मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा

सत्य के प्रयोग

चौथा भाग

लोकेशन की होली

 

यद्यपि बीमारों की सेवा-शुश्रूषा से मै और मेरे साथी मुक्त हो चुके थे , फिर भी महामारी के कारण उत्पन्न दूसरे कामों की जवाबदारी तो सिर पर थी ही ।

म्युनिसिपैलिटी लोकेशन की स्थिति के बारे में भले ही लापरवाह हो , पर गोरे नागरिकों के आरोग्य के विषय में तो वह चौबीसों घंटे जाग्रत रहती थी । उनके आरोग्य की रक्षा के लिए पैसा खर्च करने मे उसने कोई कसर न रखी । और इस मौके पर महामारी को आगे बढने से रोकने के लिए तो उसने पानी की तरह पैसे बहाये । मैने हिन्दुस्तानियो के प्रति म्युनिसिपैलिटी के व्यवहार मे बहुत से दोष देखे थे । फिर भी गोरो के लिए बरती गयी इस सावधानी के लिए मै म्युनिसिपैलिटी का आदर किये बिना न रह सका , और इस शुभ प्रयत्न मे मुझसे जितनी मदद बन पड़ी मैने दी । मै मानता हूँ कि मैने वैसी मदद न दी होती तो म्युनिसिपैलिटी के लिए काम मुश्किल हो जाता और कदाचित वह बन्दूक के -- बल के उपयोग करती -- करनें में हिचकिचाती नही और अपना चाहा सिद्ध करती ।

पर वैसा कुछ हो नही पाया । हिन्दुस्तानियो के व्यवहार से म्युनिसिपैलिटी के अधिकारी खुश हुए और बाद का कितना ही काम सरल हो गया । म्युनिसिपैलिटी की माँगो के अनुकूल बरताब कराने मे मैने हिन्दुस्तानियो पर अपने प्रभाव का पूरा पूरा उपयोग किया । हिन्दुस्तानियो के लिए यह सब करना बहुत कठिन था, पर मुझे याद नही पड़ता कि उनमे से एक ने भी मेरी बात को टाला हो ।

लोकेशन के आसपास पहरा बैठ गया । बिना इजाजत न कोई लोकेशन के बाहर जा सकता था और न बिना इजाजत कोई अन्दर घुस सकता था । मुझे और मेरे साथियों को स्वतंत्रता पूर्वक अन्दर जाने के परवाने दिये गये थे । म्युनिसिपैलिटी का इरादा यह था कि लोकेशन में रहने वाले सब लोगो को तीन हफ्तो के लिए जोहानिस्बर्ग से तेरह मील दूर एक खुले मैदान मे तम्बू गाड़कर बसाया जाय और लोकेशन को जला दिया जाय । डेर तम्बू की नई बस्ती बसाने मे और वहाँ रसद इत्यादि सामान पहुँचाने मे कुछ दिन तो लगते ही । इस बीच के समय के लिए उक्त पहरा बैठाया गया था ।

लोग बहुत घबराये । लेकिन चूंकि मैं उनके साथ था, इसलिए उन्हें तसल्ली थी । उनमे से बहुतेरे गरीब अपने पैसे घरों मे गाड़कर रखते था । अब पैसे वहाँ से हटाना जरुरी हो गया । उनका कोई बैंक न था । बैंक का तो वे नाम भी न जानते थे । मै उनका बैक बना । मेरे यहाँ पैसो को ढेर लग गया । ऐसे समय मै कोई मेहनताना तो ले ही नही सकता था । जैसे तैसे मैने इस काम को पूरा किया । हमारे बैक के मैनेजर से मेरी अच्छी जान पहचान थी । मैने उनसे कहा कि मुझे उनके बैक मे बहुत बडी रकम जमा करनी होगी । बैंक तांबे और चादी के सिक्के लेने को तैयार नही होते । इसके सिवा , महामारी के क्षेत्र से आने वाले पैसो को छूने मे मुहर्रिर लोग आनाकानी करे , इसकी भी संभावना था । मैनेजर ने मेरे लिए सब प्रकार की सुविधा कर दी । तय हुआ कि जंतु नाशक पानी से धो कर पैसे बैक मे भेज दिये जाये । मुझे याद है कि इस तरह लगभग साठ हजार पौंड बैक मे जमा किये गये थे । जिनके पास अधिक रकमे थी उन मुवक्किलो को एक निश्चित अवधि के लिए अपनी रकम ब्याज पर रखने की सलाह मैने दी। इस प्रकार अलग अलग मुवक्किलो के नाम कुछ रकमें जमा की गयी । इसका परिणाम यह हुआ कि उनसे से कुछ लोग बैंक मे पैसे रखने के आदी हो गये । लोकेशन मे रहने वालो को एक स्पेशल ट्रेन मे जाहानिस्बर्ग के पास क्लिपस्प्रूट फार्म पर ले जाया गया । वहाँ उनके खाने पीने की व्यवस्था म्युनिसिपैलिटी ने अपने खर्च से की । तंबुओ मे बसे इस गाँव का दृश्य सिपाहियों की छावनी जैसा था । लोगो को इस तरह रहने की आदत नही थी । इससे उन्हें मानसिक दुःख हुआ, नया नया सा लगा । किन्तु कोई खास तकलीफ नही उठानी पड़ी । मैं हर रोज एक बार साइकल पर वहाँ जाता थी । इस तरह तीन हफ्ते खुली हवा मे रहने से लोगो के स्वास्थय मे अवश्य ही सुधार हुआ और मानसिक दुःख को तो वे पहले चौबीस घंटो के अन्दर ही भूल गये । अतएव बाद मे वे आनन्द से रहने लगे । मैं जब भी वहाँ जाता, उन्हें भजन कीर्तन और खेल कूद मे ही लगा पाता ।

जैसा कि मुझे याद है जिस दिन लोकेशन खाली किया गया उसके दूसरे दिन उसकी होली की गयी । म्युनिसिपैलिटी ने उसकी एक भी चीज बचाने का लोभ नही किया । इन्हीं दिनों और इसी निमित्त से म्युनिसिपैलिटी ने अपने मार्केट की सारी इमारती लकड़ी भी जला डाली और लगभग दस हजार पौंड का नुकसान सहन किया । मार्केट मे मरे हुए चूहे मिले थे, इस कारण यह कठोर कार्यवाही की गयी थी , पर परिणाम यह हुआ कि महामारी आगे बिल्कुल न बढ सकी । शहर निर्भय बना ।

 

 

 

 

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