मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-10

पेज-101

धनिया का दिल भी अभी तक साफ नहीं हुआ। अभी तक उसके मन में मलाल बना हुआ है। मुझे सब आदमियों के सामने उसको मारना न चाहिए था। जिसके साथ पच्चीस साल गुजर गए, उसे मारना और सारे गाँव के सामने, मेरी नीचता थी, लेकिन धनिया ने भी तो मेरी आबरू उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरे सामने से कैसा कतरा कर निकल जाती है, जैसे कभी की जान-पहचान ही नहीं। कोई बात कहनी होती है, तो सोना या रूपा से कहलाती है। देखता हूँ, उसकी साड़ी फट गई है, मगर कल मुझसे कहा भी, तो सोना की साड़ी के लिए, अपने साड़ी का नाम तक न लिया। सोना की साड़ी अभी दो-एक महीने थेगलियाँ लगा कर चल सकती है। उसकी साड़ी तो मारे पैबंदों के बिलकुल कथरी हो गई है। और फिर मैं ही कौन उसका मनुहार कर रहा हूँ? अगर मैं ही उसके मन की दो-चार बातें करता रहता, तो कौन छोटा हो जाता? यही तो होता, वह थोड़ा-सा अदरावन कराती, दो-चार लगने वाली बातें कहती, तो क्या मुझे चोट लग जाती, लेकिन मैं बुड्ढा हो कर भी उल्लू बना रह गया। वह तो कहो, इस बीमारी ने आ कर उसे नर्म कर दिया, नहीं जाने कब तक मुँह फुलाए रहती।

और आज उन दोनों में जो बातें हुई थीं, वह मानो भूखे का भोजन थीं। वह दिल से बोली थी और होरी गदगद हो गया था। उसके जी में आया, उसके पैरों पर सिर रख दे और कहे - मैंने तुझे मारा है तो ले मैं सिर झुकाए लेता हूँ, जितना चाहे मार ले, जितनी गालियाँ देना चाहे दे ले।

सहसा उसे मँड़ैया के सामने चूड़ियों की झंकार सुनाई दी। उसने कान लगा कर सुना। हाँ, कोई है। पटवारी की लड़की होगी, चाहे पंडित की घरवाली हो। मटर उखाड़ने आई होगी। न जाने क्यों इन लोगों की नीयत इतनी खोटी है। सारे गाँव से अच्छा पहनते हैं। सारे गाँव से अच्छा खाते हैं, घर में हजारों रुपए गड़े हुए हैं, लेन-देन करते हैं, ड्योढ़ी-सवाई चलाते हैं, घूस लेते हैं, दस्तूरी लेते हैं, एक-न-एक मामला खड़ा करके हमा-सुमा को पीसते ही रहते हैं, फिर भी नीयत का यह हाल! बाप जैसा होगा, वैसी ही संतान भी होगी। और आप नहीं आते, औरतों को भेजते हैं। अभी उठ कर हाथ पकड़ लूँ तो क्या पानी रह जाय! नीच कहने को नीच हैं, जो ऊँचे हैं, उनका मन तो और नीचा है। औरत जात का हाथ पकड़ते भी तो नहीं बनता, आँखें देख कर मक्खी निगलनी पड़ती है। उखाड़ ले भाई, जितना तेरा जी चाहे। समझ ले, मैं नहीं हूँ। बड़े आदमी अपने लाज न रखें, छोटों को तो उनकी लाज रखनी ही पड़ती है।

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top