Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

समाज और प्रकृति में जल

समाज और प्रकृति में जल

 

नियति के घुंघट में छिपे स्वरूप को प्रकृति कहते हैं।  घुंघट अपने में आकर्षक मेटानॉमी है। यह कृत्रिम मेटाफर न हो कर (संकेत न होकर) एक लक्षण है। अनुष्ठान में हम ईश्वर का लाक्षणिक साक्षत्कार या अनुभूति करते हैं जबकि अनुसंधान में प्रत्यक्ष अनुभूति करते हैं। लेकिन प्रत्यक्ष अनुभूति के लिए पात्रता चाहिए। पुष्टी चाहिए। दुतरफा प्रेम चाहिए। स्वीकृति चाहिए। प्रत्यक्ष अनुभूति में परमानंद है। लाक्षणिक अनुभूति में आनंद है।

समाज और प्रकृति में जल एक साझी विरासत रही है। पेड़ पानी का बाप, जंगल और पहाड़ियां  मां हैं। ये सब खतरे में है। खनन से पहाड़ियां नष्ट हो रहीं है। पेड़ काटने से धरती वीरान हो रही है। इसके कारण गर्मी बढ़ रही है। मानसून बिगड़ रहा है। सूखा और बादलों का फटना जारी है। वर्षा और मानसून का संतुलन गड़बड़ा गया है। जीन पूल, जैव विविधता सभी का संतुलन खतरे में है। मौसम का मिजाज बिगड़ गया है। ब्रहमांड धधकने लगा है। इसी से बाढ़- सूखा बढ़ रहा है।

1985 के आस-पास देशभर के भूजल के भंडार जहां-तहां खाली होने शुरू हुए थे। आज ये दो तिहाई खाली हो गए हैं। 20 वर्ष पहले 15 प्रतिशत भूजल भंडार समस्या ग्रस्त थे। आज 70 प्रतिशत भूजल भंडार समस्या ग्रस्त हैं। शेष 30 प्रतिशत भूजल भंडार बाढ़ क्षेत्रों के बीच वाले हैं। वहां भी पानी पीने योग्य नहीं है। बंगाल में आरसेनिक, बिहार में फ्लोराइड की समस्या है। पंजाब- हरियाणा में नाइट्रोजन जैसे प्रदूषण हैं। पानी की कमी और प्रदूषण दोनों ही बढ़ रहे हैं। यह गति और पानी, दिशा और दशा हमारे लिए भयावह है।

आधुनिक उयोग और कृषि में पानी की खपत और प्रदूषण कम करने का उपाय नहीं है। पानी की लूट, पानी की राजनीति और पानी का व्यापार बढ़ रहा है। अब पानी समाज, सरकार और सृष्टि का नहीं रहा, बल्कि व्यक्तियों और कंपनियों का हो गया है। वे हमारी नदियों को खरीद या लीज पर ले सकते हैं। पानी का पेट्रोल की तरह बाजार होगा। यदि यही हाल रहा तो देश की सरकार, राज्य की सरकार पानी के बाजार से संचलित होगी। अभी तो राजनीति में पानी केवल एक सवाल है। 20 वर्ष बाद पानी की राजनीति होगी। हमारी संसद और विधान सभाओं ने आजतक यह तय नहीं किया कि जल पर किसका, कितना और कैसे उपयोग का हक बनता है?

भारत की नदी जोड़ परियोजना पानी के व्यापार को बढ़ाने वाली है। जलदान करके अपने गांव की सूखा और अकाल मुक्त बनाने का संकल्प लेना अवश्यक है। जल बिरादरी बनाकर जल बचाने व जल सहेजने की बात करनी होगी। जल के बारे में सनातनी मूल्य बोध फैलाना होगा। श्रमनिष्ठा बढ़ानी होगी। पारंपरिक तकनीकों को प्रतिेष्ठत करना होगा। लोक कल्याण और सर्वोदय को संरक्षित एवं संवर्धित करने वाले कानून बनाने होंगे। जल, जंगल, जमीन, जन और वायु को कल्याणकारी तथा मंगलदायी बनाना केवल कानून सरकार से नहीं होगा इसके लिए शिक्षा समाज तथा संस्कारधर्म की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

अभी अमेरिका, इंग्लैंड पानी पर कब्जे का अभिमान चला रहे हैं। तेल के बाद अब पानी की बारी है। सीमापार बहने वाली नदियों के पानी पर किसका कितना अधिकार है, इस सवाल को लेकर विवाद गहराता ही जा रहा है। दुनिया के कई भागों में मीठे पानी की किल्लत शिद्दत से महसूस की जा रही है। पूरी दुनिया में 263 नदियां ऐसी हैं, जो सीमा पार बहती हैं, जिसका बेसिन पृथ्वी के आधे भूभाग पर फैला हुआ है। पिछले 50 सालों से पानी के उपयोग को लेकर 400 संधि हो चुकी हैं। विवाद के कारण अनेकों हिंसात्मक घटनांए घट चुकी हैं। केवल जोईन नदी के लिए 37 हिंसात्मक घटनांए घट चुकी हैं।

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