(1533-1586 ई.)
सूरदास के पश्चात अष्टछाप के कवियों में नंददास सबसे महत्वपूर्ण हैं। इनका जन्म गोकुल मथुरा से पूर्व रामपुर ग्राम बतलाया गया है। इन्हें गोस्वामी तुलसीदास का भाई भी कहा गया है। ये आरंभ में संसार के प्रति अति अनुरक्त थे। विट्ठलनाथजी ने इन्हें अपना शिष्य बनाया, जिससे इनका मोह भंग हुआ। प्रचुर लेखन तथा विषय की विविधता की दृष्टि से नंददास महत्वपूर्ण हैं। इनकी 28 रचनाएँ बताते हैं, जिनमें 'रास पंचाध्यायी तथा 'भ्रमर गीत अधिक प्रसिध्द हैं। रास पंचाध्यायी में महारास का अद्भुत वर्णन है। भ्रमर गीत में तर्क एवं बुध्दि की प्रधानता है। नंददास भाषा के प्रयोग में अत्यंत पटु थे। इनके विषय में कहा गया है- 'और सब गढिया, नंददास जडिया।
पद
छोटो सो कन्हैया एक मुरली मधुर छोटी,
छोटे-छोटे सखा संग छोटी पाग सिर की।
छोटी सी लकुटि हाथ छोटे वत्स लिए साथ,
छोटी कोटि छोटी पट छोटे पीताम्बर की॥
छोटे से कुण्डल कान, मुनिमन छुटे ध्यान,
छोटी-छोटी गोपी सब आई घर-घर की।
'नंददास प्रभु छोटे, वेद भाव मोटे-मोटे,
खायो है माखन सोभा देखहुँ बदन की॥
फूलन की माला हाथ, फूली सब सखी साथ,
झाँकत झरोखा ठाडी नंदिनी जनक की।
देखत पिय की शोभा, सिय के लोचन लोभा,
एक टक ठाडी मानौ पूतरी कनक की॥
पिता सों कहत बात, कोमल कमल गात,
राखिहौ प्रतिज्ञा कैसे शिव के धनक की।
'नंददास हरि जान्यो, तृन करि तोरयो ताहि,
बाँस की धनैया जैसे बालक के कर की॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217