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हिन्दी के कवि

कण्हपा

(10 वीं शताब्दी अनुमानित)

कण्ह, कान्ह, कण्हपा अथवा कृष्णपाद एक ही व्यक्ति के नाम हैं। किंवदंतियों के अनुसार ये मत्स्येन्द्रनाथ और तंतिपा के गुरुभाई थे। घंटापाद के शिष्य कूर्मपाद की संगति में आकर उनके शिष्य बन गए थे। ये कापालिक मतावलंबी थे। इनका समय 10 वीं शताब्दी मानते हैं। डॉ. शहीदुल्ली इन्हें और पीछे 750 वि. में रखते हैं। इनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि बिहार-बंगाल में कहीं रही होगी। कण्हपा के दोहे और चर्यापद मिलते हैं। दोहों का विषय बौध्द तंत्र और योग है। सिध्दों की परंपरा में इन्होंने गुह्म पारिभाषिक शब्दों के प्रतीकों का प्रयोग कर तंत्र और योग की बातें कही हैं।

दोहे

एवंकार बीअ लहइ कुसुमिअउ अरविंदए।
महुअर रुएँ सुरत्प्रवीर जिंघइ म अरंदए॥
जिमि लोण बिलज्जइ पणिएहि तिमि घरणी लइ चित्त।
समरस जाइ तक्खणो जइ पुणु ते सम चित्त॥

(सहस्रार कमल में महामुद्रा धारण कर सुरतवीर (योगी) उसी प्रकार आनंद का अनुभव करता है जैसे भौंरा पराग को सूँघता है।

यदि साधक समरसता प्राप्त करना चाहता है तो अपने चित्त को गृहिणी (महामुद्रा) में उसी प्रकार घुला मिला दे जैसे पानी में नमक घुल मिल जाता है।

 

National Record 2012

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Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

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