मुंशी प्रेमचंद

वरदान

6 डिप्टी श्यामाचरण

पेज- 11

प्रेमवती ने इस मारधाड पर ऐसा उत्पात मचाया कि अन्त में डिप्टी साहब ने भी झल्लाकर पढाना छोड दिया। कमला कुछ ऐसा रूपवान, सुकुमार और मधुरभाषी था कि माता उसे सब लडकों से अधिक चाहती थी। इस अनुचित लाड-प्यार ने उसे पंतंग, कबूतरबाजी और इसी प्रकार के अन्य कुव्यसनों का प्रेमी बना दिया था। सबरे हआ और कबूतर उडाये जाने लगे, बटेरों के जोड छूटने लगे, संध्या हई और पंतग के लम्बे-लम्बे पेच होने लगे। कुछ दिनों में जुए का भी चस्का पड चला था। दपर्ण, कंघी और इत्र-तेल में तो मानों उसके प्राण ही बसते थे।
प्रेमवती एक दिन सुवामा से मिलने गयी हुई थी। वहां उसने वृजरानी को देखा और उसी दिन से उसका जी ललचाया हआ था कि वह बहू बनकर मेरे घर में आये, तो घर का भाग्य जाग उठे। उसने सुशीला पर अपना यह भाव प्रगट किया। विरजन का तेरहॅवा आरम्भ हो चुका था। पति-पत्नी में विवाह के सम्बन्ध में बातचीत हो रही थी। प्रेमवती की इच्छा पाकर दोनों फूले न समाये। एक तो परिचित परिवार, दूसरे कलीन लडका, बूद्विमान और शिक्षित, पैतृक सम्पति अधिक। यदि इनमें नाता हो जाए तो क्या पूछना। चटपट रीति के अनुसार संदेश कहला भेजा।
इस प्रकार संयोग ने आज उस विषैले वृक्ष का बीज बोया, जिसने तीन ही वर्ष में कुल का सर्वनाश कर दिया। भविष्य हमारी दृष्टि से कैसा गुप्त रहता है ?
ज्यों ही संदेशा पहुंचा, सास, ननद और बहू में बातें होने लगी।
बहू(चन्द्रा)-क्यों अम्मा। क्या आप इसी साल ब्याह करेंगी ?
प्रेमवती-और क्या, तुम्हारे लालाली के मानने की देर है।
बहू-कूछ तिलक-दहेज भी ठहरा
प्रेमवती-तिलक-दहेज ऐसी लडकियों के लिए नहीं ठहराया जाता।
जब तुला पर लडकी लडके के बराबर नहीं ठहरती,तभी दहेज का पासंग बनाकर उसे बराबर कर देते हैं। हमारी वृजरानी कमला से बहुत भारी है।
सेवती-कुछ दिनों घर में खूब धूमधाम रहेगी। भाभी गीत गायेंगी। हम ढोल बजायेंगें। क्यों भाभी ?
चन्द्रा-मुझे नाचना गाना नहीं आता।
चन्द्रा का स्वर कुछ भद्दा था, जब गाती, स्वर-भंग हो जाता था। इसलिए उसे गाने से चिढ थी।
सेवती-यह तो तुम आप ही करो। तुम्हारे गाने की तो संसार में धूम है।
चन्द्रा जल गयी, तीखी होकर बोली-जिसे नाच-गाकर दूसरों को लुभाना हो, वह नाचना-गाना सीखे।
सेवती-तुम तो तनिक-सी हंसी में रूठ जाती हो। जरा वह गीत गाओं तो—तुम तो श्याम बडे बेखबर हो’। इस समय सुनने को बहुत जी चाहता है। महीनों से तुम्हारा गाना नहीं सुना।
चन्द्रा-तुम्ही गाओ, कोयल की तरह कूकती हो।
सेवती-लो, अब तुम्हारी यही चाल अच्छी नहीं लगती। मेरी अच्छी भाभी,  तनिक गाओं।
चन्द्रमा-मैं इस समय न गाऊंगी। क्यों मुझे कोई डोमनी समझ लिया है ?
सेवती-मैं तो बिन गीत सुने आज तुम्हारा पीछा न छोडूंगी।
सेवती का स्वर परम सुरीला और चिताकर्षक था। रूप और आकृति भी मनोहर, कुन्दन वर्ण और रसीली आंखें। प्याली रंग की साडी उस पर खूब खिल रही थी। वह आप-ही-आप गुनगुनाने लगी:
तुम तो श्याम बडे बेखबर हो...तुम तो श्याम।
आप तो श्याम पीयो दूध के कुल्हड, मेरी तो पानी पै गुजर-
पानी पै गुजर हो। तुम तो श्याम...
दूध के कुल्हड पर वह हंस पडी। प्रेमवती भी मुस्करायी, परन्तु चन्द्रा रूष्ट हो गयी। बोली –बिना हंसी की हंसी हमें नहीं आती। इसमें हंसने की क्या बात है ?
सेवती-आओ, हम तुम मिलकर गायें।
चन्द्रा-कोयल और कौए का क्या साथ ?
सेती-क्रोध तो तुम्हारी नाक पर रहता है।
चन्द्रा-तो हमें क्यों छेडती हो ? हमें गाना नहीं आता, तो कोई तुमसे निन्दा करने तो नहीं जाता।
‘कोई’ का संकेत राधाचरण की ओर था। चन्द्रा में चाहे और गुण न हों, परन्तु पति की सेवा वह तन-मन से करती थी। उसका तनिक भी सिर धमका कि इसके प्राण निकला। उनको घर आने में तनिक देर हुई कि वह व्याकुल होने लगी। जब से वे रूडकी चले गये, तब से चन्द्रा यका हॅसना-बोलना सब छूट गया था। उसका विनोद उनके संग चला गया था। इन्हीं कारणों से राधाचरण को स्त्री का वशीभूत बना दिया था। प्रेम, रूप-गुण, आदि सब त्रुटियों का पूरक है।

 

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