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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस

रामचरित मानस

बालकाण्ड

बालकाण्ड पेज 48

कह तापस नृप ऐसेइ होऊ। कारन एक कठिन सुनु सोऊ।।
कालउ तुअ पद नाइहि सीसा। एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा।।
तपबल बिप्र सदा बरिआरा। तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा।।
जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा। तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा।।
चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई। सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई।।
बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला। तोर नास नहि कवनेहुँ काला।।
हरषेउ राउ बचन सुनि तासू। नाथ न होइ मोर अब नासू।।
तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना। मो कहुँ सर्ब काल कल्याना।।

दो0-एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि।
मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि।।165।।

तातें मै तोहि बरजउँ राजा। कहें कथा तव परम अकाजा।।
छठें श्रवन यह परत कहानी। नास तुम्हार सत्य मम बानी।।
यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा। नास तोर सुनु भानुप्रतापा।।
आन उपायँ निधन तव नाहीं। जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं।।
सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा। द्विज गुर कोप कहहु को राखा।।
राखइ गुर जौं कोप बिधाता। गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता।।
जौं न चलब हम कहे तुम्हारें। होउ नास नहिं सोच हमारें।।
एकहिं डर डरपत मन मोरा। प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा।।

दो0-होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ।
तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ।।166।।


सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं। कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं।।
अहइ एक अति सुगम उपाई। तहाँ परंतु एक कठिनाई।।
मम आधीन जुगुति नृप सोई। मोर जाब तव नगर न होई।।
आजु लगें अरु जब तें भयऊँ। काहू के गृह ग्राम न गयऊँ।।
जौं न जाउँ तव होइ अकाजू। बना आइ असमंजस आजू।।
सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी। नाथ निगम असि नीति बखानी।।
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं। गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं।।
जलधि अगाध मौलि बह फेनू। संतत धरनि धरत सिर रेनू।।

दो0- अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल।
मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल।।167।। 
    

जानि नृपहि आपन आधीना। बोला तापस कपट प्रबीना।।
सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही। जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही।।
अवसि काज मैं करिहउँ तोरा। मन तन बचन भगत तैं मोरा।।
जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ। फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ।।
जौं नरेस मैं करौं रसोई। तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई।।
अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई। सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई।।
पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ। तव बस होइ भूप सुनु सोऊ।।
जाइ उपाय रचहु नृप एहू। संबत भरि संकलप करेहू।।

दो0-नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार।
मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिं?करिब जेवनार।।168।।

 

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