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हिन्दी के कवि

रामदरश मिश्र

(जन्म 1924 ई.)

रामदरश मिश्र का जन्म ग्राम डुमरी, जिला गोरखपुर में हुआ। शिक्षा पहले गांव में और फिर प्रयाग में हुई। ये सफल कवि, आलोचक तथा कथाकार हैं। 'पथ के गीत, 'बैरंग बेनाम चिट्ठियां, 'पक गई है धूप तथा 'कंधे पर सूरज इनके काव्य-संग्रह हैं। तीन खण्डों में इनकी आत्मकथा भी प्रकाशित हो चुकी है। इन्होंने आंचलिक जीवन पर 'जल टूटता हुआ जैसे सफल उपन्यास भी लिखे हैं।

गीत

यह भी दिन बीत गया।
पता नहीं जीवन का यह घडा
एक बूंद भरा या कि एक बूंद रीत गया।

उठा कहीं, गिरा कहीं, पाया कुछ खो दिया
बंधा कहीं, खुला कहीं, हंसा कहीं, रो दिया।
पता नहीं इन घडियों का हिया
आंसू बन ढलकाया कुल का बन गीत गया।

इस तट लगने वाले और कहीं जा लगे
किसके ये टूटे जलयान यहां आ लगे
पता नहीं बहता तट आज का
तोड गया प्रीति या कि जोड नए मीत गया।

एक लहर और इसी धारा में बह गई
एक आस यों ही बंशी डाले रह गई
पता नहीं दोनों के मौन में
कौन कहां हार गया, कौन कहां जीत गया।

प्रवाह
एक महकती हुई लहर
सांसों से सट कर
हर क्षण निकल-निकल जाती है।
एक गुनगुनाता स्वर हर क्षण
कानों पर बह-बह जाता है
एक अदृश्य रूप सपने सा
आंखों में तैर-तैर जाता है
एक वसंत द्वार से जैसे
मुझको बुला-बुला जाता है
मैं यही सोचता रह जाता हूँ

लहर घेर लूं
स्वर समेट लूं
रूप बांध लूं
औ वसंत से कं-
रुको भी घडी दो घडी द्वारे मेरे
फिर होकर निश्चिंत
तुम सभी को मैं पा लूं
पर यह तो प्रवाह है
रुकता कहां?
एक दिन इसी तरह मैं चुक जाऊंगा
कहते हुए-
आह! पा सका नहीं
जिसे मैं पा सकता था...

बाहर तो वसंत आ गया है
बंद कमरों में बैठकर
कब तक प्रतीक्षा करोगे वसंत की?
सुनो,
वसंत लोहे के बंद दरवाजों पर हांक नहीं देता
वह शीशे की बंद खिडकियों के भीतर नही झांकता
वह सजी हुई सुविधाओं की महफिल में
आहिस्त-आहिस्ता आने वाला राजपुरुष नहीं है
और न वह रेकार्ड है
जो तुम्हारे हाथ के इशारे पर
तुम्हारे सिरहाने बैठकर गा उठेगा।
बाहर निकलो
देखो
बंद दिशाओं को तोडती
धूलभरी हवाएं बह रही हैं
उदास लय में झरते चले जा रहे हैं पत्ते
आकाश म ेहूँलदा हुआ लम्बा-सा सन्नाटा
चट्टान की तरह यहां-वहां दरक रहा है
एक बेचैनी लगातार चक्कर काट रही है
सारे ठहरावों के बीच
जमी हुई आंखें अपने से ही लडती हुई
अपने से बाहर आना चाहती है
आओ गुजरों इनसे
तब तुम्हें दिखाई पडेगी
धूप भरी हवाओं के भीतर बहती
रंगों की छोटी-छोटी नदियां
पत्तियों की उदास लय में से उगता
नए हरे स्वरों का एक जंगल
नंगे पेडों के बीच कसमसाता
लाल-लाल आभाओं का एक नया आकाश
चट्टानों को तोड-तोड कर झरने के लिए आकुल
प्रकाश के झरने
कंपकंपाती आंखों के बीच तैरती
अनंत नई परछाइयां।
तुम कब तक प्रतीक्षा करते रहोगे वसंत की
बंद कमरों में तुम्हें पता नहीं
बाहर तो वसंत आ चुका है।

 

National Record 2012

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Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

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