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हिन्दी के कवि

डॉ. धर्मवीर भारती

परिचय
जन्म : दिसंबर 25, 1926, अतारसुइया, इलाहाबाद
पिता : स्व. चिरंजीव लाल वर्मा
माता : चंदा देवी
बच्चे : परमिता मित्तल, किन्शुक भारती, प्रज्ञा भारती

डॉ. धर्मवीर भारती के पिता, चिरंजीव लाल वर्मा शाहजहाँपुर के निकटखुदगुंगा के एक अमीर जमीदार परिवार से थे। जमींदारी प्रथा के निरंकुश तौर तरीकों के पसंद न आने के कारण पाँचों भाइयों में से केवल उन्होंने बाहर निकलकर अपना जीवनयापन स्वयं करने का निश्चय किया।
उन्होंने रूडकी सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज से ओवरसियर की शिक्षा हासिल की तथा एक सरकारी नौकरी प्राप्त की। बाद में वे एक भवन निर्माता के रूप में वर्मा गए। धनोपार्जन के पश्चात वे उत्तर प्रदेश लौट आए और शुरूआत में मिर्जापुर में बसे। इसके बाद वे स्थायी रूप से बसने हेतु इलाहाबाद गए।
बालक धर्मवीर ने अपना बचपन माता-पिता के लाड-प्यार के बीच आजमगढ तथा माउनाथ भंजन में बिताया।उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में ही हुई तथा औपचारिक शिक्षा इलाहाबाद के डीएवी हाई स्कूल में कक्षा छठी में दाखिले के पश्चात शुरू हुई।
मेहनती व कर्मठ धर्मवीर पढाई में हमेशा आगे रहे पर उनके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। जब वे अपनी किशोरावस्था में कक्षा आठवीं में अध्ययनरत थे, उनके पिता का निधन हो गया।
उनके कंधों पर अचानक घोर गरीबी का बोझ आ गया। किंतु इससे विपत्तियों से लडने और जीवन के प्रति आशापूर्ण दृष्टिकोण रखने से विचलित नहीं हुए। उनकी माता तथा बहन साँसी के गुरुकुल में रहने चलीर् गईं जबकि वे अपने मामा अभय कृष्ण जौहरी के पास रहकर अपनी उच्च शिक्षा पूर्ण करते रहे। अपनी पढाई का तथा अन्य खर्च उठाने हेतु उन्होंने दूसरे छात्रों को टयूशन भी पढाई।
कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज से माध्यमिक परीक्षा देने के पश्चात वे 1942 में भारत छोडो आंदोलन में कूद पडे जिससे उनकी पढाई का एक वर्ष भी खराब हुआ। 1945 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ली तथा हिन्दी में सर्वाधिक अंक पाने के लिए 'चिंतामणि घोष पदक प्राप्त किया। 1947 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर उत्तीर्ण किया तथा बाद में डॉ. धर्मवीर वर्मा के निर्देशन में 'सिध्द साहित्य पर अपने शोध के लिए उन्हें पीएचडी मिली।
जीवन के प्रारंभ से ही अपने लिए स्वयं कमाने के कारण अपनी पूरी शिक्षा के दौरान कार्य करते रहे। स्कूल के दौरान पढाई पूरी करने के लिए वे टयूशन करते थे जबकि एम ए की पढाई पूरी करने हेतु उन्होंने 'अभ्युदय नामक पत्रिका में पार्ट टाइम काम किया जिसके संपादक पद्मकांत मालवीय थे। 1942 में वे ईला चंद्र जोशी द्वारा संपादित 'संगम पत्रिका के सह संपादक बने। वहाँ दो वर्ष कार्य करने के पश्चात वे 'हिन्दुस्तानी अकादमी के सह-सचिव मनोनीत किए गए। शीघ्र ही वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में व्याख्याता नियुक्त किए गए जहाँ उन्होंने 1960 तक कार्य किया। वहाँ कार्यरत रहते हुए उन्होंने 'हिन्दी साहित्य कोष के संपादन में सहायता की, 'निकष नामक पत्रिका निकाली तथा 'आलोचन का संपादक किया।
