(जन्म 1935 ई.)
कैलाश वाजपेयी का जन्म हमीरपुर में हुआ। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की तथा दिल्ली के शिवाजी कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। सम्प्रति स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। इनकी प्रतिभा बहुमुखी है। ये बहुभाषाविद हैं तथा इन्होंने स्पेनिश, जर्मन और अंग्रेजी में गद्य और पद्य के अनेक अनुवाद किए हैं। इन्होंने भगवद्गीता का स्पेनिश में अनुवाद किया। इन्होंने कविता के अलावा निबंध तथा कहानियां भी लिखी हैं। इनके मुख्य कविता-संग्रह हैं : 'संक्रांत, 'तीसरा अंधेरा, 'देहांत से हटकर, 'महास्वप्न का मध्यांतर आदि। इनकी कविता में कहीं व्यंग्य है, तो कहीं दार्शनिकता।
पिशाच संस्कृति
कितना अच्छा है अब,
सभी झूठ बोलते हैं
कितना अच्छा है अब,
सभी घृणा करते हैं
अपरिचय के माध्यम से जुडते हैं,
अपरिचित बिछुडते हैं।
कितना अच्छा है अब,
सब धोखा देते हैं,
अविश्वास करते हैं,
कुएं से निकल कर-
कितना अच्छा है सब
खाई में गिरते हैं।
न कोई रोता है,
न कोई हंसता है,
कितना अच्छा है अब
हर कोई डंसता है
कितना अच्छा है सब-
सिक्का पकडते हैं
भूखे कुत्तों की तरह लडते हैं।
कितना अच्छा है सब
कांटे उगाते हैं।
एक ही अक्षर को
क्रोध में गाते हैं।
कितना अच्छा है सब
परकीया करते हैं
कितना अच्छा है सब
आदमी से डरते हैं।
और चाहे कुछ भी नहीं दिया सभ्यता ने,
कम-से-कम यह तो किया है, सभी को-
बराबर अमानव बना दिया।
***
ऊंचे धरातल से वह
तुममें सुगंध और रंग की
एक बेजबान नदी बंद है
तुम्हें अगर खिलना
आ जाए
दुर्दिन नस जाए
उपवन का
क्रांति उतर सकती है
अगर तुम्हें
खिलाना आ जाए
फिर दोहराता हूँ
तुम विस्तृत साम हो
बांस बेदे
अगर कहीं आग दाग जाए
मिल पाए छांह
नील होठों की
तुममें वह क्षमता है
यह बंजर राज्य खरझरीला
मधुवन बन सकता है
कैद है तुममें
ऐसा आकाश
अनवरुध्द
कोख
हर सरगम की।
***
आदिम सवाल
जब तुम पैदा हुए थे
तब नहीं पूछा क्यों
जब तुम मर चुके होंगे।
तब नहीं पूछोगे क्यों
फिर यह बीच की अवधि में
क्यों क्यों क्यों?
***
बका
बूंद-बूंद बनकर
बार-बार
बीच में खो जाती है धार
बडकी नदी से
मिलूं
तो समुद्र मिले।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217