Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारत में संयुक्त घराना

भारत में संयुक्त घराना

 

भारत वर्ष में संयुक्त और नाभिकीय घराना तथा संयुक्त परिवार के सांस्कृतिक प्रतिमान साथ-साथ स्थित रहें हैं, अब संयुक्तता की भावना की मात्रा में परिवर्तन आ रहा है।

संयुक्त घराना की संरचनात्मक विशेषताएँ

1. सामान्य निवास स्थान एवं रसोई - सभी सदस्य एक छत के नीचे रहते हैं। विभिन्न भाइयों एवं उनके परिवार वालों के उपयोग के लिए सम्पूर्ण निवास स्थान कई छोटे कमरों में बंटा हुआ होता है। साथ रहने से परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच सामूहिक भावना विकसित होती है। पूरे घर के लिए एक ही रसोई घर होता है। प्राय: कर्ता की पत्नी रसोई घर की व्यवस्थापिका होती है।

2. बड़ा आकार : इसमें कई लोग साथ रहते हैं। इसमे तीन या अधिक पीढ़ियों के लोग एक साथ रह सकते हैं जिसके दादा-दादी, पोता-पोती, चाचा, ताउ, चचेरे भाई बहन इत्यादि एक साथ रहते हैं।

3. सामान्य सम्पत्ति : परिवार की  चल व अचल संपत्ति में सभी सदस्यों का अधिकार होता है। सभी लोग अपनी क्षमता के अनुसार काम करते हैं तथा पारिवारिक आमदनी को एक सामूहिक कोष में जमा किया जाता है। संयुक्त परिवार का धन तथा वस्तुएँ सामूहिक रूप से अर्जित तथा खर्च की जाती हैं। परिवार का मुखिया जिसेर् कत्ता कहा जाता है इसका व्यवस्थापक बना रहता है। परिवार का प्रत्येक पुरूष सदस्य परिवार की परिवारिक संपत्ति का कानूनी सह-स्वामी होता है।

 

भारत में संयुक्त घराना की प्रकार्यात्मक विशेषताएँ

1. सामूहिक कर्मकाण्ड तथा उत्सव - हर संयुक्त घराना के अपने रीति-रिवाज तथा कर्मकाण्ड होते है, जिसका र्निधारण जाति मूल्यों तथा धार्मिक कत्तव्यों के आधार पर किया जाता है। सामूहिक पूजा पध्दति का पीढी - दर - पीढ़ी हस्तांतरण होता है। इससे परिवार के अंदर एकता एवं आत्मीयता बढ़ती रहती है। जिस सामान्य देवता का पूजन किया जाता है उसे  'कुल देवता' कहा जाता है।

2. कर्ता की भूमिका - घर में निर्णय लेने तथा शांति एवं अनुशासन कायम रखने की जिम्मेदारी या अधिकार मूलत: र्'कत्ता' का होता है। आर्थिक उपार्जन करने वाले सभी सदस्य अपनी आमदनीर् कत्ता के पास जमा करते हैं एवं घर की संपूर्ण संपत्ति पर भी उसी का नियंत्रण होता है। पारिवारिक उत्सव एवं धर्मानुष्ठान भी उसी के मार्गदर्शन एवं अभिभावकत्व में संपन्न होता है। घरेलू झगड़ों का भी वही निवारण करता है। संक्षेप में कर्ता संयुक्त घराने का न्यासी होता है और उसे निर्विवाद अधिकार प्राप्त होते हैं।

3. आपसी कर्तव्य - संयुक्त घराना के सदस्य एक-दूसरे के प्रति आपसी कर्तव्य से बंधे होते हैं। कोई एक-दूसरे के हितों के खिलाफ काम नहीं करता। सभी सदस्य एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी होते हैं तथा आपसी समझ, प्रेम उभयनिष्ट संबंध एवं सहयोगात्मक भाव से जुड़े होते हैं। ये बंधन तथा संबंध परिवार को कायम रखने वाली शक्तियाँ हैं। संपूर्ण परिवार के हित के संदर्भ में व्यक्ति के हितों को गौण माना जाता है।

4. समाजवादी व्यवस्था - यह समाजवादी मूल्यों पर आधारित प्रकार्यात्मक इकाई है। हर सदस्य घराने की भलाई के लिए काम करता है। घराना के सभी सदस्यों के बीच अधिकारों एवं सुविधाओं का समान बंटवारा होता है। हर सदस्य अपनी क्षमता के अनुसार अपना योगदान करता है अपनी आवश्यकता के अनुसार घराना से प्राप्त करता है।

 

