Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

शाक्त सम्प्रदाय में पूजा का रहस्य

शाक्त सम्प्रदाय में पूजा का रहस्य

 

किसी सम्प्रदाय में कर्मकाण्ड के अन्तगर्त पूजा, पाठ, अर्चना  तथा ध्यान का विधान है। शाक्त सम्प्रदाय में पूजा रहस्य को समझना अति आवश्यक है। नाम-रूपात्मक जगत में सच्चिदानन्द की भावना ही अम्बा को पाद्य समर्पण है। सूक्ष्म जगत में ब्रहम भावना ही अर्घ्य समर्पण है। भावनाओं में ब्रहम भावना ही आचमन है। सर्वत्र सत्व आदि गुणों में चिदानन्द भावना ही स्नान है। चिद्रूपा कामेश्वरी में वृत्य विषयता का चिन्तन करना ही परिछन है। निरंजनत्व, अजरत्व, अशोकत्व, अमृत्व आदि की भावना ही विविध आभूषणों का अर्पण है। स्व-शरीर-घटक पार्थिव प्रपंच में चिन्मात्रा भावना ही गंध समर्पण है। आकाश में चिन्मात्रत्व की भावना करना पुष्प समर्पण है। वायु की चिन्मात्र भावना धूप समर्पण है। तेज् में चिन्मात्रत्व की भावना दीप समर्पण है। अमृत तत्व भावना नैवेद्य का अर्पण है। विश्व में सच्चिदानन्द भावना ही ताम्बूल समर्पण है। वाणियों का ब्रह्म में उपसंहार ही स्तुति है। वृत्ति विषय के जड़त्व का निराकरण आरती करना है। वृत्तियों को ब्रहम में लय करना ही प्रणाम है। देवी स्वयं ब्रह्म रूपिणी हैं। प्रकृति-पुरूष के मिलन से उत्पन्न हुआ जगत मुक्त ब्रह्म से ही आर्विभूत होता है। वेद-अवेद, विद्या-अविद्या, अजा-अनजा सब कुछ भगवती ही हैं। शक्ति के बिना सारा प्रपंच शव मात्र है। अशक्त व्यक्ति, अशक्त समाज, अशक्त जाति, अशक्त देश अपने आप में बेकार होता है। अत: शक्ति की पूजा स्वाभाविक है। शक्ति माता भगवती है। भगवती परोरजा हैं। परोरजा का अर्थ है सृष्टि को उत्पन्न करने वाली परा रज: शक्ति । भगवती परम रज हैं। उन्ही से संसार, जगत और सृष्टि की उत्पत्ति होती है। उनकी पूजा आवश्यक है। उनकी पूजा से सफलता , सुंदरता, आनंद और मंगल की प्राप्ति होती है और विश्व का कल्याण होता है।

 


 

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