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हिन्दी के कवि

दयाबाई

(1693-1773 ई.)

दयाबाई राजस्थान की रहने वाली थीं। ये सहजो बाई की गुरुबहन थीं। ये आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर दिल्ली में अपने गुरु चरणदास की सेवा करती थीं। 'दया-बोध इनका काव्य-संग्रह है। इन्होंने निर्गुण परक पद, साखी, चौपाई आदि लिखी हैं जिनमें भाव की तन्मयता है। इनकी भाषा परिष्कृत ब्रज भाषा है।

साखी

कं धरत पग, परत कहुं, उमगि गात सब देह।
दया मगन हरि रूप में, दिन-दिन अधिक सनेह॥

प्रेम मगन जे साध गन, तिन मति कही न जात।
रोय-रोय गावत हंसत, दया अटपटी बात॥

दया कह्यो गुरदेव ने, कूरम को व्रत लेहि।
सब इद्रिन कूं रोक करि, सुरत स्वांस में देहि॥

बिन रसना बिन मालकर, अंतर सुमिरन होय।
दया-दया गुरदेव की, बिरला जानै कोय॥

बिन दामिनि उजियार अति, बिन घन पडत फुहार।
मगन भयो मनुवां तहां, दया निहार निहार॥

नहिं संजम नहिं साधना, नहिं तीरथ व्रत दान।
मात भरोसे रहत है, ज्यों बालक नादान॥

लाख चूक सुत से पर, सो कछु तजि नहिं देह।
पोष चुचुक लै गोद में, दिन-दिन दूनो नेह॥

तुमही सूं टेका लगो, जैसे चंद्र चकोर।
अब कासूं झंखा करौं, मोहन नंदकिसोर॥

 

National Record 2012

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