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हिन्दी के कवि

कैलाश गौतम

(जन्म 1944 ई.)

कैलाश गौतम का जन्म और शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई। आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से ये सम्बध्द हैं। इनकी कविता में जीवन की सरसता और रागात्मकता भरपूर है। 'काव्य-प्रसंग, 'गीत-भागवत, 'सीली माचिस की तीलियां तथा 'बाबू आन्हर माई चान्हर इनकी चर्चित कृतियां हैं। इनके खडी बोली के दोहे भी काफी लोकप्रिय हुए। मुहावरेदार भाषा इनकी कविता की विशेषता है।

स्मित
फूल हंसों गंध हंसों प्यार हंसो तुम
हंसिया की धार! बार-बार हंसो तुम।

हंसो और धार-धार तोडकर हंसो
पुरइन के पात लहर ओढकर हंसो
जाडे की धूप आर-पार हंसों तुम
कुहरा हो और तार-तार हंसो तुम।

गुबरीले आंगन दालान में हंसो
ओ मेरी लौंगकली! पान में हंसो
बरखा की पहली बौछार हंसो तुम
घाटी के गहगहे कछार हंसों तुम।

हरसिंगार की फूली टहनियां हंसो
निंदियारी रातों की कुहनियां हंसो
बांहों के आदमकद ज्वार हंसो तुम
मौसम की चुटकियां हजार हंसो तुम।
***
दोहे
गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल।
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल॥

लगे फूंकने आम के बौर गुलाबी शंख
कैसे रहें किताब में हम मयूर के पंख॥

दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम।
आओ लिख दूं चंद्रमा आज तुम्हारे नाम॥

चांद शरद का मुंहलगा भगा चिकोटी काट।
घंटों सहलाती रही नदी महेवा घाट॥

हंसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव।
सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पडाव॥

कानों में जैसे पडे मौसम के दो बोल।
मन में कोई चोर था भागा कुंडी खोल॥

रोली अक्षत छू गए खिले गीत के फूल।
खुल करके बातें हुई मौसम के अनुकूल॥

पुल बोए थे शौक से, उग आई दीवार।
कैसी ये जलवायु है, हे मेरे करतार॥

 

 

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