(1747-1803 ई. अनुमानित)
बोधा का मूल नाम बुध्दिसेन था। ये बाँदा जिले के राजापुर ग्राम के निवासी थे तथा जाति के ब्राह्मण थे। इन्होंने पन्ना राज्य के दरबार में प्रतिष्ठा पाई थी। कहते हैं दरबार की 'सुभान नामक नर्तकी से इन्हें प्रेम हो गया था तथा वही इनके काव्य की मूल प्रेरणा बनी। इनके दो ग्रंथ मिलते हैं- 'इश्कनामा तथा 'विरह-वारीश। 'इश्कनामा प्रेम की पीर में डूबे हुए स्फुट छंदों का संग्रह है, 'विरह-वारीश माधवानल-काम-कंदला की सुप्रसिध्द प्रेम कथा है। इनके काव्य में प्रेममार्गी भाव तत्व की प्रधानता है।
पद
अति छीन मृनाल के तारहु ते, तेहि ऊपर पाँव दै आवनो है।
सुई बेह ते द्वार सकीन तहाँ, परतीति को टाँलदावनो है॥
'कवि बोधा अनी घनी नेजहुँ ते, चतिापै न चित्त डरावनो है।
यह प्रेम को पंथ कराल महा, तरवार की धार पै धावनो है॥
वह प्रीति की रीति को जानत थो, तबहीं तो बच्यो गिरि ढाहन तैं।
गजराज चिकारि कै प्रान तज्यो, न जरयो सँग होलिका दाहन तैं॥
'कवि बोधा कछू न अनोखी यहै, का बनै नहीं प्रीति निबाहन तैं।
प्रह्लाद की ऐसी प्रतीति करै, तब क्यों न कप्रभु पाहन तैं॥
लोक की लाज औ सोच प्रलोक को, वारिये प्रीति के ऊपर दोऊ।
गाँव को गेह को देह को नातो, सनेह मैं हाँ तो करै पुनि सोऊ ॥
'बोध सु नीति निबाह करै, धर ऊपर जाके नहीं सिर होऊ ।
लोक की भीति डेरात जो मीत, तौ प्रीति के पैपरै जनि कोऊ ॥
कहिबे को ब्यथा सुनिबे को हँसी, को दया सुनि कै उर आनतु है।
अरु पीर घटै तजि धीर सखी, दु:ख को नहीं का पै बखानतु है॥
'कवि बोधा कहै में सवाद कहा, को हमारी कही पुनि मानतु है।
हमैं पूरी लगी कै अधूरी लगी, यह जीव हमारोई जानतु है॥
कूर मिले मगरूर मिले, रनसूर मिले धरे सूर प्रभा को।
ज्ञानी मिले औ गुमानी मिले, सनमानी मिले छबिदार पता को॥
राजा मिले अरु रंक मिले, 'कवि बोधा मिले निरसंक महा को।
और अनेक मिले तौ कहा, नर सो न मिल्यो मन चाहत जाको॥
खरी सासु घरी न छमा करिहैं, निसिबासर त्रासन हीं मरबी।
सदा भौंहे चरहै ननदी, यों जेठानी की तीखी सुनै जरबी॥
'कवि बोधा न संग तिहारो चहैं, यह नाहक नेक फँदा परबी।
बऑंखें तिहारी लगैं ये लली, लगि जैहें कँ तो कहा करबी॥
कबँ मिलिबो कबँ मिलिबो, यह धीरज ही मैं धरैबो करै।
उर ते कइअिावै गरै ते फिरै, मन की मनहीं मैं सिरैबो करै॥
'कवि बोधा न चाउसरी कबँ, नितहीं हरवा सो हिरैबो करै।
सहते ही बनै कहते न बनै, मनहीं मन पीर पिरैबो करै॥
कूक न मारु कोइलिया, करि-करि तेह ।
लागि जाति बिरहिनि कै, दुबरी देह॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217