(जन्म 1719ई. मृत्युकाल अज्ञात)
बैरीसाल फतेहपुर जिले के एक ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हुए। ये अत्यंत शिष्ट और नम्र स्वभाव के थे। इनकी केवेल 'भाषा-भरण नाम की एक पुस्तक मिलती है, जिसकी अधिकांश रचना दोहों में है। इनके दोहों में सरसता, भाव तरलता तथा अनूठापन है। ये बिहारी के उत्कृष्ट दोहों की टक्कर के ज्ञात होते हैं।
दोहे
ऐसे ही इन कमल कुल, जीत लियो निज रंग।
कहा करन चाहत चरन, लहि अब जावक संग॥
लसत लाल डोरेऽरु सित, चखन पूतरी स्याम।
प्यारी तेरे दृगन मैं, कियो तिं गुन धाम॥
कर छुटाइ भजि दुरि गई, कनक पूतरिन माहिं।
खरे लाल बिलपत खरे, नेक पिछानत नाहिं॥
निज प्रतिबिंबन में दुरी, मुकुीर धाम सुखदानि।
लई तुरत ही भावते, तन सुवास पहिचान॥
बिरह तई लखि नरदई, मारत नहीं सकात।
मार नाम बिधि ने कियो, यहै जानि जिय बात॥
तोष लहत नहिं एक सों, जात और के धाम।
कियो बिधातै रावरे, यातैं नायक नाम॥
अलि ये उडगन अगिनि कन, अंक धूम अवधारि।
मानहु आवत दहन ससि, लै निज संग दवारि॥
करत नेह हरि सों भटू, क्यों नहिं कियो बिचार।
चहत बचायो बसन अब, बौरी बांधि अंगार।
सेत कमल कर लेत ही, अरुन कमल छबि देत।
नील कमल निरखत भयो, हंसत सेत को सेत॥
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217