Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

पाकीजा-1971- (निर्देशक- कमाल अमरोही) एक नयी दृष्टि

पाकीजा-1971- (निर्देशक- कमाल अमरोही) एक नयी दृष्टि

पेज 1

पाकीजा, यह 1971 की सबसे सफल फिल्मों में से एक थी। इस फिल्म की नायिका मीना कुमारी की मृत्यु के बाद रिलीज होने का इस फिल्म को निश्चित रूप से लाभ मिला था। यह मीना कुमारी और कमाल अमरोही के वैवाहिक जीवन के उथल पुथल के दौरान बनी थी जिसके कारण इसके बनने में काफी समय लगा था। यह कमाल अमरोही की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। 

कमाल अमरोही ने अपने फिल्म जीवन का प्रारंभ के. आसिफ के पटकथा एवं संवाद लेखक के रूप में की थी। के. आसिफ के लिए उन्होंने सबसे पहले फूल के लिए पटकथा लिखा था। फिर वे मुगल ए आजम के पटकथा और संवाद लिख रहे थे। फूल का प्रर्दशन 1944 में हुआ था। 1945 से लेकर 1948 तक कमाल अमरोही मुगल ए आजम की पटकथा एवं संवाद का काम करते रहे। लेकिन देश के 1947 के बटवारे के बाद के. आसिफ का निर्माता पाकिस्तान चला गया और बहुत कोशिश के बाद भी के. आसिफ कोई दूसरा निर्माता नहीं ढूढ़ पाए। इसी बीच कमाल अमरोही को 1949 में महल नामक suspense thriller निर्देशित करने का मौका मिला। अशोक कुमार एवं मधुबाला अभिनित ये फिल्म, खेमचंद्र प्रकाश के संगीत एवं लता मंगेशकर के सुरीले गीतों के लिए आज भी याद किया जाता है।

1949 से भारतीय सिनेमा में लता युग का प्रारंभ होता है। 1949 में महल के अलावे लता मंगेशकर ने राज कपूर की फिल्म बरसात में शंकर जयकिशन के लिए और मेहबूब खान की फिल्म अंदाज में नौशाद के लिए गाना गाया था। तीनों फिल्में व्यवसायिक रूप से बहुत सफल हुई थी और इनकी सफलता का श्रेय लता मंगेशकर के गायन को भी मिला था।

1953 में कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को नायिका बना कर दायरा फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन किया जो व्यवसायिक रूप से बहुत असफल रही। 1952 में मीना कुमारी बैजु बावरा (निर्देशक- विजय भट्ट) की नायिका के रूप में सफल स्टार साबित हो चुकी थी। दायरा की असफलता के बावजूद मीना कुमारी एवं कमाल अमरोही ने एक दूसरे से निकाह कर लिए लेकिन उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा था जिसके कारण मीना कुमारी शराब पीने लगी और अपने दर्द को शायरी में ढ़ालने लगी। इसी बीच के. आसिफ और कमाल अमरोही के संबंधों में भी तनाव आ गया और कमाल अमरोही की अधुरी पटकथा को दूसरे लेखकों से पूरा करा कर के. आसिफ ने मुगल ए आजम का प्रदर्शन 1960 में किया।

एक भव्य एवं सफल फिल्म के रूप में मुगल ए आजम, दिलीप कुमार, मधुबाला, पृथ्वी राज कपूर और दूर्गा खोटे के अभिनय के लिए आज भी याद की जाती है। मुगल ए आजम के प्रदर्शन के कुछ समय बाद कमाल अमरोही ने पाकीजा फिल्म पर काम करना शुरू किया। रूहानी स्तर पर मुगल ए आजम की पटकथा और पाकीजा की पटकथा में संरचनात्मक सहधर्मिता देखी जा सकती है जबकि बाहरी आवरण के रूप में मुगल ए आजम मुगल सलतनत के उत्कर्ष के समय की कहानी है जबकि पाकीजा अंग्रेजी राज के दौरान रेलवे के आगमन के बाद मुस्लिम नवाबी के संक्रमण काल की कहानी है।

पाकीजा मीना कुमारी के अभिनय, नृत्य एवं गुलाम मुहम्मद तथा नौशाद के संगीत के लिए जाना जाता है। इसके सारे गाने 1970 के दशक में आम आदमी के होठों पर थे और आज भी इसके कर्ण प्रिय गीत पाकीजा को एक संगीतमय कालजयी रचना के रूप में स्थापित किये हुए हैं।

 

साहिब जान (मीना कुमारी) एक पारम्परिक इंसान है। वह एक सजग रूप से आशावादी चरित्र है। परख फिल्म के पोस्ट मास्टर बाबू भी आशावादी हैं। लेकिन उनका आशावाद असजग है।

साहिब जान सलीम (राज कुमार) से प्यार करती है फिर भी वह उसके निकाह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती। उसके इंकार की आधुनिक दृष्टिकोण (वेबर आदि) से व्याख्या नहीं की जा सकती। सलीम एक फॉरेस्ट ऑफिसर है। अब फॉरेस्ट ऑफिसर या वन अधिकारी तो अंग्रेजी राज से पहले तो होता नहीं था। वन अधिकारी बनने के लिए आई.एफ.एस. की परीक्षा पास करना पड़ता था। आई.एफ.एस. बनने के लिए आधुनिक विज्ञान की शिक्षा (बी एस.सी) पास होना जरूरी है। सलीम एक आधुनिक चरित्र है। संभवत: पाकीजा फिल्म में वह अकेला आधुनिक चरित्र है। उसकी सोच, उसका विचार, उसकी चाल-ढ़ाल सब कुछ आधुनिक है। वह बहुत आशावादी चरित्र भी नहीं है। ट्रेन में एक सुन्दर सोयी हुई स्त्री को देखता है और उसे इश्क हो जाता है। वह एक खत लिख कर उतर जाता है। जब उसे अपने टेन्ट में सोयी हुई वही स्त्री फिर मिलती है तो वो चकराता है। फिर उसको आधुनिक 'रोमांस' हो जाता है। वह निकाह का प्रस्ताव रखता है। जब साहिब जान ये प्रस्ताव ठुकरा देती है तो वह बिखर जाता है। वह साहिब जान से बदला लेना चाहता है। वह उसके आत्म सम्मान को कुचल देना चाहता है। वह प्रस्ताव रखता है कि साहिब जान उसके दूसरी स्त्री से निकाह के अवसर पर मुजरा करे। साहिब जान शहादत के अंदाज में मुजरा करने के लिए तैयार हो जाती है और (तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे) मुगले आजम के कोर्ट डांस के तर्ज पर मुजरा करते करते बेहोश हो कर गिर जाती है।

  डा० अमित कुमार शर्मा के अन्य लेख अगला पेज

 

 

top