इसके पश्चात 1960 में वे टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रकाशन धर्मयुग के संपादक बनाए गए, जिससे वे मुंबई आए। यहाँ धर्मवीर भारती ने कमाल किया। वे अंग्रेजी के प्रभुत्व वाले पाठकों के मध्य हिन्दी की पत्रिकाओं को इतना स्थापित करने में सफल रहे कि अंग्रेजी के प्रकाशकों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पडा। 'धर्मयुग  द्वारा उनके निर्देशन में प्राप्त किया गया स्थान किसी क्षेत्रीय भाषा के प्रकाशन को प्राप्त नहीं हुआ था।
'धर्मयुग कई उभरते लेखकों के लिए शुरूआती कर्म स्थल रहा, जो आगे चलकर विश्व प्रसिध्द बने। धर्मवीर प्रतिभा को पहचानने में दक्ष थे व अपनी पत्रिका के माध्यम से उसे प्रोत्साहित करते व बढावा देते थे। उनके द्वारा प्रशिक्षित पत्रकार आगे चलकर प्रसिध्द पत्रिकाओं के संपादक बने।
वे सभी डॉ. धर्मवीर पत्रकारिता विद्यालय के छात्र रहे उनके निर्देशन में कार्य करना इतना ही सम्मानजनक माना जाता था। उनके निर्देशन में 'धर्मयुग एक अत्यंत सम्मानीय व हिन्दी पत्रकारिता में उच्च मानदण्ड स्थापित करने वाला प्रकाशन बना। 27 वर्षों तक उसका संपादन करने के पश्चात 1987 में वे सेवानिवृत्त हुए। इसके तुरंत बाद 1989 में वे हृदयरोग से ग्रस्सित हो गए।
गहन चिकित्सा के पश्चात वे बच तो गए किंतु पूरी तरह ठीक नहीं हो सके। बीमारी ने उनके हृदय को 75% खराब कर दिया था। किंतु लेखन के प्रति उनका प्रेम व लगन उतनी ही सशक्त रही व अपनी सेवानिवृति के दिन उन्होंने अपने संस्मरण लिखने में बिताए। एक संपूर्ण जीवन जीने के पश्चात वे 4 सितंबर 1977 की रात्रि में नींद के दौरान शांति पूर्वक ब्रहमलोक को सिधारे।
1061 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस समिति का निमंत्रण व यूरोप की सघन यात्रा। इसके बाद 1964 में जर्मन सरकार के निमंत्रण पर संपूर्ण जर्मनी का भ्रमण। 1966 में भारतीय दूतावास के निमंत्रण पर इंडोनेशिया व थाइलैंड की यात्रा। 1971 में 'मुक्ति वाहिनी के साथ बांग्ला देश की मुफ्त यात्रा। उन्होंने बांग्लादेश की मुक्ति पर एक चश्मदीद गवाह की हैसियत से लिखा। उनका अगला जोखिम से भरा कदम बांग्लादेश पाकिस्तान युध्द के दौरान भारतीय सेना के साथ युध्द के मैदान में जाना था। उन्होंने इस लडाई का ऑंखों देखा हाल लिखा था। इससे पूर्व किसी भारतीय पत्रकार ने यह कार्य नहीं किया था।
1974 में उन्होंने मॉरिशस में बसे भारतीयों की समस्याओं को समझने हेतु भारत सरकार के अनुरोध पर वहाँ की यात्रा की थी। उस समय तक मॉरिशस एक विस्मृत देश था। डॉ. भारती की यात्रा व मॉरिशस पर एक विशेषांक निकालने के बाद ही वह देश प्रकाश में आया तथा भारत के साथ नजदीकी संबंध बनाए। डॉ.भारती इस मेल-मिलाप का कारण बने। वे दूसरी बार एफ्रो-एशियन सम्मेलन में भाग लेने मॉरिशस गए।
1978 में वे चीनी समाचार एजेंसी 'सिन्हुआ के निमंत्रण पर एक भारतीय दल के साथ चीन गए। 1991 में वे अपने परिवार के साथ यूएसए गए। डॉ. भारती भ्रमण के शौकीन थे तथा प्रकृति से साक्षात्कार का कोई मौका नहीं चूकते थे। उन्होंने भारत में कई बार भ्रमण किया व लगभग संपूर्ण भारत में घूमे। वे हमेशा नई जगहों पर जाने व नए लोगों से मिलने के उत्सुक रहते थे। उनके यात्रा संस्मरणों ने साहित्य के क्षेत्रमें नए अध्याय लिखे।
अपने जीवन में उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए। 1972 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 1997 में उनकी मृत्यु के बाद महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा उनके नाम पर 'धर्मवीर भारती महाराष्ट्र सारस्वत सम्मान नामक पुरस्कार की स्थापना की गई। 51,000 रुपए का यह वार्षिक पुरस्कार लेखकवि, कृति के लिए दिया जाता है। उन्हें मिले कई अन्य पुरस्कार इस प्रकार है-
डॉ. धर्मवीर भारती