संयुक्त घराना के प्रकार प्रकार्य

   भारतीय संयुक्त परिवार व्यवस्था या घराना भारतीय सामाजिक संगठन की रीढ़ समझी जाती है। सामाजिक संगठन की एक व्यवस्था के रूप में यह कई शताब्दियों से आज तक कायम रही है। फलस्वरूप हम कह सकते हैं कि यह प्राचीन संस्था समाज की दृष्टि से लाभदायक प्रकार्य करती रही है। संयुक्त घराना के लाभदायक प्रकार्यों में से कुछ की चर्चा की जा सकती है।

पुनरूत्पादन - परिवार या घराना सामान्यत: जैविक पुनरूत्पादन का विधि सम्मत स्थान है। मानवीय उत्पादकता एवं पुनरूत्पादकता काफी हद तक परिवार के द्वारा र्निधारित होती है। बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी विस्तृत नातेदारी समूह द्वारा मिल-बांट कर निभायी जाती है। परिणामस्वरूप, ज्यादा बच्चें समूह के लिए लाभदायक माने जाते हैं, जो अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बनते हैं।

सामाजीकरण - पुनरूत्पादन में अपनी भूमिका निभाने की तरह ही, परिवार समाजीकरण का प्रथम एव प्राथमिक माधयम है। छोटे बच्चों को सतत् अनुशासन एवं मार्गदर्शन में रखा जाता है। परिवार अपने सदस्यों को सहिष्णुता के गुण, सहयोग, बलिदान, सहानुभूति जैसे मूल्यों को सिखाता है। यह बच्चों को अपने बड़ों की सेवा करना सिखाता है। यह अपने सदस्यों को व्यस्क, उत्तरदायी, सम्पूर्ण सामाजिक मनुष्य के रूप में विकसित होने में मदद करता है। व्यस्क बनने की प्रक्रिया में यह अपने सदस्यों को पारंपरिक मूल्यों के आधार पर स्त्री और पुरूष के रूप में अपने अधिकार औरर् कत्तव्य सीखने पर जोर देता है। परिवार अपने बच्चों की शिक्षा, नौकरी एवं विवाह के बारे में काफी दिलचस्पी लेता है तथा यह युवा पीढ़ी के सामाजिक नियोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सामाजिक नियंत्राण का साधन - संयुक्त घराना एक स्वयं शासित प्रशासनिक इकाई है जो कर्ता के मार्गदर्शन में कार्य करती है। कर्ता को असंदिग्ध अधिकार प्राप्त होता है जिसे केवल अधिकार के दुरूपयोग की स्थिति में चुनौती दी जा सकती है। यह सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन के रूप में काम करता है। परिवार के वरिष्ठ सदस्य छोटे बच्चों की अनुशासनहीनता एवं असामाजिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखते हैं। परिवार यह व्यवस्था करता है कि इसके सदस्य सदाचारी एवं अनुशासित व्यक्ति बनें।

कल्याण- संयुक्त घराना का एक प्रमुखर् कत्तव्य छोटे बच्चों, अपाहिजों, बीमार लोगों एवं बुजुर्गों की सेवा एवं उपचार करना है। यह अबोध बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं दूध पिलाने वाली माताओं की विशेष देख-भाल करता है। संयुक्त परिवार व्यवस्था अपने सदस्यों को खासकर, संकट के समय में अधिकतम सुरक्षा देने में ज्यादा समर्थ होता है।  इस तरह, संयुक्त परिवार अपने सदस्यों के लिए एक सहायक, मित्रतापूर्ण सामाजिक वातावरण का निर्माण करता है। यह मनोरंजन तथा सांस्कृतिक गतिविञ्यिों में भाग ले सकने का अवसर भी प्रदान करता है।

उत्पादन, वितरण तथा उपभोग - उत्पादन की पारिवारिक व्यवस्था का आधार स्त्री-पुरूष के बीच लैंगिक श्रम  विभाजन होता है। यह श्रम विभाजन घर के अंदर और बाहर दोनों जगह महत्त्वपूर्ण  है। स्त्रियाँ सामान्यत: घरेलू एवं उत्पादन से संबंधित क्रिया-कलापों में योगदान करती हैं पुरूष लोग सार्वजनिक क्षेत्र (घर के बाहर) में कार्य करते हैं और घर की आमदनी में योगदान करते हैं। परन्तु हाल के वर्षों में इस लैंगिक श्रम-विभाजन की आलोचना बढ़ रही है।

     संयुक्त परिवार उपभोग की एक सम्पूर्ण इकाई है। इसका अर्थ है कि परिवार को काफी बड़ी मात्रा में सस्ती कीमत पर उपभोक्ता वस्तुओं को खरीद कर आर्थिक रूप से समुचित व्यवस्था करनी पड़ती है। गैर-उपभोक्ता वस्तुओं का सदुपयोग परिवार के सभी सदस्य आपस में मिल बांट कर करते हैं। परिवार के सभी सदस्य अपनी आमदनी एक साथ मिलाकर सम्पूर्ण परिवार की आवश्यकता के अनुसार खर्च करते हैं।

 

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