Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भगवती और सृष्टि

भगवती और सृष्टि

 

प्राणियों के परिपक्व कर्मों का भोग द्वारा क्षय हो जाने पर प्रलय होता है। उस समय सब प्रपंच माया के ही उदर में लीन रहता है। माया भी स्व प्रतिष्ठ निर्गुण ब्रहम में लीन रहती है। माया भी अर्थ अव्यक्त भी है। गुणसाम्य बीजावस्था है, वही शुध्द माया है। बीज का अंकुरित होना कार्यावस्था है। स्पष्ट ईक्षण और अहंकार आदि ही महत तत्व, अहन्तत्व आदि है। तदन्तर स्थूल कार्यादि सम्पत्ति होती है। अन्तर्मुख अव्यक्त की तुरीय अवस्था है। बहिर्मुख अव्यक्त की कारणदेह अवस्था है। बहिर्मुख अव्यक्त से सूक्ष्म - स्थूल देह की उत्पत्ति होती है, इसी में सम्पूर्ण विश्व आ जाता है।

समष्टि-व्यष्टि स्थूल-देह और ज्ञानेन्द्रिय तथा अन्त:करण के अधिपति सरस्वती सहित ब्रहमा हैं। क्रियाशक्त्यामक लिंग-देह के अधिपति लक्ष्मी सहित विष्णु हैं। कारण-देह के अधिपति गौरी सहित रूद्र हैं। तुरीय-देह की अभिमानिनी भुवनेश्वरी और महालक्ष्मी हैं।


 

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