1. 1967- संगीत नाटक अकादमी के सदस्य के रूप में मनोनीत।
2. 1984- हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार (महाराणा मेवाड संस्थान)
3. 1985- साहित्य अकादमी का रत्न सम्मान।
4. 1986- संस्था सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी सम्मान)
5.1988- श्रेष्ट नाटककार पुरस्कार (संगीत नाटक अकादमी।
6.1989- डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान (बिहार सरकार)
7. 1989- गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार (केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा)
8. 1989- भारत भारती पुरस्कार (उ.प्र. हिन्दी संस्थान)
9.1990 -महाराष्ट्र गौरव (महाराष्ट्र सरकार)
10.1991-साधना सम्मान (केडिया मेमोरियल ट्रस्ट)
11. 1992 -महाराष्ट्राच्या सुपुत्रांचे अभिनंदन (वसंत राव नाइक प्रतिष्ठान)
12. 1994- व्यास सम्मान। (के के बिडला संस्थान)
13. 1996- शासन सम्मान (उ.प्र. हिन्दी संस्थान)
14. 1977- उत्तरप्रदेश गौरव (अभियान सम्मान संस्थान)

कहानी संग्रह

1. मुर्दों का गाँव- 1946
2. स्वर्ग और पृथ्वी -1940
3. चाँद और टूटे हुए लोग -1955
4. बंद गली का आखिरी मकान- 1969
5. साँस की कलम से -2000

कविता संग्रह

6. ठंडा लोहा-1952
7: अंधा युग-1954
8.सात गीत वर्षा-1959
9.कनुप्रिया-1959
10. सपना अभी भी-1993
11. अद्यांत-1999

उपन्यास

12. गुनाहों का देवता-1949
13.सूरज का सातवा घोडा-1952
14 ग्यारह साँपों का देश-1960

निबंध संग्रह

15 ठेले पर हिमालय-1958
16 पश्यंती-1969
17 कही-अनकही-1970
18 कुछ चेहरे कुछ चिंतन-1997

रिर्पोताज

19. युध्द यात्रा-1972
20.मुक्त क्षेत्र युध्द क्षेत्र 1973

आलोचनात्मक लेखन

21. प्रगतिवाद-एक समीक्षा-1949
22 मानव मूल्य और साहित्य-1960

एकल नाटक संकलन

23. नदी प्यासी थी-1954

शोधपत्र

24 सिध्द साहित्य-1968

अनुवाद

25.ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ-1946
26. देशांतर (21 देशों की समकालीन कविताएं) -1960

यात्रा संस्मरण

27 यात्राचक्र-1994

पत्र संकलन

28.अक्षर-अक्षर यज्ञ

साक्षात्कार

धर्मवीर भारती से साक्षात्कार-1999

संपूर्ण रचनाएँ

30. धर्मवीर भारती ग्रंथावली- (9 खंडों में) 1998

कविता

शाम : दो मन:स्थितियां
एक
शाम है, मैं उदास हूँ शायद
अजनबी लोग अभी कुछ आएं
देखिए अनछुए हुए सम्पुट
कौन मोती सहेजकर लाएं
कौन जाने कि लौटती बेला
कौन-से तार कहां छू जाएं!
बात कुछ और छेडिए तब तक
हो दवा ताकि बेकली की भी,
द्वार कुछ बंद, कुछ खुला रखिए
ताकि आहट मिले गली की भी
देखिए आज कौन आता है
कौन-सी बात नई कह जाए,
या कि बाहर से लौट जाता है
देहरी पर निशान रह जाए,
देखिए ये लहर डुबोए, या
सिर्फ तटरेख छू के बह जाए,
कूल पर कुछ प्रवाल छुट जाएं
या लहर सिर्फ फेनवाली हो
अधखिले फूल-सी विनत अंजुली
कौन जाने कि सिर्फ खाली हो?

दो

वक्त अब बीत गया बादल भी
क्या उदास रंग ले आए,
देखिए कुछ हुई है आहट-सी
कौन है? तुम? चलो भले आए!
अजनबी लौट चुके द्वारे से
दर्द फिर लौटकर चले आए
क्या अजब है पुकारिए जितना
अजनबी कौन भला आता है
एक है दर्द वही अपना है
लौट हर बार चला आता है
अनलिखे गीत सब उसी के हैं
अनकही बात भी उसी की है
अनउगे दिन सभी उसी के हैं
अनहुई रात भी उसी की है
जीत पहले-पहल मिली थी जो
आखिरी मात भी उसी की है
एक-सा स्वाद छोड जाती है
जिंदगी तृप्त भी व प्यासी भी
लोग आए गए बराबर हैं
शाम गहरा गई, उदासी भी!

National Record 2012

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Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

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