(1595-1663 ई.)
बिहारी का पूरा नाम बिहारीलाल है। इनका जन्म ग्वालियर के समीप वसुवा गोविंदपुर में माथुर चौबे चाति में हुआ था। ओरछा में संगीत और साहित्य की शिक्षा ली। जयपुर के महाराजा जयसिंह इनके आश्रयदाता था। कहते हैं इन्होंने एक दोहा पढकर नवोढा पत्नी के मोह में भूले राजा की ऑंखें खोल दी थीं। वह इस प्रकार है-
'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सों बँध्यो, आगे कौन हवाल॥
'बिहारी-सतसई इनका एकमात्र ग्रंथ है जिसमें 713 दोहे हैं। इसके प्रत्येक दोहे पर इन्हें एक-एक मोहर पुरस्कार में मिली थी। इन दोहों की उपमा 'गागर में सागर अथवा 'नाविक के तीर से दी गई है। इनकी भाषा व्याकरण से गढी हुई तथा सांकेतिक शब्दावली-युक्त है। दोहों का चामत्कारिक शब्द-चयन और नायक-नायिकाओं की मधुर चेष्टाओं का सूक्ष्म भाव-निरूपण प्रशंसनीय है।
दोहे
पत्रा ही तिथि पाइये, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौ ही रहै, आनन-ओप उजास॥
कहति नटति रीझति खिझति, मिलति खिलति लजि जात।
भरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात॥
छला छबीले लाल को, नवल नेह लहि नारि।
चूमति चाहति लाय उर, पहिरति धरति उतारि।
सघन कुंज घन, घन तिमिर, अधिक ऍंधेरी राति।
तऊ न दुरिहै स्याम यह, दीप-सिखा सी जाति॥
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै, भौंहन हँसै, देन कहै नटि जाय॥
कर-मुँदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठि दिये निधरक लखै, इकटक डीठि लगाइ॥
दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।
परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति॥
पलनु पीक, अंजनु अधर, धरे महावरु भाल।
आजु मिले सु भली करी, भले बने हौ लाल॥
अंग-अंग नग जगमगैं, दीपसिखा-सी देह।
दियो बढाएँ ही रहै, बढो उजेरो गेह॥
रूप सुधा-आसव छक्यो, आसव पियत बनै न।
प्यालैं ओठ, प्रिया बदन, रह्मो लगाए नैन॥
तर झरसी, ऊपर गरी, कज्जल-जल छिरकाइ।
पिय पाती बिन ही लिखी, बाँची बिरह-बलाइ॥
कर लै चूमि चढाइ सिर, उर लगाइ भुज भेंटि।
लहि पाती पिय की लखति, बाँचति धरति समेटि॥
कहत सबै, बेंदी दिये, ऑंक हस गुनो होत।
तिय लिलार बेंदी दिये, अगनित होत उदोत॥
कच समेटि करि भुज उलटि, खए सीस पट डारि।
काको मन बाँधै न यह, जूडो बाँधनि हारि॥
भूषन भार सँभारिहै, क्यों यह तन सुकुमार।
सूधे पाय न परत हैं, सोभा ही के भार॥
लिखन बैठि जाकी सबिह, गहि-गहि गरब गरूर।
भये न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217