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हिन्दी के कवि

दुष्यंत कुमार

(1933-1975 ई.)

दुष्यंत कुमार का जन्म बिजनौर के राजपुर नवादा ग्राम में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए., बी.टी. किया। नौकरी के साथ-साथ स्वतंत्र लेखन चलता रहा। इनके मुख्य काव्य-संग्रह है : 'सूर्य का स्वागत, 'आवाजों के घेरे, 'एक कंठ विषपायी, 'जलते हुए वन का वसंत, 'छोटे-छोटे सवाल, 'आंगन में एक वृक्ष तथा 'साए में धूप। इन्होंने हिन्दी गजल को नया तेवर एवं नया आयाम दिया।

अभिव्यक्ति का प्रश्न
प्रश्न अभिव्यक्ति का है,
मित्र!
किसी मर्मस्पर्शी शब्द से
या क्रिया से,
मेरे भावों, अभावों को भेदो
प्रेरणा दो!
यह जो नीला
जहरीला धुआं भीतर उठ रहा है,
यह जो जैसे मेरी आत्मा का गला घुट रहा है,
यह जो सद्य-जात शिशु सा
छटपटा रहा है,
यह क्या है,
क्या है मित्र,
मेरे भीतर झांककर देखो।
छेदो! मर्यादा की इस लौह-चादर को,
मुझे ढंके बैठी जो,
उठने मुस्कराने नहीं देती,
दुनिया में आने नहीं देती।
मैं जो समुद्र-सा
सैकडों सीपियों को छिपाए बैठा हूँ,
सैकडों लाल मोती खपाए बैठा हूँ,
कितना विवश हूँ!
मित्र, मेरे हृदय का यह मंथन
यह सुरों और असुरों का द्वंद्व
कब चुकेगा?
कब जागेगी शंकर की गरल पान करने वाली करुणा?
कब मुझे हक मिलेगा
इस मंथन के फल को प्रगट करने का?
मूक!
असहाय!!
अभिव्यक्ति-हीन!!!
मैं जो कवि हूँ,
भावों-अभावों के पाटों में पडा हुआ
एकाकी दाने-सा
कब तक जीता रंगा?
कब तक कमरे के बाहर पडे हुए गर्दखोर-सा
जीवन का यह क्रम चलेगा?
कब तक जिंदगी की गर्द पीता रंगा?
प्रश्न अभिव्यक्ति का है मित्र!
ऐसा करो कुछ
जो मेरे मन में कुलबुलाता है
बाहर आ जाए!
भीतर शांति छा जाए!
***
गजल
बाढ की संभावनाएं सामने हैं।
और नदियों के किनारे घर बने हैं।

चीड-वन में आंधियों की बात मत कर
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं।

इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं है
जिस तरह टूटे हुए ये आईने हैं।

आपके कालीन देखेंगे किसी दिन
इस समय तो पांव कीचड में सने हैं।

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं।

अब तडपती-सी गजल कोई सुनाए
हमसफर ऊंघे हुए हैं, अनमने हैं।

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217