Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरोध्दार

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरोध्दार

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ईसा पूर्व छठी शताब्दी से 12वीं शताब्दी के अंतिम दशक (1192 में पृथ्वीराज चौहान की हार तक) तक भारत ऐशियायी सभ्यता के केन्द्र में था। और इस दौरान नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय माना जाता था। यूरोप में चौथी शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक का समय अंधकार का युग माना जाता है। इस दृष्टि से प्राचीन एवं मध्यकाल के काफी बड़े हिस्से तक भारत और नालंदा विश्वविद्यालय की विश्व में तूती बोलती थी। अब समय बदल गया है। भारत विश्व व्यवस्था में एक बार फिर तेजी से एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है लेकिन बौध्दिक और सांस्कृतिक रूप से भारत पश्चिमी संस्कृति एवं विश्वविद्यालयों का पिछलग्गु बन गया है। समकालीन भारत के बुध्दिजीवी भारत की महान बौध्दिक एवं सांस्कृतिक परम्परा से कट चुके हैं। वर्तमान समय में पारम्परिक भारत के प्रमुख नगरों की तुलना में अंग्रेजी राज के दौरान विकसित महानगरों की तूती बोलती है।  इन्हीं महानगरों के विश्वविद्यालयों में विश्वस्तर के शिक्षकों का मिलना दुर्लभ है। ऐसे में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरोध्दार की बात रूमानी अधिक और यथार्थवादी कम है। समकालीन समय में बिहार जैसे प्रदेश के नालंदा जैसे छोटे सुविधाविहीन शहर या कस्बा में स्तरीय शिक्षकों को रहने के लिए प्रोत्साहित करना आसान काम नहीं है, खासकर ऐसे समय में जब प्रतिभावान बिहारी शिक्षकों एवं छात्रों का बिहार के बाहर एवं देश के बाहर बेहतर सुविधाओं के लिए पलायन हो रहा है।

इसके बावजूद बिहार के प्राचीन नांलदा विश्वविद्यालय को फिर से जीवित करने का प्रयास जोर पकड़ रहा है। इसके कई कारण है। पहला, बौध्द धर्म मानने वले देशों की तमन्ना है कि महामानव बुध्द की स्मृतियों को जीवित रखने वाली जगहों, जहां बुध्द ने तपस्या किया बुध्दत्व हासिल किया और अपने धर्म के प्रचार का केंद्र बनाया, को फिर से संवारा जाए। इन देशों के लोग श्रध्दाभाव से साधन, सहयोग और अग्रणी भूमिकादि निभाने को तैयार रहते हैं। उन देशों के लोगों की सहायता से राजगीर, नालंदा और बोधगया जैसी जगहों में अनेक प्रयास हुए हैं और कुछ निर्माण और उध्दार कार्य भी सफल हुए है। उन्हीं देशों की इच्छा है, जिसके लिए वे वित्तीय व्यवस्था करने को तैयार है, कि नालंदा में विश्वविद्यालय बने और बौध्द संस्कृति को स्थापित किया जाए। दूसरा, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और बहुत से उत्साही लोगों की भी अभिलाषा है कि नालंदा एक विश्वविद्यालय बने। बिहार की गिरती अवस्था में अपने गौरव के दिनों को याद करना स्वाभाविक है। नालंदा बिहार की श्रेष्ठ परंपरा का प्रतीक है। जब आज उन्नत कहलाने वाले देशों के लोग जंगलों में निवास कर रहे थे, नालंदा ने विश्व गुरू की  हैसियत हासिल की थी और इस क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गरिमा को विश्व का श्रेष्ठतम केंद्र बनाया था। सरकार को राजनीतिक लाभ और विद्वत मंडली को अपनी विद्वता की पहचान का गर्व भी इस आशय में छिपा है कि नालंदा विश्वविद्यालय को पुनजीर्वित किया जाये।
विश्व का अद्वितीय विश्वविद्यालय नालंदा हर्ष काल तक आते - आते एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हो गया था। यह जगह राजगीर से करीब आठ मील दूर थी। विश्वविद्यालय एक मील लंबे और आधा मील चौड़े क्षेत्र में फैला था। ह्वेनसांग, जिसने नालंदा में 18 वर्षो तक रहकर अध्ययन किया, लिखते हैं कि वहां 10,000 विद्यार्थी और 1500 शिक्षक थे। यद्यपि यहां बौध्द धर्म की महायान शाखा का विशेष अध्ययन होता था, अनेक विषयों की उच्च कोटि की पढ़ाई होती थी। पाली की पढ़ाई अनिवार्य थी। यहां श्रीलंका, कोरिया, चीन, जापान, तिब्बत और एशिया के दूसरे देशों से लोग ज्ञान - विज्ञान की शिक्षा लेने आते थे। यहां नागार्जुन जैसे विद्वान शिक्षक और अनेक विश्वविख्यात छात्र हुआ करते थे।
लेकिन समय ने पलटा खाया और इस अद्वितीय विश्वविद्यालय के बुरे दिन आए। इस अद्भुत शिक्षा की कलाकृति को सबसे पहले नष्ट हूणों के नेता मिहिराकुला ने किया। लेकिन अंतिम रूप में नालंदा विश्वविद्यालय को 1193 में कुतुबुद्दीन ऐवक के एक सेनापति मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया। इसी के नाम पर उसकी सेना के पड़ाव का नाम बख्तियार - पुर पड़ा। लोग कहते हैं कि भिक्षुओं को मारा गया और पुस्तकालय छह महीने तक जलता रहा। इस विध्वंस के बाद नालंदा पनप नहीं पाया। वहां की खुदाई से अनेक प्रकार की अनोखी शिक्षा संबंधी जानकारियां मिलती हैं। यह ज्ञान और चरित्र की पराकाष्ठा थी कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए सबसे पहले द्वारपाल से शास्त्रार्थ कर उसे साबित करना होता था कि वह इस विश्वविद्यालय का छात्र होने 
लायक है।

बिहार की गिरती स्थिति में नालंदा की परंपरा की याद लोगों को आई है। जाँर्ज फर्नांडीस ने 12 जनवरी,2000 की अपनी सरकारी यात्रा के दौरान जापान में घोषणा की कि वह नालंदा के विश्वविद्यालय को फिर से पुनर्जीवित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने वहां की सरकार के सहयोग से एक मास्टर प्लान भी बनाया। बिहार सरकार ने 2007 में (यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा बिल) पास किया। इसके पश्चात केंद्र सरकार ने फैसला किया कि वह नालंदा की संस्कृति को फिर से विश्वविद्यालय के मार्फत खड़ा करना चाहती है।

 

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