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मगध महाजनपद

मगध महाजनपद

मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है । अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है ।

मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्ति शाली राजतन्त्रों में एक था । यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिमशाली महाजनपद बन गया । यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्वज केन्द्र बन गया ।

मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्चि्म में सोन नदी तक विस्तृत थीं ।

मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई । मगध राज्य में तत्कालीन शक्तिनशाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया । इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना ।

मगध साम्राज्य का उदय

मगध राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्चि म में सोन तथा दक्षिण में जगंलाच्छादित पठारी प्रदेश तक था।  पटना और गया जिला का क्षेत्र प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था ।

मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है । मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्तिजकाली व संगठित राजतन्त्रह था । कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और मगध का इतिहास (भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास के प्रमुख स्तम्भ के रूप में) सम्पूर्ण भारतवर्ष का इतिहास बन गया ।

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष करने में निम्न वंश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है-

ब्रहद्रथ वंश

यह सबसे प्राचीनतम राजवंश था । महाभारत तथा पुराणों के अनुसार जरासंध के पिता तथा चेदिराज वसु के पुत्र ब्रहद्रथ ने ब्रहद्रथ वंश की स्थापना की । इस वंश में दस राजा हुए जिसमें ब्रहद्रथ पुत्र जरासंध प्रतापी सम्राट था । जरासंध ने काशी, कौशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, कश्मीर और गांधार राजाओं को पराजित किया ।जरासंध ने ब्रहद्रथ वंश की राजधानी वशुमति या गिरिव्रज या राजगृह को बनाई । जरासंध ने अपनी पुत्री की शादी मथुरा के शासक कंस से की। कंस भगवान श्रीकृष्ण का मामा था। भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से पाण्डव पुत्र भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार दिया । उसके बाद उसके पुत्र सहदेव को शासक बनाया गया । इस वंश का अन्तिम राजा रिपुन्जय था । रिपुन्जय को उसके दरबारी मंत्री पूलिक ने मारकर अपने पुत्र को राजा बना दिया । इसके बाद एक अन्य दरबारी ‘महीय’ ने पूलिक और उसके पुत्र की हत्या कर अपने पुत्र बिम्बिसार को गद्दी पर बैठाया । ईसा पूर्व 600 में ब्रहद्रथ वंश को समाप्त कर एक नये राजवंश की स्थापना हुई ।

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