सिंहासन-बत्तीसी

कहानी 24

एक बार राजा विक्रमादित्य गंगाजी नहाने गया। वहाँ देखता क्या है कि एक बनिये की सुंदर स्त्री नदी के किनारे खड़ी एक साहूकार के लड़के से इशारों में बात कर रही है। थोड़ी देर में जब वे दोनों जाने लगे तो राजा ने अपना एक आदमी उनके पीछे कर दिया। उसने लौटकर बताया कि उस स्त्री ने घर पर पहुँचने पर अपना सिर खोलकर दिखाया, फिर छाती पर हाथ रक्खा, और अंदर चली गई। राजा ने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा, ‘‘स्त्री ने बताया कि जब अंधेरी रात होगी तब मैं आऊँगी। साहूकार के लड़के ने भी वैसा ही इशारा करके कहा कि अच्छा।’’

          इसके बाद रात को राजा वहाँ गया। जब रात अंधेरी हो गई तो राजा ने खिड़की पर कंकड़ी मारी। स्त्री समझ गई कि साहूकार का लड़का आ गया। वह माल-मत्ता लेकर आयी। राजा ने कहा, ‘‘तुम्हारा आदमी जीता है। वह राजा से शिकायत कर देगा तो मुसीबत हो जायगी। इससे पहले उसे मार आओ।’’ स्त्री गई और कटारी से अपने आदमी को मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा कि जब यह अपने आदमी की सगी नहीं हुई तो और किसकी होगी। सो वह उसे बहकाकर नदी के इस किनारे पर छोड़ उधर चला गया। स्त्री ने राह देखी। राजा न लौटा तो वह घर जाकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी कि मेरे आदमी को चोरों ने मार डाला।

          अगले दिन वह अपने आदमी के साथ सती होने को तैयार हो गई। आधी जल चुकी तो सहा न गया। कूदकर बाहर निकल आयी और नदी में कूद पड़ी। राजा ने कहा, ‘‘यह क्या?’’ वह बोली, ‘‘इसका भेद तुम अपने घर जाकर देखो। हम सात सखियाँ इस नगर में हैं। एक मैं हूँ, छ: तुम्हारे घर में है।’’

          इतना कहकर वह पानी में डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब हाल देखने लगा। आधी रात गये छहों रानियाँ सोने के थाल मिठाई से भरकर महल के पिछवाड़े गईं। वहाँ एक योगी ध्यान लगाये बैठा था। उसे उन्होंने भोजन कराया। इसके बाद योग-विद्या से छ: देह करके छहों रानियों को अपने पास रक्खा। थोड़ी देर बाद रानियाँ लौट गईं।

          राजा ने सब बातें अपनी आँखों से देखीं। रानियों के चले जाने पर राजा योगी के पास गया। योगी के कहा, ‘‘तुम्हारी जो कामना हो सो बताओं।’’ राजा बोला, ‘‘हे स्वामी! मुझे वह विद्या दे दो, जिससे एक देह की छ: देहें हो जाती हैं।’’ योगी ने वह विद्या दे दी। इसे बाद राजा ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर वह रानियों को लेकर गुफा में आया और उनके सिर काटकर उसमें बंद करके चला आया। उनका धन उसने शहर के ब्राह्मणों में बाँट दिया।

          पुतली बोली, ‘‘हे राजा! हो तुम ऐसे, जो सिंहासन पर बैठो?’’

उस दिन भी मुहूर्त निकल गया। अगले दिन पच्चीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने उसे रोककर कहानी सुनायी:

 

 

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