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कबीरदास साहित्य Kabir Das sahitya

कबीरदास साहित्य Kabir Das sahitya

विरह का अंग

सुखिया सब संसार है, खावै और सौवे |
दुखिया दास कबीर है, जागे अरु रौवे ||12||
भावार्थ - सारा ही संसार सुखी दीख रहा है, अपने आपमें मस्त है वह,
खूब खाता है और खूब सोता है |
दुखिया तो यह कबीरदास है, जो आठों पहर जागता है और रोता ही रहता है |
[धन्य है ऐसा जागना, ओर ऐसा रोना !किस काम का,इसके आगे खूब खाना और खूब सोना!]

जा कारणि में ढूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ |
धन मैली पिव ऊजला, लागि न सकौं पाइ ||13||
भावार्थ - जीवात्मा कहती है -
जिस कारण मैं उसे इतने दिनों से ढूँढ़ रही थी,
वह सहज ही मिल गया, सामने ही तो था | पर उसके पैरों को कैसे पकड़ू ?
मैं तो मैली हूँ, और मेरा प्रियतम कितना उजला ! सो, संकोच हो रहा है |


जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मैं नाहिं |
सब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहिं ||14||
भावार्थ - जबतक यह मानता था कि `मैं हूं', तबतक मेरे सामने हरि नहीं थे |
और अब हरि आ प्रगटे, तो मैं नहीं रहा |
अँधेरा और उजेला एकसाथ, एक ही समय, कैसे रह सकते हैं ?
फिर वह दीपक तो अन्तर में ही था |

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217