवि

श्यामनारायण पाण्डेय

(1907-1989 ई.)

श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म आजमगढ के डुमराँव गाँव में हुआ। इन्होंने काशी से साहित्याचार्य किया। पाण्डेयजी वीर रस के अनन्य गायक हैं। इन्होंने चार महाकाव्य रचे, जिनमें 'हल्दीघाटी और 'जौहर विशेष चर्चित हुए। 'हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप के जीवन और 'जौहर में रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। 'हल्दीघाटी पर इन्हें देव पुरस्कार प्राप्त हुआ। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण ये कवि सम्मेलनों में बडे लोकप्रिय थे।

हल्दीघाटी

सावन का हरित प्रभात रहा, अम्बर पर थी घनघोर घटा,
फहराकर पंख थिरकते थे, मन हरती थी वन-मोर-छटा।
पड रही फुही झींसी झिनमिन, पर्वत की हरी वनाली पर,
'पी कहाँ पपीहा बोल रहा, तरु-तरु की डाली-डाली पर।
वारिद के उर में चमक-दमक, तड-तड थी बिजली तडक रही,
रह रहकर जल था बरस रहा, रणधीर-भुजा थी फडक रही।
धरती की प्यास बुझाने को, वह घहर रही थी घन-सेना,
लो पीने के लिए खडी, यह हहर रही थी जन-सेना।
नभ पर चम-चम चपला चमकी, चम-चम चमकी तलवार इधर,
भैरव अमंद घन-नाद उधर, दोनों दल की ललकार इधर।
वह कड-कड कड-कड उठी, यह भीमनाद से तडक उठी,
भीषण संगर की आग प्रबल, वैरी सेना में भडक उठी।
डग-डग डग-डग रण के डंके, मारू के साथ भयद बाजे,
टप-टप-टप घोडे कूद पडे, कट-कट मतंग के रद बाजे।
कल-कल कर उठी शत्रु सेना, किलकार उठी ललकार उठी,
असि म्यान विवर से निकल तुरत, अहि-नागिन-सी फुफकार उठी
फर-फर-फर-फर फहर उठा, अकबर का अभिमानी निशान,
बढ चला कटक लेकर अपार, मद-मस्त द्विरद पर मस्त-मान।

 

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